हमारी अपेक्षा पर निबंध Hamari apeksha essay in hindi

Hamari apeksha essay in hindi

Hamari apeksha – दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से हमारी अपेक्षा पर लिखे निबंध के बारे में बताने जा रहे हैं । तो चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और इस आर्टिकल को पढ़कर हमारी अपेक्षा पर लिखे निबंध के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करते हैं ।

Hamari apeksha essay in hindi
Hamari apeksha essay in hindi

हमारी अपेक्षा के बारे में – आज पूरी दुनिया सफलता प्राप्त करने के लिए निरंतर मेहनत कर रही है । किसी को ना तो अपने स्वास्थ्य की चिंता है और ना ही खान-पान की बस सुख सुविधाएं जुटाने के लिए मनुष्य निरंतर भागदौड़ कर रहा है । वह सफलता प्राप्त करने और सुख-सुविधा के साधन प्राप्त करने के लिए कुछ भी हद तक जाने तक को तैयार है । इसका कारण यह है कि मनुष्य अपने पड़ोसियों , अपने रिश्तेदारों को देखकर यह विचार मन में लाता है कि हमारी अपेक्षा इनके पास थोड़ा कम होना चाहिए ।चाहे धन की बात हो , जमीन जायदाद की बात हो , कपड़े , गहनों की बात हो सभी में व्यक्ति अपने पास सबसे अधिक होना मांगता है ।

यदि पड़ोस में किसी व्यक्ति के घर में कोई नया सामान आ जाए तो वह व्यक्ति अपने पड़ोसी से जायदा सामान लाने की चेष्टा मन में करता है क्योंकि वह पड़ोसी से अधिक धनवान व्यक्ति बनना चाहता है । कहने का तात्पर्य यह है कि दुनिया दिखावे में महारत हासिल करती जा रही है । दिखावा करने से ना तो कुछ प्राप्त होने वाला है और ना ही कोई सफल जीवन जीने वाला है । हमारी अपेक्षा किसी व्यक्ति के पास ज्यादा कुछ होना ही नहीं चाहिए । इस तरह की सोच रखने वाले व्यक्ति अपने जीवन को अंधकार में धकेल देते हैं । वह धन संपत्ति एकत्रित करने में ही अपना सारा जीवन बर्बाद कर देते हैं ।

ना तो वह सुख चैन से अपना जीवन जी पाते हैं और ना ही अपने परिवार के उज्जवल भविष्य को उज्जवल बना पाते हैं । जब व्यक्ति के घर में शांति और खुशी नहीं होती है तब वह व्यक्ति मोह माया के जाल में इस तरह से फंस जाता है कि उसे सिर्फ पैसा , धन ही दिखाई देता है । उसे हंसना आता ही नहीं है । यह तो घर परिवार की बात है । अब मैं आपको बता देना चाहता हूं कि जब स्कूल में सभी बच्चे शिक्षा प्राप्त करने जाते हैं तब कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जो दूसरे विद्यार्थी को देखकर उनसे बेहतर बनने की कोशिश करते हैं ।

सोचते हैं कि मेरे से ज्यादा ज्ञान इसके पास ना पहुंच जाए और वह यह आशा करते हैं कि मेरी अपेक्षा से ज्यादा इस पर गुरु की कृपा ना हो जाए । जबकि ऐसा करना सही नहीं है क्योंकि ऐसा सोचने से द्वेष भावना जागृत होती है । जब मनुष्य के अंदर द्वेष भावना जागृत होती है तब वह कुकर्म करने के लिए तत्पर रहता है । जब वह गलत कार्य करने लगता है तब वह अपने जीवन को बर्बादी के रास्ते पर ले जाकर खड़ा कर देता है । इसीलिए हमारी अपेक्षा शब्द को सभी को समझना चाहिए और ऐसी भावना कभी भी अपने मन में नहीं रखनी चाहिए क्योंकि जो व्यक्ति जितना कर्म करता है उसको उतना ही फल प्राप्त होता है ।

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