अहोई माता की कथा hoyi mata ki katha in hindi

hoyi mata ki katha in hindi

दोस्तों आज हम आपको इस लेख के माध्यम से अहोई माता की व्रत कथा बताने जा रहे हैं । चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और अहोई माता की व्रत कथा को पढ़ते हैं । अहोई माता का व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में अहोई अष्टमी के दिन किया जाता है । इस दिन कथा भी कही जाती है । जो भी स्त्री अहोई माता की पूजा , अर्चना एवं कथा करती है उसको मनचाहा वरदान अहोई माता के द्वारा प्राप्त होता है ।

hoyi mata ki katha in hindi
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image source –https://www.ajabgjab.com/2018/10/ahoi

जो स्त्री अहोई माता का व्रत करती है एवं राधा कुंड में स्नान करती है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं । अहोई माता के व्रत की कई कथाएं प्रचलित हैं । आज हम आपको अहोई माता की कथा बताने जा रहे हैं ।

कथा – उत्तर प्रदेश राज्य के झांसी के निकट एक नगर में चंद्रभान नाम का एक साहूकार रहता था । उसकी पत्नी का नाम चंद्रिका था । उसकी पत्नी सर्वगुण संपन्न , सुंदर एवं बुद्धिमानी महिला थी । वह नित्य प्रतिदिन भगवान की पूजा पाठ करती और धर्म के काम करती थी । उसके अंदर किसी भी तरह का कोई भी लोभ लालच नहीं था ।चंद्रभान एवं चंद्रिका के कई पुत्र हुए परंतु वह अपनी बाल्यावस्था में ही मर जाते थे । इस तरह से कई वर्षों तक वह पुत्र को प्राप्त करने की आस में जीते रहे लेकिन हर बार उनका पुत्र बाल्यावस्था में ही मर जाता था ।

एक बार चंद्रभान एवं उसकी पत्नी चंद्रिका विचार करने लगे की हमारी तो कोई संतान नहीं है । हमारे मरने के बाद इस संपत्ति का मालिक कौन होगा । दोनों ने विचार-विमर्श करके यह निर्णय लिया की हम दोनों आज से ही यह मोह माया का बंधन छोड़ कर बनवास के लिए चलेंगे । अब हमारा जो जीवन बचा हुआ है उस जीवन को हम प्रभु के ध्यान में लगाएंगे । ऐसा निर्णय करके दोनों पति पत्नी प्रभु को याद करते हुई जंगल में चले गए ।

वह निरंतर चलते जाते जहां पर रात हो जाती वहीं पर वह प्रभु का ध्यान लगाते हुए विश्राम कर लेते थे । कई दिनों तक वह जंगलों का भ्रमण करते रहे । जंगलों का भ्रमण करते करते वह बद्रिका आश्रम जा पहुंचे । जब वह बद्रिका आश्रम से थोड़ी दूर गए वहां पर दोनों पति पत्नियों को शीतल कुंड दिखाई दिया और वहां पर दोनों ने विश्राम किया । दोनों पति पत्नी चंद्रभान एवं चंद्रिका ने शीतल कुंड में अपने प्राण त्यागने का निश्चय किया ।

दोनों पति पत्नी अपने प्राण त्याग ही रहे थे कि आसमान से एक आकाशवाणी हुई की आप दोनों अपने प्राण मत त्यागो । यह तुम्हारे पूर्व जन्मों के पाप का नतीजा है । तुम दोनों ने पूर्व जन्म में कुछ ऐसे पाप किए थे जिसका परिणाम तुम्हें इस जन्म में भुगतना पड़ रहा है । अब तुम किसी बात की चिंता मत करो मैं तुम्हें बताता हूं बेसा ही करना । आकाशवाणी ने चंद्रिका को अहोई अष्टमी का व्रत करने के लिए कहा ।

जब चंद्रिका ने यह पूछा कि यह व्रत केसे करना चाहिए  तब आकाशवाणी ने कहा कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में अहोई अष्टमी के दिन यह व्रत किया जाता है । इस दिन राधा कुंड में स्नान करने से अहोई माता प्रसन्न होती हैं और साक्षात दर्शन देती हैं । अहोई माता का व्रत करने से मनचाहा वरदान हमें होई माता के द्वारा प्राप्त होता है । जब अहोई माता तुम्हें साक्षात दर्शन दे तब तुम अहोई माता से पुत्र प्राप्ति का वरदान प्राप्त करें ।

चंद्रभान की पत्नी ने यह व्रत करने का निश्चय किया । जब कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में अष्टमी का दिन आया तब चंद्रिका ने अहोई माता का व्रत किया और राधा कुंड में स्नान किया । स्नान करके वह दोनों घर आ गए थे । जब दोनों घर आए तब अहोई माता ने दोनों को साक्षात दर्शन दिए । चंद्रभान एवं उसकी पत्नी चंद्रिका ने अहोई माता से पुत्र प्राप्ति का वरदान मांगा । अहोई माता ने दोनों को पुत्र प्राप्ति का वरदान दे दिया ।

अहोई माता दोनों को तथास्तु कहकर वहां से अंतर्ध्यान हो गई । कुछ समय पश्चात चंद्रभान की पत्नी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया और दोनों पति पत्नी अपने बच्चे के साथ खुशी से अपना जीवन व्यतीत करने लगे । इसी तरह से जो भी महिला निष्पक्ष भाव से अहोई माता का व्रत करती है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं ।

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