हावड़ा ब्रिज का इतिहास howrah bridge history in hindi
howrah bridge history in hindi
दोस्तों आज हम आपको किस आर्टिकल के माध्यम से हावड़ा ब्रिज के बारे में बताने जा रहे हैं । चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और हावड़ा ब्रिज के इतिहास को जानते हैं ।हावड़ा ब्रिज भारत का एवं विश्व का सबसे बड़ा ब्रिज है ।हावड़ा ब्रिज कोलकाता शहर का सबसे सुंदर ब्रिज है ।हावड़ा ब्रिज कोलकाता शहर की शान है । कई पर्यटक हावड़ा ब्रिज की सुंदरता को देखने के लिए आते हैं ।
हावड़ा ब्रिज का इतिहास – हावड़ा ब्रिज का इतिहास काफी दिलचस्प रहा है । हावड़ा ब्रिज का निर्माण कार्य ब्रिटिश शासन के दौरान प्रारंभ किया गया था । हावड़ा ब्रिज विश्व का तीसरा सबसे लंबा एवं सबसे बड़ा ब्रिज है ।हावड़ा ब्रिज को बनाने से कई यात्रियों को सुविधा का लाभ प्राप्त हुआ है । 1937 में हावड़ा ब्रिज का निर्माण कार्य प्रारंभ किया गया था । जब हावड़ा ब्रिज के निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ की गई थी तब हावड़ा शहर एवं पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर के लोगों को बड़ी खुशी हुई थी ।
हावड़ा ब्रिज के आसपास रहने वाले लोग यह जानते थे कि जब यह फुल बन जाएगा तब वहां के लोगों की कई तरह की समस्याओं का समाधान हो जाएगा । ब्रिज बनने के बाद वहां के आसपास के लोगों एवं उस पल पर गुजरने वाले लोगों को बहुत फायदा होने वाला है । हावड़ा ब्रिज हावड़ा शहर एवं कोलकाता शहर के लिए एक वरदान की तरह है क्योंकि हावड़ा ब्रिज के निर्माण के बाद वहां के आसपास की यात्रा करना आसान हो गई थी । जब 1942 को हावड़ा ब्रिज बनके तैयार हो गया था तब इस ब्रिज को आम जनता के लिए चालू कर दिया था ।
जब हावड़ा ब्रिज नहीं था तब वहां के लोगों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता था । बरसात के समय में जब हुबली नदी पानी से उफन जाती हैं तब वहां के लोगों को नदी के इस पार से उस पार जाने में बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता था लेकिन हावड़ा ब्रिज के बन जाने के बाद उनको इस समस्या से छुटकारा मिल गया है ।
हुगली नदी – हुगली नदी हावड़ा ब्रिज के नीचे से गुजरती है । हुगली नदी में चारों तरफ से पानी एकत्रित होकर गुजरता है । हावड़ा शहर एवं कोलकाता के बीच में यह नदी गुजरती है । पहले जब हावड़ा ब्रिज नहीं बनाया गया था तब बरसात के समय में लोगों को कोलकाता से हावड़ा शहर की ओर जाने में परेशानियों का सामना करना पड़ता था । हावड़ा ब्रिज बन जाने के बाद कोई भी व्यक्ति आसानी से हावड़ा शहर से कोलकाता की ओर जा सकता है । ब्रिज बनने के बाद हावड़ा ब्रिज पर काफी ट्राफिक बढ़ गया है ।
