कुम्हार पर निबंध Essay On Pottery In Hindi Language
Essay on kumhar in hindi language
Pottery – दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार के बारे में बताने जा रहे हैं । चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और इस आर्टिकल को पढ़कर कुम्हार पर लिखें निबंध को पढ़ते हैं और कुम्हार के बारे में जानते हैं ।

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मिट्टी के घड़े बनाने वाले कुम्हार के बारे में about potter in hindi- कुम्हार उसे कहते हैं जो मिट्टी के घड़े बनाने का काम करता है । कुम्हार गधे या घोड़े के माध्यम से मिट्टी एकत्रित करके उस मिट्टी को गूंद कर अपनी कला से घड़े बनाने का , बर्तन बनाने का , मिट्टी के खिलौने बनाने का कार्य करता है ।कुम्हार शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के कुंभकार शब्द से हुई है । जिसका शाब्दिक अर्थ होता है मिट्टी के बर्तन बनाने वाला व्यक्ति जो कई तरह के बर्तन बनाकर बाजार में बेचकर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करता है ।
जब गर्मी का समय आता है तब कुम्हार मिट्टी का घड़ा , मटका , सुरई बनाकर हाट बाजारों में बेचकर काफी पैसा कमाता है । कुछ राज्यों में कुम्हार को भांडे शब्द से पुकारा जाता है । जो कुम्हार शब्द का समानार्थी शब्द है । यदि हम भांडे शब्द के शाब्दिक अर्थ की बात करें तो भांडे शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है बर्तन । कुम्हार को भांडे शब्द से संबोधित इसीलिए किया जाता है क्योंकि कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करता है । कुम्हार अपनी मेहनत और कला के लिए पहचाना जाता है ।
भारत देश के हर राज्यों के हर जिलों में कुम्हार जाति के लोग निवास करते हैं और मिट्टी के बर्तन , खिलौने बनाकर बाजारों में बेचकर पैसा कमाते हैं । कुम्हारों को प्रजापति कहां जाता है । कुम्हारों का 1 वर्ग प्रजापति नाम का उपयोग करते हुए खुद को प्रजापति कहते हैं । कुम्हार इस्ट समाज की देवी श्री यादे मां की पूजा करते हैं , वंदना करते हैं । कुम्हार जब सुबह उठकर मिट्टी का पहला बर्तन बनाता है तब वह भोलेनाथ की पूजा करता है । भोलेनाथ की पूजा करने के बाद वह बर्तन बनाना प्रारंभ करता है ।
भारत देश के कई राज्यों के ऐसे जिले हैं जहां के कुम्हार प्रसिद्ध हैं , जहां के बर्तन प्रसिद्ध हैं । भारत देश से मिट्टी के बर्तन बनकर विदेशों में बिकने के लिए जाते हैं । भारत देश के कुम्हार काफी मेहनती और हुनर के लिए पहचाने जाते हैं । भारत देश के पंजाब राज्य के अमृतसर में कुम्हारों को कलाल एवं कुलाल भी कहा जाता है । वहां पर भी कुम्हारों की यह जाति मिट्टी के बर्तन , खिलौने बनाने का काम करते हैं और अपना जीवन यापन करते हैं ।
कुम्हार अपनी मेहनत के दम पर बर्तन बनाते हैं और उन बर्तनों पर पेंटिंग करके सुंदर बना कर बाजारों में बेचने के लिए जाते हैं । जब ग्राहक बर्तनों की पेंटिंग की सुंदरता देखते हैं , बर्तनों पर हुई चित्रकारी की सुंदरता देखते हैं तब ग्राहक बर्तन की सुंदरता को देखकर उसको खरीदने के लिए तैयार हो जाते हैं और कुम्हार बर्तन के जो दाम मांगता है ग्राहक कुम्हार को वह पैसा देकर मटका या बर्तन खरीद लेता है । गर्मियों के समय कुम्हार के द्वारा बनाए गए मटको की दुकाने बाजारों में लगाई जाती है और सभी कुम्हार गर्मी के सीजन में लाखों रुपए कमा कर अपना जीवन चलाते हैं ।
