ग्वालियर किले का इतिहास इन हिंदी gwalior fort history in hindi
gwalior ka kila history in hindi
दोस्तों आज हम आपके लिए लाए हैं ग्वालियर किले का इतिहास इन हिंदी । आज हम आपको ग्वालियर के किले का इतिहास बताने जा रहे हैं । चलिए अब हम जानेंगे ग्वालियर के इतिहास के बारे में । ग्वालियर का इतिहास पढ़ा ही अद्भुत रहा है । जब हम इतिहास के बारे में पढ़ते हैं तब हमें बड़ा अचंभा होता है कि इस किले को बनाने के बाद कितने राजा महाराजाओं ने अपनी जान की बाजी लगाकर इस किले पर कब्जा किया था । कई राजाओं ने इस किले को हासिल करने के लिए अपनी जान तक दे दी थी । ग्वालियर का किला मध्य प्रदेश के ग्वालियर में स्थित है । ग्वालियर के किले को दो भागों में विभाजित किया गया है ।
ग्वालियर के किले का पहला भाग गुजरी महल के नाम से जाना जाता है एवं दूसरा भाग मन मंदिर के नाम से जाना जाता है । कुछ लोगों का यह मानना है कि आठवीं शताब्दी में इस किले को राजा मानसिंह तोमर ने बनवाया था । राजा मानसिंह तोमर ने इस किले को रानी मृगनयनी के लिए बनवाया था । आज यह महल संग्रहालय बन गया है । जहां पर कई लोग घूम कर आनंद लेते हैं । कुछ लोगों का यह भी मानना है कि इस किले को आठवीं शताब्दी में राजा सूरज सेन ने बनवाया था और सूरज सेन की 83 सी पीढ़ी ने इस किले पर राज किया था और 84 पीडी के वंशज यह किला हार गए थे । जब हम इतिहास को पढ़ते हैं वहां पर जो दस्तावेज हैं उनके हिसाब से 10 वीं शताब्दी में यह किला मौजूद था । परंतु 10 वीं शताब्दी से पहले यह किला था या नहीं था इसके साक्ष्य मौजूद नहीं है।
ग्वालियर किले में कुछ दस्तावेज मिले थे उन दस्तावेजों से यह मालूम पड़ता है की यह किला राजा महिराकुला के द्वारा बनवाया गया था । इस किले के अंदर जो सूर्य मंदिर है वह मंदिर राजा माहिराकुला द्वारा बनवाया गया था । कुछ लोगों का यह भी मानना है कि गुर्जरा प्रतिहरासिन ने महल के अंदर तेली का मंदिर बनवाया था । 10 वीं शताब्दी में यह किला चंदेला वंश के दीवान के पास था जब 11वीं शताब्दी आई तब मुस्लिम साम्राज्य के राजाओं ने इस किले पर हमला कर दिया और कब्जा कर लिया था । यह कहा जाता है कि महमूद गजनी ने इस किले पर 4 दिन तक कब्जा करके रख लिया था और इस किले को वापस करने के लिए 35 हाथी मांगे थे । जब महमूद गजनी को 35 हाथी दे दिए गए तब उसने इस किले को वापस कर दिया था ।
1505 में दिल्ली के सुल्तान सिकंदर लोदी ने भी इस किले पर कब्जा करने के लिए हमला किया था लेकिन वह इस किले को हासिल नहीं कर पाया था । कुछ समय बाद 1506 में सिकंदर लोदी का पुत्र इब्राहिम लोदी ने इस महल पर दोबारा से हमला करवा दिया था। इतिहास मैं लिखा गया है कि इस हमले में मानसिंह तोमर जी की मृत्यु हो गई थी । जब मानसिंह तोमर की मृत्यु हुई तब तोमर वंश ने अपने हथियार डाल दिए और हार मान ली थी । जब यह किला सिकंदर लोदी ने जीत लिया था तब मुगल बादशाह ने सिकंदर से यह किला छीन लिया था । सन 1542 में मुगलों से यह किला छीनने के लिए शेरशाह सूरी ने हमला कर दिया और यह किला जीत लिया था ।
1558 में बाबर के पोते अकबर ने इस किले पर हमला करवा दिया था और इस किले को जीत लिया था। अकबर ने इस किले को जीतने के बाद इस किले को कैदी खाना बना दिया था । इस किले में कई राजाओं को बंदी बनाकर रखा गया था और उनकी हत्याएं भी की गई थी । यह हत्याएं मनमंदिर महल में की गई थी। यह कहा जाता है कि औरंगजेब की मृत्यु के बाद यह किला गढ़ के राजाओं के पास चला गया था । महाड जी शिंदे ने गोहद राजा छतर सिंह को हराकर इस किले पर कब्जा कर लिया था लेकिन महाड शिंदे इस किले को ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों हार गए थे।
जब यह किला अंग्रेजों के हाथ में पहुंच गया था तब 3 अगस्त 1780 के कैप्टन परफॉर्म के नेतृत्व में अर्धरात्रि छापामारी की गई और ब्रिट्स सरकार ने इस किले पर कब्जा कर लिया था । लेकिन 1780 में अंग्रेजों ने इस किले को वापस कर दिया था । 4 साल बाद मराठों ने इस किले पर फिर से कब्जा कर लिया था । जब मराठा ने इस किले पर कब्जा किया तब अंग्रेजों ने उनके बीच बोलने से मना कर दिया था । क्योंकि गोहद राणा से अंग्रेजों को धोखा मिला था और इस किले पर दूसरे मराठा का कब्जा हो गया था । अंग्रेजों के युद्ध में दोलत राव सिंधिया इस किले को हार गए थे । यह कहा जाता है कि 1808 से 1844 के बीच में यह किला कभी अंग्रेजों के पास रहा है तो कभी राजाओं के पास रहा है । जब महाराजपुर मैं युद्ध हुआ तब जनवरी 1844 में यह किला अंग्रेजों के द्वारा सिंधिया वंश को सौंप दिया गया था । आज इस किले की सुंदरता बहुत अच्छी लगती है जब हम इस किले को देखते हैं तो हमें बहुत आनंद आता है ।
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