हिंद महासागर और प्रशांत महासागर का रहस्य व् इतिहास Hind mahasagar and prashant mahasagar history in hindi

Hind mahasagar and prashant mahasagar history in hindi

दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के रहस्य व् इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं । चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के रहस्य को जानते हैं ।

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हिंद महासागर – हिंद महासागर पूरे विश्व का तीसरा सबसे बड़ा सागर है । यह हिंद महासागर विशाल जल से भरा हुआ है । हिंद महासागर का जल खारा है । सभी महासागरों एवं पूरी पृथ्वी पर जितना जल है उस जल का 20% जल हिंद महासागर में भरा हुआ है । यह हिंद महासागर भारतीय उपमहाद्वीप में स्थित है । हिंद महासागर उत्तर में भारतीय उपमहाद्वीप , पश्चिम में पूर्व अफ्रीका , पूर्व में हिंद चीन , सुंदा दीप समूह और ऑस्ट्रेलिया स्थित है एवं दक्षिण में दक्षिण ध्रुवीय महासागर से घिरा हुआ है ।

हिंद महासागर दुनिया का एक ऐसा सागर है जिसका नाम किसी देश के नाम पर रखा गया है और उस देश का नाम हिंदुस्तान है । इसे संस्कृत भाषा में रत्नागिरी कहते हैं । रत्नागिरी का अर्थ होता है अनेक रत्नों से भरा हुआ । हिंद महासागर का इतिहास काफी प्राचीन समय का रहा है । हिंदू ग्रंथों में भी इसका उल्लेख किया गया है । हिंद महासागर और प्रशांत महासागर का पानी अलास्का में जाकर मिलता हैं ।

प्रशांत महासागर – प्रशांत महासागर सबसे बड़ा सागर है ।इसमें पानी चारों तरफ भरा हुआ है । प्रशांत महासागर में कई रहस्य छुपे हुए हैं । इसके पानी के अंदर कई ऐसे लवण तत्व मौजूद हैं जिसकी खोज के लिए कई वैज्ञानिकों ने रिसर्च किया है । सबसे पहले समुद्र पर रिसर्च करने के लिए पेटरब्यूक ने निश्चय किया था और समुद्र के इलाकों में रिसर्च करने के लिए चला गया था । इसके बाद बैलबोआ नामक वैज्ञानिक ने समुद्री जल का रिसर्च करना प्रारंभ किया था और कई रहस्य खोज निकाले थे । इसके बाद मागेमेनदान्या वैज्ञानिक ने सागर पर रिसर्च करना प्रारंभ किया था ।

इसके बाद हॉरिस ने समुद्र पर रिसर्च किया था । कई वैज्ञानिकों के द्वारा महासागरों पर रिसर्च किया गया था । कई ऐसी महत्वपूर्ण जानकारियां वैज्ञानिकों के द्वारा समुद्र पर रिसर्च करने के बाद पता चली थी । जिससे हमें समुद्री तटों का क्षेत्रफल एवं समुद्री तटों की गहराई मालूम पड़ी थी । प्रशांत महासागर का क्षेत्रफल 6,36,34000 वर्ग मील तक फैला हुआ है । प्रशांत महासागर की औसत गहराई लगभग 14000 फुट है और अधिकतर गहराई 35400 फुट है । प्रशांत महासागर की जो आकृति है वह आकृति त्रिभुजाकार की है ।

दुनिया के महासागर – पूरी पृथ्वी पर 70% जल स्थित है ।पहले समुद्र सिर्फ एक ही था । इसके बाद तीन समुद्र बन गए और आज की स्थिति में कई समुद्र मौजूद हैं । समुद्र के छोटे-छोटे समूहों को सागर कहते हैं । सागर का जो सबसे बड़ा समूह होता है उस समूह को महासागर कहते हैं । महासागर तीनों ओर से घिरा हुआ होता है और उस घिरे हुए समूह को समुद्र की खाड़ी कहते हैं । समुद्र का वह भाग जो चारों तरफ जल ही जल स्थित है उस भाग को महासागर कहते हैं ।

पृथ्वी का वह भाग जो विशाल जल से लबालब भरा हुआ होता है उस भाग को हम महासागर कहते हैं । पांच महासागर अभी स्थित हैं । पांच महासागरों के नाम इस प्रकार से हैं अटलांटिक महासागर , प्रशांत महासागर , दक्षिण महासागर , हिंद महासागर और आर्कटिक महासागर , यह पांचो दुनिया के विशाल महासागर हैं । इन सभी महासागरों में विशालकाय जल भरा हुआ है । महासागरों का जल अधिकतर खारा होता है । महासागरों का जल ज्यादातर पीने के लायक नहीं होता है ।