दिवाली के समय कुम्हार सुंदर-सुंदर , रंग बिरंगे दिए बनाते हैं । जब कुम्हार दिए बाजार में बेचने के लिए जाता है तब भारत के लोग उन दियो को खरीद कर अपने घर पर ले जाते हैं और उन दिनों में तेल डालकर दीपक जलाते हैं । जब दिवाली के समय ग्राहक कुम्हार से दीपक खरीदना है तब वह कुमार उस पैसे से अपने परिवार के लिए कपड़े , मिठाई खरीद कर ले जाता है और कुम्हार बड़े धूमधाम से दिवाली का त्यौहार मनाता है ।
कुम्हार की उत्पत्ति की कथा के बारे में – भारत देश में कुम्हार की उत्पत्ति किस तरह से हुई और किस तरह से कुमार जाति कई वर्गों में विभाजित हुई इसके बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं । कुम्हार वैदिक भगवान प्रजापति के नाम का उपयोग करते हैं । हिंदू कुम्हारों का एक वर्ग खुद को प्रजापति कहकर संबोधित करता है । इसके बारे में एक प्रचलित कथा भी कहीं जाती है । अब हम आपको कुम्हार की उत्पत्ति की कथा सुनाने जा रहे हैं । एक बार सृष्टि का भविष्य बनाने बाले ब्रह्मा जी ने अपने सभी पुत्रों को एकत्रित किया और अपने सभी पुत्रों को गन्ने वितरित किए ।
जब ब्रह्मा जी ने अपने सभी पुत्रों को गन्ने वितरित किए तब उनके सभी पुत्रों ने अपने हिस्से के गन्ने खा लिए थे । परंतु उनमें से एक पुत्र जो कुम्हार था उसने अपने हिस्से का गन्ना नहीं खाया क्योंकि वह उस समय काम में व्यस्त था । जिसके कारण उसने अपने हिस्से का गन्ना एक मिट्टी पर रख दिया और वह उस गन्ने को खाना भूल गया था । जब वह गन्ना मिट्टी के संपर्क में आया तब उस मिट्टी में से गन्ने का एक पौधा उगने लगा था । इस तरह से वह गन्ना पौधे के रूप में विकसित हुआ । जब कुछ समय गीत जाने के बाद ब्रह्मा जी ने अपने सभी पुत्रों को बुलाया और अपने सभी पुत्रों से गन्ना वापस करने के लिए कहा सभी ने ब्रह्मा जी को यह बताया की हम सभी ने आपके द्वारा दिया गया गन्ना खा गए हैं ।
कहने का तात्पर्य यह है कि सभी ने अपने हिस्से के गन्ने खा लिए थे इसलिए वह ब्रह्मा जी को गन्ने वापस नहीं लौटा सके थे । जब कुम्हार ब्रह्मा जी के सामने गन्ना ही नहीं बल्कि गन्ने का पौधा लेकर के खड़ा हो गया था । कुम्हार ने उस गन्ने के पौधे को ब्रह्मा जी को भेंट में दे दिया था । ब्रह्मा जी उस कुम्हार के काम को देख कर , काम के प्रति निष्ठा को देखकर ब्रह्मा जी ने उसको पुरस्कृत करने का विचार बनाया था । ब्रह्मा जी ने उस कुम्हार को आशीर्वाद दिया कि अब तू प्रजापति के नाम से पहचाना जाएगा । इस तरह से प्रजापति कुम्हार की उत्पत्ति के बारे में यह कथा प्रचलित है ।
भारत की कुम्हार जाति के वर्गीकरण के बारे में – भारत देश के सभी राज्यों के सभी जिलों में कुम्हार जाति के लोग निवास करते हैं । भारत के हिंदू धर्म में , हिंदुओं में कुम्हार जाति को निसंदेह निम्नतम शूद्र वर्ग में रखा गया है । कुम्हार जाति के अधिकतर लोग मिट्टी के घड़े , खिलौने बनाने का कार्य करते हैं । इसके साथ ही कुम्हार जाति को निम्न दो वर्गों में विभाजित किया गया है । कुम्हारों का पहला वर्ग शुद्ध कुम्हार है । कुम्हारों का दूसरा वर्ग अशुद्ध कुम्हार है । इस तरह से कुम्हार जाति को दो वर्गों में विभाजित किया गया है । भारत देश में कुम्हारों के कुछ समूह भी हैं जिनके नाम इस प्रकार से हैं । लाद कुम्हार , राणा कुम्हार , गुजराती कुम्हार तेलंगी कुम्हार आदि ।
