मालवा के परमार वंश का इतिहास history of malwa in hindi

history of malwa in hindi

दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से मालवा के परमार वंश के इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं । चलिए अब हम इस लेख को पढ़ते हैं और मालवा के परमार वंश के बारे में जानते हैं । मालवा में परमार वंश के संस्थापक उपेंद्रराज थे । इस वंश को परमार वंश का नाम उपेंद्रराज ने दिया था । यदि हमें इस वंश का इतिहास जानना है तो सबसे पहले हमें उदयपुर प्रशस्ति के बारे में जानना होगा ।
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उदयपुर प्रशस्ति इस वंश के इतिहास का महत्वपूर्ण साक्ष्य है । परमार वंश के संस्थापक उपेंद्रराज ने इस वंश की राजधानी धारा को बनाई थी । उपेंद्रराज के दरबार में एक सीता नाम की कवित्री रहती थी । परमार वंश ने काफी संघर्ष किया था और परमार वंश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए हर्ष ने कई युद्ध लड़े थे । हर्ष ने ही परमारो को स्वतंत्रता दिलाई थी । हर्ष को ही परमार वंश की स्वतंत्रता का जन्मदाता माना जाता है । एक बार जब नर्मदा नदी के तट पर युद्ध हो रहा था तब हर्ष ने ही राष्ट्रकूट नरेश को अपनी बुद्धि एवं शक्ति से पराजित किया था ।
अपने पूरे वंश को राष्ट्रकूटो की अधीनता से मुक्त किया था । हर्ष बहुत ही बुद्धिमान एवं शक्तिशाली था । हर्ष ने हूण राजाओं की हत्या की थी और हत्या करने के बाद  हूणमंडल को अपने कब्जे में ले लिया था । इस तरह से हर्ष ने अपना शासन चलाया था । हर्ष के 2 पुत्र थे एक पुत्र का नाम मुंज व दूसरे पुत्र का नाम सिंधु राज था । मुंज हर्ष का दत्तक पुत्र था और हर्ष ने मुंज को ही अगला शासक घोषित किया था ।  मुंज को उत्तराधिकारी बनाने के बाद मुंज वाक्य पति मुंज के नाम से जाना जाने लगा ।
वाक्य पति मुंज ने अपनी शक्ति से कलचुरी शासक युवराज को हराया था ।कलचुरी शासक युवराज को हराकर त्रिपुरा को लूट लिया था । इसके बाद वाक्य पति  मुंज ने मेवाड़ के गुहिल वंश के शासक शक्ति कुमार को भी पराजित किया था और उसकी राजधानी आघात को लूट लिया था । इस तरह से मुंज ने कई युद्ध जीते थे लेकिन एक बार मुंज ने अपने मंत्री रुद्रादित्य की सलाह नहीं मानी और मुंज गोदावरी नदी को पार करके युद्ध करने के लिए चला गया था ।
यह दुश्मनों की चाल थी मुंज को गोदावरी नदी के पार बुलाने की और मुंज उनकी साजिश में फस गया था ।  मुंज को चारों तरफ से घेर लिया था , मुंज को बंदी बना लिया था । मुंज की बुरी तरह से हत्या कर दी गई थी । मुंज के बाद यहां का उत्तराधिकारी मुंज के छोटे भाई सिंधु राज को बनाया गया था । मुंज के बाद सिंधु राज को अगला परमार नरेश घोषित किया गया था । सिंधु राज ने अपनी चाणक्य नीति से सबसे पहले चालुक्य नरेश सत्या श्रय को पराजित किया था ।
कई युद्ध जीतने के बाद सिंधु राज चालुक्य शासक चामुंड राज से हार गए थे । इसके बाद राजा भोज यहां का शासक बना था । 1010 से 1055 ईसवी तक राजा भोज का यहां शासनकाल रहा था । भोज इस वंश का सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक राजा था । हमारे भारतीय इतिहास में भोज का काल आर्थिक समृद्धि के लिए जाना जाता है । ऐसा कहा जाता है कि राजा भोज के शासनकाल में जब कोई कवि एक श्लोक लिखता था तब उसको एक लाख मुद्रा इनाम में दी जाती थी ।
राजा भोज ने अपनी राज धानी उज्जैन से हटाकर शिप्रा नदी पर स्थित धारा में स्थापित की थी । राजा भोज का संघर्ष कल्याणी के चालुक्य से प्रारंभ हुआ था । भोज की सहायता  के लिए  कई लोग आए थे । राजा भोज की सहायता कलचुरी नरेश गांगेयदेव और राजेंद्र चोल ने की थी । 1024 को राजा भोज ने कोंकण विजय किया था । इसके बाद राजा भोज ने उड़ीसा के शासक इंद्ररथ को बुरी तरह से हराया था और इंद्ररथ की राजधानी आदिनगर को लूट लिया था । अंत में चंदेल शासक विद्याधर से पराजित हो गया था ।
भोज के सेनापति कुलचंद्र ने गुजरात के चालुक्य नरेश भीम प्रथम की राजधानी को लूटा था ।इसके शासनकाल के अंतिम समय में कलचुरी नरेश लक्ष्मी कर्ण के नेतृत्व में चालुक्य ने एक संघ बनाया था और इन सभी लोगों ने मिलकर भोज की राजधानी धारा पर आक्रमण कर दिया था । भोज पूरी तरह से चिंता में घिर गया था । इसी चिंता के कारण राजा भोज बीमार पड़ गया था ।  अंत में राजा भोज की मृत्यु हो गई थी । राजा भोज की मृत्यु के बाद 1305 इसवी में अलाउद्दीन खिलजी ने मालवा  को सल्तनत में मिला लिया था .
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