जब खारे जल में कोई व्यक्ति स्नान करता है तब उसका शरीर चिपचिपा सा हो जाता है । अधिक समय तक महासागर के जल में रहने से मनुष्य का शरीर गल भी सकता है क्योंकि खारे जल में नमक की मात्रा अधिक होती है । सभी महासागरों के पानी का घनत्व अलग अलग होता है । जिससे कुछ महासागरों का पानी मीठा होता है और कुछ महासागरों का पानी खारा होता है ।महासागरों का पानी पीने योग्य नहीं होता है । पृथ्वी पर 70% जल स्थित है ।

70% जल में से 15 से 20% जल ही मनुष्य के पीने योग्य होता है । बाकी 50% पानी पीने योग्य नहीं होता है क्योंकि उसमें कई तरह के लवण मौजूद होते हैं । जिसको पीने से मनुष्य को हानि हो सकती है ।

अटलांटिक महासागर और प्रशांत महासागर – प्रशांत महासागर तथा अटलांटिक महासागर का विस्तार दक्षिणी गोलार्द्ध एवं उत्तरी गोलार्द्ध में होता है , अटलांटिक महासागर और प्रशांत महासागर का विस्तार दोनोंं जगहों पर होता है । इसीलिए यह भूमध्य रेखा के उत्तर में अटलांटिक महासागर और प्रशांत महासागर का जल मीठा होता हैैैै लेकिन इस महासागर का कुछ जल पीनेे योग्य नहीं है । उत्तरी प्रशांत महासागर तथा दक्षिणी में स्थित दक्षिणी प्रशांत महासागर स्थित है ।

प्रशांत महासागर सबसे बड़ा महासागर है । क्योंकि प्रशांत महासागर में पूरी पृथ्वी पर स्थित जल का सबसे ज्यादा हिस्सा स्थित है । इसीलिए प्रशांत महासागर को विश्व का सबसे बड़ा महासागर कहा जाता है । प्रशांत महासागर में कई रहस्य छुपे हुए हैं । वैज्ञानिक प्रशांत महासागर में रिसर्च कर रहे हैं क्योंकि जो वैज्ञानिक प्रशांत महासागर पर रिसर्च कर चुके हैं उनका कहना है कि ऐसे कई रहस्य प्रशांत महासागर में छुपे हुए हैं जिसका पता लगाना बहुत ही जरूरी है । प्रशांत महासागर के जल का ग्लेशियरों से जाकर टकराना और जल का पिघल जाना बहुत ही रहस्यमई बात है ।

सबसे बड़ी बात यह है कि प्रशांत महासागर का जल ग्लेशियरों से टकराने के कारण मीठा हो जाता है और इस पानी का जल हल्का नीला हो जाता है । पृथ्वी के संपूर्ण भूभाग पर 70% जल स्थित है । यह जल 36,17,40,000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है ।प्रशांत महासागर के भीतर कई रहस्य छुपे हुए हैं और वैज्ञानिकों के द्वारा उन रहस्यों को जानने की कोशिश की गई है । प्रशांत महासागर के अंदर जल जंतुओं की एक रहस्यमई दुनिया है और उस रहस्यमई दुनिया की खोज के लिए कई वैज्ञानिकों के द्वारा रिसर्च किया गया है और अभी भी इस रहस्य को जानने के लिए खोज चालू है ।

सागर – लवणीय जल का वह बड़ा क्षेत्र जो महासागर से जुड़ा हुआ होता है उस क्षेत्र को सागर कहते हैं और आज कई सागर स्थित हैं । उन सागरों के नाम इस प्रकार से हैं कैस्पियन सागर , लाल सागर , मृत सागर , लापतेव सागर , भूमध्य सागर , उत्तर सागर आदि । हिंदू ग्रंथों एवं शास्त्रों में समुद्र एवं सागरों को सात भागों में विभाजित किया गया है । लवण का सागर, इक्षुरस सागर , घृत सागर , सुरा का सागर , क्षीर का सागर , दधि का सागर , मीठे जल का सागर आदि । भारत में सागर निम्न राज्यों से होकर गुजरता है ।