इस तरह से यह भारत के कुम्हार जाति के कुछ समूह हैं । सबसे पहले संस्कृत शब्द से कुम्हार शब्द की उत्पत्ति हुई थी । जिसमें कुम्हार को बर्तन बनाने के कारण कुम्हार नाम दिया गया था । इसके बाद कुम्हार जाति के कुछ वर्गों ने प्रजापति शब्द की उत्पत्ति कर ली और अपने आपको कुम्हार कहने लगे थे ।
भारत देश में कुम्हारों की व्याप्ति के बारे में – भारत देश के सभी राज्यों में कुम्हार रहते हैं । जो मिट्टी के बर्तन बनाकर अपने परिवार का भरण पोषण करने का काम करते हैं । कुम्हारों के माध्यम से बनी मटकी से ठंडा ठंडा पानी हम सभी को पीने को मिलता है । भारत के हिमाचल प्रदेश के चम्वा के कुम्हार अपनी मेहनत और कला से सुराही , घड़े , अनाज संग्राहक , बर्तन एवं बच्चों के खेलने के खिलौने इत्यादि बनाने में माहिर हैं । यह कुम्हार अपनी चित्रकारी के लिए भी पहचाने जाते हैं । यह कुम्हार बर्तनों , खिलौनों पर रंग बिरंगे रंगों को रंग कर बाजारों में बेचकर काफी पैसा कमाते हैं ।
पूरे भारत में कुम्हार के द्वारा बनाए गए बर्तन बाजारों में बिकते हैं । हिमाचल प्रदेश ही नहीं बल्कि भारत के महाराष्ट्र राज्य में भी कुम्हारों के द्वारा बनाए गए मिट्टी के बर्तन प्रसिद्ध हैं । महाराष्ट्र के कोल्हापुर के कुम्हार पूरे भारत में प्रसिद्ध है । यहां की मिट्टी के बर्तन भारत के कोने कोने तक बिकने के लिए जाते हैं । महाराष्ट्र के सतारा में भी कुम्हार अपने बर्तनों को बनाकर बेचने का काम करते हैं । नागपुर विदर्भ के कुम्हार भी सुंदर-सुंदर मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए जाने जाते हैं । भंडारा गोंदिया के कुम्हार मिट्टी के सुंदर-सुंदर खिलौने बनाकर उनमें चित्रकारी करके बाजारों में बेचते हैं ।
यह कुम्हार भी अपनी सुंदर कला के लिए पूरे भारत में प्रसिद्ध है । सांगली सोलापुर के कुम्हार भी सुंदर-सुंदर मटके बनाने के लिए पहचाने जाते हैं । दोस्तों पुणे मे जो कुम्हार जाति के लोग रहते हैं वह मराठी भाषा बोलते हैं और जब पुणे के कुम्हार किसी को पत्र लिखते हैं तब वह उस पत्र में देवनागरी लिपि का उपयोग करते हैं । इसी तरह से भारत देश के मध्यप्रदेश राज्य में भी कई प्रसिद्ध कुम्हार रहते हैं । जीनकी कला के चर्चे भारत के चारों तरफ होते रहते हैं ।मध्य प्रदेश राज्य में जायदातर चका रेटी कुम्हार एवं हथरेटी कुम्हार रहते हैं ।
जो चाक को अपने हाथों से घुमाकर मिट्टी के सुंदर-सुंदर बर्तन बनाते हैं । जिन बर्तनों को बनाने के लिए मध्य प्रदेश के कुम्हार अपने हाथों से काफी मेहनत करते हैं । इसलिए मध्य प्रदेश के कुम्हार हथरेटी कुम्हार कहलाते हैं । मध्य प्रदेश के दतिया , छतरपुर , टीकमगढ़ , सतना , पन्ना , सीधी , शहडोल जिलों में भी कुम्हार रहतेे हैं । यहां के अधिकतर कुम्हार अनुसूचित जनजाति से ताल्लुक रखते हैं एवं बाकी शेष जगहों पर जो कुम्हार रहते हैं वह अन्य पिछड़ेे वर्ग मे आतेे हैं । दोस्तों भारत देेश के मध्य प्रदेश के बाद भारत के राजस्थान राज्य में भी कुम्हारों का एक समूह निवास करता है ।
