माता हरसिद्धि मन्दिर उज्जैन का इतिहास harsiddhi temple ujjain history in hindi

harsiddhi temple ujjain history in hindi

दोस्तों आज हम आपके लिए लाए हैं उज्जैन के हरसिद्धि मंदिर के बारे में जानकारी। हरसिद्धि मंदिर जो कि काफी प्रसिद्ध मंदिर है, जो 51 शक्तिपीठों में से एक बहुत ही चमत्कारी शक्तिपीठ है जिसकी कुछ चमत्कारिक मान्यताएं भी हैं तो चलिए शुरू से इस हरसिद्धि मंदिर के बारे में विस्तार पूर्वक जानते हैं।

harsiddhi temple ujjain history in hindi
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image source-https://en.wikipedia.org/wiki/Harsidhhi

हरसिद्धि मंदिर उज्जैन का एक प्रसिद्ध मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर में जो दो दीपस्तंभ हैं उन दोनों दीपस्तंभ का निर्माण राजा विक्रमादित्य जी ने करवाया था। ऐसा माना जाता है कि इन दोनों स्तंभों में 1011 दीपक हैं। इन दीपको को जलाने के पीछे एक मान्यता भी है। कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति अपनी कोई मुराद पूरी करना चाहे तो वह दिया यहां पर जलाए उसकी हर मुराद पूरी हो जाएगी। यह स्तम्भ 11 फुट ऊंचे हैं।

हरसिद्धि मंदिर की कुछ विशेष बातें- हरसिद्धि मंदिर एक ऐसा मंदिर है जहां के स्तंभों पर दीया लगाने से हर किसी की इच्छा पूरी हो सकती है।

इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि देवी सती की कोहनी इस स्थान पर गिरी थी, जिस वजह से यहां पर शक्ति पीठ की स्थापना हुई तभी से यह स्थान एक विशेष स्थान माना जाता है।

इस मंदिर के दोनों दीपस्तंभो को एक बार जलाने के लिए लगभग 4 किलो रूई लगती है, इसके अलावा कई लीटर तेल भी लगता है। जब स्तंभों के दीप को जलाया जाता है तभी अपनी मनोकामना बोली जाती है। मां हरसिद्धि उनकी मनोकामना पूरी करती हैं। इस मंदिर पर नवरात्रि के अवसर पर बहुत ही भीड़ भाड़ देखने को मिलती है क्योंकि इस स्थान पर कई धार्मिक आयोजन किए जाते हैं। यदि स्तंभों के दीयो को कोई भी जलाना चाहता है तो उनकी बुकिंग पहले से करनी पड़ती है तभी जाकर स्तंभों के दीए जलाए जाते हैं, यह दीपस्तंभ रोजाना ही जलाए जाते हैं। 

हरसिद्धि मां का मंदिर और विक्रमादित्य- ऐसा माना जाता है कि राजा विक्रमादित्य मां हरसिद्धि के परम भक्त थे। वह हर 12 साल में अपना सिर माता के चरणों में भेंट कर देते थे और उन्हें उनका सिर वापस प्राप्त हो जाता था लेकिन जब 12वीं बार उन्होंने अपना सिर माता के चरणों में भेंट किया तो उनका सिर वापस नहीं आया था इसीलिए इस मंदिर में आपको सिंदूर से लगे 11 रुंड सिंदूर लगे हुए दिखाई देंगे। कहते हैं कि यह 11 रुंड राजा विक्रमादित्य के मुंड हैं।

हरसिद्धि मंदिर के बारे में कथा- जब चंद मुंड नामक दो राक्षस चारों ओर आतंक मचा रहे थे तभी वह एक दिन कैलाश पर्वत पर कब्जा करने के लिए पहुंच गए। जब वह कैलाश पर्वत पर पहुंचे तो नंदी गणों ने उन्हें रोका लेकिन नंदी गढ़ उन चंद मुंड को नहीं रोक पाए। जब भगवान शिव शंकर को यह बात पता लगी तब उन्होंने चंडी देवी का स्मरण किया और फिर चंडी देवी ने उन दोनों राक्षसों का वध कर दिया। जब चंडी देवी ने शंकर भगवान को यह बात बताई तब शिव शंकर जी ने उनका नाम हरसिद्धि रख दिया और तभी से इस उज्जैन के इस स्थान पर मां हरसिद्धि विराजमान रहती हैं।

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