अंडमान एवं निकोबार दीप समूह , आंध्र प्रदेश , गुजरात , गोवा , कर्नाटक , केरल , ओडिशा , महाराष्ट्र , पुडुचेरी , तमिलनाडु , दमन और दीव एवं लक्ष दीप समूह भारत के समुद्र तटवर्ती राज्य हैं । समुद्र के जन्म के बारे में वैज्ञानिकों का यह कहना है कि समुद्र का जन्म लगभग 100 करोड़ पहले हुआ होगा । विश्व का सबसे बड़ा विशाल महासागर प्रशांत महासागर है क्योंकि यह सबसे अधिक वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है । इसमे विशालकाय पानी भरा हुआ है ।

इसीलिए यह प्रशांत महासागर विश्व का सबसे बड़ा महासागर कहलाता है । इस विशाल प्रशांत महासागर का क्षेत्रफल 16,62,40,000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है । सभी महासागर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं ।

प्रशांत महासागर और हिंद महासागर का रहस्य hind mahasagar prashant mahasagar ka rahasya- प्रशांत महासागर एवं हिंद महासागर का संपूर्ण जल अलास्का में जाकर के मिलता है । इन दोनों समुद्र के जल में एक रहस्य छुपा हुआ है । प्रशांत महासागर और हिंद महासागर का पानी आपस में नहीं मिलता है । यह रहस्य कई वैज्ञानिकों के द्वारा पता लगाया गया परंतु अभी तक इस रहस्य का कोई भी प्रमाण नहीं मिला है । कई वैज्ञानिकों के रिसर्च के बाद सभी वैज्ञानिकों का अलग-अलग तर्क सामने आया है ।

प्रशांत महासागर और हिंद महासागर का यह रहस्य तब सामने आया जब कैट स्मिथ फोटोग्राफर अलास्का ने हिंद महासागर और प्रशांत महासागर की फोटो लेने के लिए गए थे । जब उन्होंने यह देखा कि हिंद महासागर और प्रशांत महासागर का पानी आपस में नहीं मिल रहा है तब वह अचंभे में पड़ गया था और उस फोटोग्राफर ने वह फोटो इंटरनेट पर अपलोड कर ली थी ।

जब यह रहस्य का पता वैज्ञानिकों को लगा तब कई वैज्ञानिकों ने इस पर रिसर्च किया और इस रहस्य के बारे में जानने की कोशिश की । आखिर ऐसा क्यों हो रहा है ? दुनिया में कई ऐसे रहस्य हैं जिनका पता वैज्ञानिकों के द्वारा लगाया जा चुका है । परंतु समुद्र मेंं ऐसे कई रहस्य छुपे हुए हैं जिसका अभी तक कुछ भी पता नहीं चल सका है । कई वैज्ञानिकों के रिसर्च के बाद अलग-अलग तरह की बातें वैज्ञानिकों के द्वारा बताई गई हैं । जैसे कि एक वैज्ञानिक का कहना है कि प्रशांत महासागर का ज्यादातर पानी ग्लेशियर से पिघल कर यहां पर आता है ।

ग्लेशियर से पिघलने के कारण प्रशांत महासागर का जल हल्के नीले रंग का होता है । हिंद महासागर के पानी में लवण एवं नमक होता है ।कई लवणों के होने के कारण हिन्द महासागर के पानी का रंग गहरा नीला होता है । प्रशांत महासागर का जल मीठा होता है क्योंकि इसका जल ग्लेशियर से पिघल कर आता है । हिंद महासागर का जल खारा होता है क्योंकि इस पानी में नमक एवं लवण पाए जाते हैं । इसी कारण से दोनों महासागरों का पानी आपस में कभी नहीं मिलता हैं ।

कुछ वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि दोनो माहासगरो का पानी मीठा एवं खारा और दोनो माहासगरो के पानी का घनत्व एवं तापमान और लवणता अलग-अलग होता है । जिससे प्रशांत महासागर और हिन्द महासागर का जल आपस में नही मिलता । प्रशांत महासागर का पानी ग्लेशियरों से टकराता है जिससे इस का जल पिघलने लगता है और पानी मीठा हो जाता है । हिंद महासागर का जल खारा रहता है जिसके कारण हिंद महासागर और प्रशांत महासागर का जल आपस में नही मिलता है ।

हिंद महासागर के जल में कई लवण पाए जाते है जिसके  कारण यह झाग उत्पन्न कर देता है और दोनों महासागरों का पानी आपस में नहीं मिलता है । अलग अलग घनत्व से यह दोनों महासागरों का पानी आपस में मेल नहीं खाता है जिससे महासागरों का पानी आपस में घुलनशील नहीं हो पाता है । समुद्र को कई नामों से पुकारा जाता है । पायोधि , सागर , पारावार , उदधि , जलधि , नदीश , रत्नाकर , सिंधु , वारिधि आदि । प्रशांत महासागर और हिंद महासागर के इस रहस्य के बारे में कुछ वैज्ञानिकों का यह भी कहना है की दोनों महासागरों का घनत्व अलग-अलग होता है ।

