जैन धर्म का इतिहास jain dharm history in hindi
jain dharm history in hindi
दोस्तों आज हम आपके लिए लाए हैं जैन धर्म का इतिहास चलिए अब हम पढ़ेंगे जैन धर्म का इतिहास को ।
जैन धर्म सबसे प्राचीन धर्म है, जैन धर्म जिन भगवान के अनुयाई है । यह कहा जाता है कि सिंधु घाटी से जैन धर्म के अवशेष मिले थे इसलिए जैन धर्म को सबसे प्राचीन धर्म माना जाता है । यह कहा जाता है कि जब से सृष्टि है तभी से जैन धर्म है । जैन धर्म के द्वारा लोगों को यह समझाया जाता है कि कर्म करने से व्यक्ति महान बनता है । जैन धर्म के लोग ब्राह्मण ना होकर श्रमण परंपरा के हैं । भारत में प्राचीन काल से ही जैन धर्म को माना जाता है । आर्यों के काल में भी जैन धर्म को माना जाता था । महाभारत के समय में भी जैन धर्म के लोग मौजूद थे । जैन धर्म के लोग कृष्ण जी को पूजते हैं ।
कृष्ण जी को 12 नारायण में से एक मानते हैं । उनका यह मानना है कि कृष्ण जी नारायण जी के 12 वे रूप थे । जब पार्श्व नाथ जी का जन्म हुआ था तब उन्होंने जैन धर्म को आगे बढ़ाया और लोगों को सही रास्ता दिखाया था । जब पार्श्व नाथ थे तब यह परंपरा संगठित रूप से अस्तित्व में नहीं थी । यह कहा जाता है कि जैन धर्म को श्रमण संप्रदाय से जोड़ने के लिए पार्श्व नाथ आगे आए थे । पार्श्व नाथ जी ने जैन धर्म के अस्तित्व को बढ़ाने के लिए काम किया था । जब जैन धर्म में महावीर स्वामी आए तब श्रमण की परंपरा का नाम बदलकर उन्होंने जिन रखा जिसे लोग जैन के नाम से भी जानते हैं इसका अर्थ है जो अपनी इंद्रियों को जीत ले ।
जैन धर्म के ग्रन्थ jain dharm granth
जैन धर्म के लोगों का यह मानना है कि भगवान महावीर स्वामी ने कोई ग्रंथ नहीं लिखा है वह तो सिर्फ प्रवचन दिया करते थे । उन्होंने किसी प्रकार का कोई ग्रंथ नहीं लिखा था लेकिन कुछ समय बाद उनके अनेक शिष्यों ने अमृत वचन का संग्रह किया था । जैन धर्म का सबसे पुराना ग्रंथ आगम ग्रंथ को माना जाता है । सभी आगम ग्रंथों को चार भागों में बांटा गया है । प्रथमानुयोग, करनानुयोग, चरनानुयोग, द्रव्यनुयोग आदि । इसके बाद जैन धर्म के और भी ग्रंथ हैं जैसे कि उपांग ग्रंथ, अंग ग्रंथ ,प्रकीर्ण ग्रंथ, मूल सूत्र ग्रंथ, छेद ग्रंथ, स्वतंत्र ग्रंथ, इन ग्रंथों के आधार पर 63 लोगो महापुरुष माना गया हैं । इन महापुरुषों का वर्णन एवं कथाएं ग्रंथ में हैं । इन ग्रंथों को संस्कृत एवं अन्य देसी भाषाओं में लिखा गया हैं । हमारे भारत के इतिहास में जैन धर्म की महत्वपूर्ण सामग्री मिलती है ।
जैन धर्म के नियम jain dharm ke niyam in hindi
ऋषभदेव को जैन धर्म का संस्थापक माना जाता है। यह कहा जाता है कि बौद्ध धर्म से पहले जैन धर्म की उत्पत्ति हुई थी । जैन शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द से की गई थी जिसका अर्थ होता है विजेता ,जिसने इंद्रियों को जीता हो । जैन धर्म में नियमों को अपनाने को त्रिरत्न कहते हैं । त्ररत्नो के नाम जैसे कि सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान , सम्यक आचरण आदि
सम्यक दर्शन में सत्य पर विश्वास रखने के लिए कहा गया है । सत्य में विश्वास से ही सम्यक दर्शन होते हैं । सम्यक ज्ञान में वास्तविक ज्ञान को ग्रहण करना है । सम्यक आचरण सांसारिक विषयों से प्राप्त सुख दुख के संभव ही सम्यक आचरण है । जैन धर्म में पांच महाव्रत होते हैं इन व्रतों को करने के लिए कुछ नियम बनाए गए हैं । अहिंसा ,जैन धर्म में अहिंसा को प्रथम स्थान दिया गया है यह वचन सबसे कठोर है इस वचन को पुरा करने के लिए सभी को हिंसा से बचने को कहा गया है । जब कोई जैनी व्रत करता है तो उसको अहिंसा के रास्ते पर चलना पड़ता है ।
सत्य व अमृष ,इस नियम के तहत सभी जैन धर्म के लोगों को सत्य बोलना चाहिए ,कभी भी झूठ का सहारा नहीं लेना चाहिए । सभी लोगों से मधुर वाणी बोलना चाहिए । वह कभी भी किसी व्यक्ति से ऐसी बात ना करें जिससे कि उसका मन दुखी हो ।
अस्तेय नियम ,इस नियम के अंतर्गत कभी भी बिना अनुमति के भोजन नहीं करना चाहिए ,ना ही इच्छा करनी चाहिए । इस नियम के अंतर्गत किसी के घर में जाकर उसकी सुख शांति को भंग नहीं करना चाहिए।
अपरिग्रह, इस नियम के अंतर्गत कोई भी जैन धर्म का व्यक्ति धन संपत्ति एकत्रित ना करे इस पर बल दिया गया है । जैन धर्म के लोगो का कहना है कि जो व्यक्ति धन संपत्ति को एकत्रित करता है उसका मन संपत्ति एकत्रित करने में ही लगा रहता हैं जिससे उसकी शक्ति का विनाश होता है और वह कमजोर हो जाता है ।
ब्रह्मचर्य, इस नियम के अंतर्गत भिक्षुओं को ब्रह्मचर्य व्रत पालन करने को कहा गया है । इस नियम के अंतर्गत वह नारी को बुरी नजरों से नहीं देख सकता है ऐसा करने पर उसका व्रत खंडित माना जाता है । जो व्यक्ति जैन धर्म का पालन करता है एवं व्रत करता है उन्हीं के लिए यह नियम बनाए गए है । इन व्रतों को अणुव्रत कहां गया है ।
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