हजारों लाखों की संख्या में वाहन हावड़ा ब्रिज से होकर गुजरते हैं । हुगली नदी जब बरसात के समय में पानी से भर जाती है तब ब्रिज की सुंदरता और भी अच्छी लगती है । ब्रिज के चारों ओर सुंदर एवं चमकीली लाइट भी लगाई गई है जिससे रात के समय ब्रिज और भी शानदार दिखाई देता है । हावड़ा ब्रिज की सुंदरता को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं क्योंकि यह सबसे बड़ा और लंबा ब्रिज है । हावड़ा ब्रिज का निर्माण हुगली नदी केे कारण ही हुआ है । यदि हुगली नदी नहीं होती तो हावड़ा ब्रिज नहीं बनाया जाता । हुगली नदी के ही कारण इतना सुंदर एवं अद्भुत ब्रिज बनाया गया है । हावड़ा ब्रिज की सुंदरता को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं और अपने कैमरे में हावड़ा ब्रिज की फोटो खींच कर ले जाते हैं ।
हावड़ा ब्रिज – यह ब्रिज सबसे लंबा और सबसे बड़ा ब्रिज है । यह भारत के कोलकाता में स्थित है । यह हावड़ा ब्रिज 280 फिट ऊंचे 4 गाटरो पर टिका हुआ है । इस ब्रिज की लंबाई 2150 फिट है । इसीलिए यह सबसे लंबा पुल है । इस ब्रिज को बनाने के लिए सबसे ज्यादा स्टील का उपयोग किया गया था । इसीलिए यह सबसे भारी पुल है ।
18वीं शताब्दी में हावड़ा सिटी की स्थिति- 18वीं शताब्दी में हावड़ा शहर में किसी तरह का कोई भी पुल नहीं था ।हुगली नदी जब बरसात के समय उफान पर होती थी तब वहां के आवागमन में बड़ी कठिनाइयां होती थी । 18वीं शताब्दी में वहां पर एक साधारण सा पुल भी बनाकर तैयार किया गया था । जो टिन का बनाया गया था लेकिन बरसात के समय वह टिन का पुल पानी में डूब जाता था ।वहां के लोगों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था । हुगली नदी को पार करने में काफी लोगों की जान भी पहले जा चुकी है ।
हावड़ा स्टेशन के बाद हावड़ा ब्रिज – 1906 में जब हावड़ा स्टेशन बनकर तैयार हुआ तब वहां पर काफी संख्या में ट्राफिक बढ़ गया था । हावड़ा स्टेशन पर ट्राफिक बढ़ जाने के कारण वहां पर सबसे पहले फ्लोटिंग ब्रिज बनाने का फैसला किया गया था लेकिन उसी समय प्रथम विश्व युद्ध प्रारंभ हो गया था जिसके कारण फ्लोटिंग ब्रिज बनाने की प्रक्रिया पूरी तरह से ठप्प हो गई थी । फिर बाद में ट्राफिक बढ़ने के कारण हावड़ा ब्रिज बनाने को जोर दिया गया था क्योंकि वहां पर स्टेशन बन जाने के बाद काफी यात्री वहां पर आने जाने लगे थे ।
इसलिए ब्रिटिश शासन के द्वारा 1922 को न्यू हावड़ा ब्रिज कमीशन का गठन करने के लिए ब्रिटिश शासन ने निविदाएं आमंत्रित की थी । ब्रिटिश सरकार ने वहां पर हावड़ा ब्रिज बनाने के लिए मंजूरी दे दी थी । हावड़ा ब्रिज की बात करें तो कई सालों से वहां पर ब्रिज बनाने की गुजारिश पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से की गई थी।