जब दोनों माहासगरो पर सूरज की किरणे पड़ती हैं तब दोनों पानी का रंग बदल जाता है और यह दोनों महासागर आपस में नहीं मिलते हैं । दोनों महासागरों का जल रंगो के बदलने के कारण घुलनशील नहीं होता है ।

महासागरों में समुद्री जीव जंतुओं का रहस्य – वैज्ञानिकों के रिसर्च के बाद यह पता चला था कि महासागरों में कई प्रकार के जीव जंतु मौजूद हैं । वैज्ञानिकों के अनुसार समुद्री जीव दो प्रकार के होते हैं प्राणी और पौधे । समुद्र के अंदर कई ऐसे जीव जंतुओं के रहस्य छुपे हुए हैं जिनको जानने के बाद वैज्ञानिक आश्चर्यचकित हो गए थे ।समुद्र के अंदर विशालकाय ब्हेल एवं कई ऐसी मछलियां भी मौजूद हैं जिनको आंखों से नहीं देखा जा सकता है ।ब्हेल मछली के बारेेे में जब वैज्ञानिकों ने रिसर्च किया तब यह पता चला कि ब्हेल मछली की जीभ का बजन हाथी के बजन के समान होता है ।

वैज्ञानिकों ने जब अपने रिसर्च की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया तब यह पता चला कि महासागर में सबसे छोटा जीव प्लैकंटन है । वैज्ञानिकों के रिसर्च के बाद यह पता चला हैै कि महासागरों की गहराई में अद्भुत जीव जंतु एवं दुर्लभ पौधे पाए जाते हैं । कई तरह केे बैक्टीरिया भी महासागरों के भीतर मौजूद होतेे हैं । वैज्ञानिकों के अनुसार समुद्रर में 200000 से भी अधिक प्रजाति के जीव जंतु पाए जाते हैं । महासागरों में 35000 प्रजाति के बैक्टीरिया एवं 5000 प्रजाति के वायरस स्थित हैं ।

महानगरों में उठने वाली लहरों का रहस्य – वैज्ञानिकों के अनुसार समुद्र की लहरें 3 तरह से उठती हैं । वैज्ञानिकों के अनुसार समुद्र में उठने वाली लहरों का पहला कारण समुद्री सतह पर बहने वाली हवा है । जब तेज हवा चलती है तब समुद्र में लहरें उठती हैं । यह लहरें धीरे-धीरे जब भूमि की सतह पर पहुंचती हैं तब यह लेहरे  मंदी हो जाती हैं । इन लहरों की ऊंचाई 30 से 50 मीटर तक हो सकती है । परंतु हवा के कारण उठने वाली लहरें भूमि सतह पर पहुंचने के बाद मंदी हो जाती हैं ।

समुद्री सतह पर उठने वाली लहरों का दूसरा कारण भूकंप है । जब समुद्र के भीतर किसी तरह का भूकंप उत्पन्न होता है तब सुनामी लहरें उत्पन्न होती हैं । इस लहर का समुद्र के अंदर से पता नहीं चलता है । जब यह लहरें किनारों पर पहुंचती हैं तब बहुत अधिक विनाशकारी हो जाती हैं । इन लहरों को शांत होने में बहुत समय लगता है । जब इस तरह की लहरें उत्पन्न होती हैं तब यह लहरें आसपास के क्षेत्रों में  विनाशकारी रूप दिखाती है । समुद्री सतह पर उठने वाली लहरों का तीसरा कारण है चंद्रमा ।

जब चंद्रमा की किरणें पानी पर पड़ती हैं तब यह लहरें उत्पन्न होती हैं । चंद्रमा के कारण सिर्फ दो बार ही लहरें उत्पन्न होती हैं सुबह और शाम को । चंद्रमा के कारण यह लहरें उत्पन्न होती हैं । इस घटना का सबसे बड़ा कारण यह है कि जब यह घटना घटती है तब बहुत तेज लहरें समुद्री सतह पर उठती हैं । यह घटना चंद्रमा द्वारा पृथ्वी पर लगाए जाने वाले गुरुत्व बल के कारण घटित होती है । इस घटना के द्वारा उत्पन्न लहरें अधिक समय तक नहीं रहती हैं । कुछ ही समय में यह लहरें शांत हो जाती हैं ।

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