सूरदास पर निबंध Essay on surdas in hindi
Essay on surdas in hindi
सूरदास हिंदी जगत के महान कवि थे और उन्होंने कई कविताओं के माध्यम से लोगों को सीख दी। कवि सूरदास हिंदी साहित्य के कृष्ण भक्ति महाकाव्य के प्रमुख कवि हैं ।

हिंदी महाकाव्य के प्रमुख कवि सूरदास जी का जन्म 1535 में हुआ था और इनके जन्म स्थान की पुष्टि महाविद्वानों के द्वारा नहीं की गई है कुछ लोग कहते हैं कि उनका जन्म आगरा से मथुरा के बीच में जो सड़क है वहां पर हुआ था । हमारे सूरदास जी जन्म से ही अंधे थे फिर भी उन्होंने हमारे कृष्ण जी की बाल लीलाओं का सुंदर वर्णन किया है और कृष्ण लीला का चित्रण कर कई यथार्थ रंगो का चित्रण भी उन्होंने किया है । सूरदास जी के द्वारा पांच ग्रंथ लिखे गए सूरसाराबली , साहित्य लहरी , सूरसागर , और नल दमयंती ।
इन ग्रंथों में सूरदास जी के द्वारा कई पंक्तियां लिखी गई हैं और इन पंक्तियों के द्वारा हमारे समाज को जीने का रास्ता मिलता है और सच्चाई के रास्ते पर चलकर हम सभी नए समाज का निर्माण करें ये सब सीख मिलती है। कृष्ण भक्ति में लीन होकर उन्होंने कृष्ण भक्ति को बताया है और कृष्ण के बचपन की लीलाओं को भी अपने ग्रंथों में बताया है । सूरदास जी कृष्ण भक्ति में इस कदर खो गए थे कि कृष्ण भगवान के द्वारा उनकी मन की आंखें खुल गई और वह अपने मन की आंखों से कई ग्रंथ लिखते चले गए। उन्होंने अपने काव्य और ग्रंथों में रंग भर दिया ।
हमारे सूरदास जी वल्लभाचार्य जी के शिष्य थे और सूरदास जी अपने मित्रों और भक्तों के साथ मिलकर कृष्ण भक्ति के गीत गाया करते थे । सूरदास जी का पूरा जीवन कृष्ण भक्ति में ही बीत गया। वह हमारे हिंदी जगत के महान कवि थे और सूरदास जी के द्वारा हिंदी काव्य मैं कई ग्रंथ लिखें गए हैं जिन ग्रंथों के माध्यम से हमको ज्ञान प्राप्त होता है और उस ज्ञान को हम अपने जीवन में उतार कर आगे बढ़ते हैं सूरदास जी ने सदा ही धर्म का प्रचार किया है और सभी को धर्म के रास्ते पर चलने के लिए कहा है और उनका कहना है कि जो व्यक्ति सच्चाई और धर्म के रास्ते पर चलता है उसकी कभी भी हार नहीं होती है ।
सूरदास जी ने अंधे होने के बाद भी सच्चाई का रास्ता नहीं छोड़ा और वह सच्चाई के साथ कृष्ण भक्ति में लीन होते रहे। वो कृष्ण भगवान की आराधना और अपनी पंक्तियों में कृष्ण भक्ति के नाम को जपने लगे । सूरदास जी आजीवन अविवाहित रहे उन्होंने किसी से भी विवाह नहीं किया। हमारे सूरदास जी ब्रज भाषा का उपयोग किया करते थे और हमारे देश के वासी थे और हम सभी को गर्व है कि हमारे देश में सूरदास जैसे महा संत और कवि जन्मे हैं ।
जब हमारे सूरदास जी मथुरा वृंदावन की यात्रा करने के लिए निकले तो उनकी मुलाकात वल्लभाचार्य जी से हुई और सूरदास जी ने उनको गुरु बना लिया और उनसे शिक्षा प्राप्त करने लगे । वल्लभाचार्य जी ने सूरदास जी को सही रास्ता दिखाया और उनको शिक्षा दी और वह कृष्ण भक्ति में लीन हो गए। वल्लभाचार्य जी हमेशा सूरदास जी को गोवर्धन पर्वत पर ले जाते थे और वहां पर कई बार रुके भी है ।
सूरदास जी ने अपना पूरा जीवन कृष्ण भक्ति में लगाया और धीरे-धीरे समय गुजरने के बाद अपनी जिंदगी जीने के बाद सूरदास जी का स्वर्गवास लगभग 1620 में हो गया।
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