द्वितीय विश्व युद्ध में हावड़ा ब्रिज की स्थिति – द्वितीय विश्व युद्ध के समय हावड़ा ब्रिज पर कई हमले किए गए लेकिन ब्रिज इतना मजबूत था कि उसे किसी तरह की कोई भी क्षति नहीं हुई थी । जब हावड़ा ब्रिज 1942 को बनकर तैयार हो गया था तब इसके उद्घाटन में कोई बड़ा कार्यक्रम नहीं किया गया था क्योंकि जर्मनी के संबंध ब्रिटिश शासन से ठीक नहीं थे । उनको अंदेशा था कि जर्मनी के सैनिक हावड़ा ब्रिज पर बम धमाकों के माध्यम से हमला कर सकते हैं । इसी कारण हावड़ा ब्रिज का उद्घाटन नहीं किया गया था , किसी तरह का कोई भी बड़ा कार्यक्रम हावड़ा ब्रिज के प्रारंभ करने के दौरान नहीं किया गया था । 1943 को हावड़ा ब्रिज को पूरी तरह से लोगों के लिए खोल दिया गया था ।
हावड़ा ब्रिज बनने का प्रस्ताव – हावड़ा ब्रिज बनाने का पहला प्रस्ताव बंगाल सरकार ने सन 1862 में ब्रिटिश शासन को सौंपा था । कई समय से इस ब्रिज को बनाने की आवाज उठ रही थी । ब्रिटिश शासन ने जब देखा कि हावड़ा ब्रिज के बनने से ब्रिटिश शासन को भी कई तरह का फायदा होएगा तो ब्रिटिश शासन ने हावड़ा ब्रिज बनने को मंजूरी दे दी थी । बारिश के समय हुगली नदी जब उफान पर आ जाती थी तब ब्रिटिश शासन को भारत से कई तरह का सामान इधर से उधर करने में परेशानियों का सामना करना पड़ता था ।
बरसात के समय ब्रिटिश शासन का पूरा काम ठप हो जाता था क्योंकि हुगली नदी उफान पर आ जाती थी जिसके कारण विदेशों से यहां पर सामान नहीं आ पाता था और यहां से सामान विदेशों में नहीं जा पाता था । इसीलिए ब्रिटिश शासन ने हावड़ा ब्रिज बनाने की प्रक्रिया को जल्द से प्रारंभ करने की योजना बनाई थी । हावड़ा ब्रिज को किस तरह से बनाना है और हुगली नदी के आसपास की किस तरह की स्थिति है इन सभी बातों का जायजा लेने की जिम्मेदारी ईस्ट इंडिया कंपनी ने रेलवे कंपनी के चीफ इंजीनियर जार्ज टर्न बुल को सौंप दी थी । जॉर्ज टर्न बुल ने हावड़ा ब्रिज को बनाने की पूरी प्रतिक्रिया समझी और किस तरह से हावड़ा ब्रिज का निर्माण किया जाएगा इसका पूरा प्लान बनाया और ब्रिटिश शासन को सौंपा ।
हावड़ा और जर्मनी कंपनी – हावड़ा ब्रिज को बनाने के लिए सबसे पहले जर्मनी की कंपनी को कांटेक्ट मिला था । ब्रिटिश शासन ने जब हावड़ा ब्रिज को बनाने की प्रक्रिया पूरी तरह से तैयार कर ली थी तब उन्होंने कई कंपनियों को हावड़ा ब्रिज को बनाने के लिए टेंडर डालने के लिए आवेदन किया था । कई बड़ी-बड़ी कंपनियों ने हावड़ा ब्रिज को बनाने के लिए आवेदन पेश किए थे लेकिन ब्रिटिश शासन ने जर्मनी की एक बड़ी कंपनी को हावड़ा ब्रिज बनाने का कांटेक्ट मंजूर कर दिया था । जब ब्रिटिश शासन और जर्मनी के बीच संबंध ठीक नहीं थे तब ब्रिटिश शासन ने हावड़ा ब्रिज बनाने का कांटेक्ट जर्मनी से वापस ले लिया था ।
हावड़ा ब्रिज बनने में टाटा कंपनी का योगदान – हावड़ा ब्रिज को बनाने के लिए सबसे पहले कांटेक्ट जर्मनी की कंपनी को दिया गया था । जब जापान की कंपनी से यह कॉन्ट्रैक्ट वापस ले लिया था तब हावड़ा ब्रिज बनाने के लिए आवेदन प्रस्तुत किए गए थे । ब्रिटिश शासन ने हावड़ा ब्रिज को बनाने के लिए स्टील बनाने की पूरी जिम्मेदारी टाटा कंपनी को दे दी थी । टाटा कंपनी ने हावड़ा ब्रिज के लिए अच्छे स्टील के खंभे बनाकर तैयार किए , ब्रिज के लिए मजबूत सामान बनाकर तैयार किया था ।
