जोगनी माता मंदिर का इतिहास Jogni mata history in hindi

Jogni mata history in hindi

Jogni mata – दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से भारत देश का सबसे सुंदर , अद्भुत चमत्कारी मंदिर जोगनी माता मंदिर के इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं तो चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और इस आर्टिकल को पढ़कर जोगनी माता मंदिर के इतिहास के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करते हैं ।

Jogni mata history in hindi
Jogni mata history in hindi

जोगनी माता मंदिर के बारे में – जोगनी माता का मंदिर भारत देश का प्राचीन अद्भुत , सुंदर , चमत्कारी मंदिर है जिस मंदिर से काफी लोगों की आस्था जुड़ी हुई है । जोगनी माता मंदिर के दर्शन के लिए दूर-दूर से भक्तगण आते हैं और जोगनी माता के दर्शन करके अपने जीवन में सुख समृद्धि और आनंद प्राप्त करते हैं । जोगनी माता का यह भव्य सुंदर मंदिर बबेरू क्षेत्र के यमुना तटवर्ती क्षेत्र में स्थित बाकल गांव में है जिस मंदिर की सुंदरता की चर्चा दूर-दूर तक की जाती हैं । जोगनी माता मंदिर से आस-पास के गांव और भारत के कई नागरिकों की आस्था जुड़ी हुई है ।

जब नवरात्रि का समय आता है तब जोगनी माता मंदिर के पास में एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है । इस मेले को देखने और जोगनी माता के दर्शन करने के लिए काफी लोग आते हैं और जोगनी माता के दर्शन करके अपने जीवन में सुख समृद्धि और आनंद प्राप्त करते हैं । यदि हम जोगनी माता मंदिर के निर्माण की बात करें तो जोगनी माता मंदिर का निर्माण आज से तकरीबन 255 साल पहले किया गया था । जोगनी माता मंदिर के निर्माण को लेकर एक कथा भी कहीं जाती है । मंदिर के निर्माण के बारे में ऐसा कहा जाता है कि जोगनी माता मंदिर का निर्माण परास गांव के रहने वाले एक व्यक्ति ने कराया था ।

परास गांव का एक व्यक्ति जो पैसा कमाने के उद्देश्य से कोलकाता में मजदूरी किया करता था उस व्यक्ति की भगवान में विशेष आस्था थी । एक बार वह सो रहा था रात्रि का समय था और सोते समय उस व्यक्ति के सपने में मां जोगनी आई और उस व्यक्ति से कहने लगी कि यहां के पास ही के गांव के पास में एक जंगल है जिस जंगल की कुछ दूरी पर मैं एक मिट्टी के अंदर दबी हुई हूं तू मुझे उस जंगल की मिट्टी से बाहर निकाल कर एक मिट्टी का बना हुआ खप्पर जो पका हुआ हो उसमें मुझे रख लेना और रखने के बाद मुझे तेरे गांव ले चलना ।

यहां से लेकर तेरे गांव तक मेरी पूजा अर्चना और हवन करना नींबू जरूर मेरे साथ में रखना । इसके बाद जब सुबह हुई तब वह मजदूर उठा और उसने माता के कहे अनुसार उस जंगल में गया और उस स्थान पर पहुंचा जो स्थान माता ने उस मजदूर को स्वप्न में बताया था । जब वह मजदूर उस स्थान पर पहुंचा तब उसने मिट्टी हटाई तो उस मिट्टी के अंदर एक मूर्ति मिली और उस मजदूर ने जोगनी माता को कहे अनुसार खप्पर में रखा । निंबू के साथ हवन करते हुए वह ट्रेन के माध्यम से बांद्रा पहुंच गया था । इसके बाद उसने अपनी पैदल यात्रा प्रारंभ की थी ।

पैदल यात्रा करते हुए वह मजदूर बबेरू होते हुए समसुद्दीन पुर गांव से होते हुए परास की ओर निकल पड़ा था । जैसे ही वह मजदूर बाकल गांव के पास पहुंचा उस मजदूर के पास नींबू और हवन की सामग्री खत्म हो गई थी जिसके बाद उसने यमुना नदी के किनारे पर मां की मूर्ति रख दी और हवन सामग्री की व्यवस्था करने लगा था । जब उसने हवन सामग्री की व्यवस्था कर ली थी तब उसने उस मूर्ति को पुनः उठाने की कोशिश की परंतु वह मूर्ति  नहीं उठी थी और वह मूर्ति वहीं पर ही स्थापित हो गई थी । इसके बाद वहीं पर उस मूर्ति की स्थापना की गई और इसके बाद भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया था जिस मंदिर की सुंदरता आज भी सभी भक्तों का मन मोह लेती है ।

इस मंदिर के बारे में ऐसा कहा जाता है कि जो भी वक्त गढ़ माताजी के दर्शन करने के लिए जोगनी माता मंदिर जाता है वह सुख समृद्धि और आनंद प्राप्त करता है । नवरात्रि के समय में जोगनी माता मंदिर पर काफी भक्तों का जमावड़ा लगता है जिस जमावड़े को देखने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि मानो माता जोगनी साक्षात सभी भक्तों को इस मंदिर में दर्शन दे रही हो । नवरात्रि के समय में वहां का प्रशासन जोगनी माता मंदिर पर अपनी सेवा देती है जिससे कि आते जाते भक्तों को किसी भी तरह की कोई असुविधा का सामना ना करना पड़े ।

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