इस ब्रिज को बनाने के लिए टाटा स्टील कंपनी ने तकरीबन 23500 टन स्टील का उत्पादन किया था और इस ब्रिज को बनाने में पूरी तरह की मदद की थी । हावड़ा ब्रिज को बनाने में तकरीबन 26500 टन स्टील का उपयोग किया गया था । यह पूरी दुनिया का सबसे लंबा एवं सबसे भारी ब्रिज है । पूरी दुनिया में इस तरह के कुल तीन ब्रिज हैं । यह हावड़ा ब्रिज हुगली नदी के दोनों तरफ सिर्फ चार पैरों पर टिका हुआ है । यह झूलता हुआ ब्रिज है । यह हावड़ा ब्रिज सबसे भारी एवं मजबूत ब्रिज है ।
ब्रेथवेट, बर्न एंड जोसेप कंपनी का ब्रिज बनाने में योगदान – हावड़ा ब्रिज बनाने की पूरी जिम्मेदारी ब्रेथवेट, बर्न एंड जोसेप कंपनी को सौंपी गई थी । इस ब्रिज को बनानेे में ब्रेथवेट, बर्न एंड जोसेप कंपनी का साथ टाटा स्टील कंपनी ने दिया था । जब 1922 को न्यू हावड़ा ब्रिज कमीशन का गठन किया गया था तब कई तरह के नियमों में बदलाव किए गए थे और हावड़ा ब्रिज को बनाने का काम प्रारंभ किया गया था ।
ब्रिज का नामकरण – जब यह हावड़ा ब्रिज बनकर तैयार हो गया था तब ब्रिटिश शासन के द्वारा इस ब्रिज का नाम न्यू हावड़ा ब्रिज रखा गया था लेकिन कुछ समय बीत जाने के बाद इस ब्रिज का नाम हावड़ा शहर के नाम पर ही रख दिया गया था । सभी लोग इस ब्रिज को हावड़ा ब्रिज के नाम से जानने लगे थे । इसके बाद जब हमारा देश आजाद हुआ तब 14 जून 1965 को इस ब्रिज का नाम बदल दिया गया था और इस ब्रिज का नाम हमारे भारत के महान व्यक्ति रविंद्र नाथ टैगोर जी के नाम पर रख दिया गया था ।
जब इस ब्रिज का नाम बदलने का प्रस्ताव रखा गया था तब सभी लोगों की सहमति से हावड़ा ब्रिज का नाम बदलकर रवींद्र सेतु रख दिया गया था और तभी से यह ब्रिज रवींद्र सेतु ब्रिज के नाम से जाना जाता है । वहां के आसपास के लोग एवं कई और लोग इस ब्रिज को हावड़ा ब्रिज भी कहते हैं ।
हावड़ा ब्रिज हादसा – 2005 में हावड़ा ब्रिज पर बहुत बड़ा हादसा हो गया था । हुगली नदी में एक जहाज जिसका वजन 1000 टन था वह जहाज हावड़ा ब्रिज से जाकर के टकरा गया था । परंतु किसी तरह की कोई भी क्षति हावड़ा ब्रिज को नहीं हुई थी क्योंकि यह सबसे भारी और अच्छी स्टील का बना हुआ ब्रिज था । यदि हम हावड़ा ब्रिज के बजन सहन करने की बात करें तो हावड़ा ब्रिज 60000 टन बजन सहन कर सकता है । कई सुधार हावड़ा ब्रिज में किए जाते हैं । इसकी सुरक्षा के लिए कई कंपनियों को ठेका दिया गया है जो इस ब्रिज की देखरेख करते हैं । आज हावड़ा ब्रिज के वजन सहन करने की क्षमता 90000 टन की हो चुकी है ।
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