यह कुम्हार भी मिट्टी केेेेेेेे बर्तन बनाने का काम करते है । राजस्थान राज्य में रहने वाले कुम्हारों के लगभग 6 उप समूह निवास करते हैं । जिन 6 उप समूह केे कुम्हारों के नाम इस प्रकार से हैं । मालवी कुम्हार , तिमरिया कुम्हार , माथेरा कुम्हार , खेतेरी कुम्हार , कुमावत कुम्हार , मारवाड़ा कुम्हार आदि । इन सभी 6 उप समूहों के कुम्हारों को किसी सामाजिक कार्यक्रम में इनका स्थान उच्च जातियों एवं हरिजनों के मध्य का है । भारत देश के राजस्थान के बाद बिहार यूपी एवं झारखंड में भी कुम्हारों का समूह रहता है और अपनी कला के माध्यम से बर्तन बनाकर बेचता है ।
उत्तर प्रदेश एवं बिहार मे जो कुम्हार जाति निवास करती है । दोनों राज्यों में कुम्हार जाति का वर्गीकरण एक समान है और इन राज्यों में कुम्हारों की जाति मे समाज के लोग कनौजिया कुम्हारों का सम्मान किया जाता है । इन राज्यों में कनौजिया कुम्हारों को पंडित भी कहा जाता है । परंतु कनौजिया कुम्हार असली ब्राह्मण नहीं होते हैं । यह असली ब्राह्मणों से भिन्न होते हैं । यहां पर माघीय कुम्हार भी निवास करते हैं । यह कुम्हार कनौजिया कुम्हारों से नीचे होते हैं । यहां पर तूकरना कुम्हार एवं गंधेरे कुम्हारों को अछूत वर्ग के लोगों में सम्मिलित नहीं किया जाता है ।
झारखंड के जो कुम्हार हैं वह अधिकतर बांग्ला भाषा बोलते हैं । झारखंड में बांग्ला भाषा बोलने वाले कुम्हारों की जनसंख्या अन्य कुम्हारों की जनसंख्या की तुलना में अधिक हैं । यहां पर भतक , पाल , बेरा , कुंभकार , प्रधान चौधरी , आदि उपनाम बाले कुम्हार भी रहते हैं जिन कुम्हारों को खुंटकारी कुम्हार भी कह कर संबोधित किया जाता है ।
ग्वालियर के कुम्हार की एक और कथा के बारे में – ग्वालियर के कुम्हार के बारे में छिछदी कुम्हार का यह कहना है कि एक बार 33 कोटी देवी देवताओं ने एक जग्ग करने का विचार बनाया था । जिस जग्ग मे सृष्टि के रचयिता विष्णु भगवान , ब्रह्माा जी और शंकर भगवान को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था । जब इस जग्ग की तैयारी की जा रही थी तब कुछ देवी देवताओं ने यह कहा था कि इस जग्ग में उपयोग किए जाने वाले बर्तन कौन बनाएगा । जिस समय यह यज्ञ किया जा रहा था उस समय मिट्टी के बर्तनों को अपने हाथों से बनाया जाता था और जो व्यक्ति मिट्टी के बर्तन अपने हाथों से बनाता था उस व्यक्ति को हथरेटीया कहां जाता था ।
मिट्टी के बर्तन बनाने वाले व्यक्ति को ही जग्ग मेे उपयोग में आने वाले बर्तन बनाने के लिए कहा गया था । जब वह व्यक्ति मिट्टी के बर्तन बना रहा था तब उन सभी बर्तनों में से एक बर्तन चटक गया था । जिस समय वह बर्तन चटका था उस समय बर्तन बनाने वाले व्यक्ति के पास पानी खत्म हो गया था । जब उस बर्तन बनाने वाले व्यक्ति ने चटके हुए बर्तन को जोड़ने के लिए अपने थूक का उपयोग किया तब वह बर्तन जुड़ गया था । बर्तन को थूंंक से जोड़ने के कारण वह बर्तन झूठे हो गए थे । जब यह जग्ग किया गया तब यह जग्ग सफल नहीं हो पाया था ।
देवी देवताओं ने उस व्यक्ति को बहुत कोसा और वहां के लोगों ने भी उस व्यक्ति को भला बुरा कहां था । जब यह बात विष्णु भगवान , ब्रह्मा जी और शंकर भगवान को पता चली तब इन तीनों की शक्ति से जग्ग के बर्तन बनाने की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी थी । मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए भगवान की शक्ति से एक कुम्हार को बनाया गया था । भगवान की शक्ति से कुम्हार उत्पन्न हुआ था । भगवान ने उस कुम्हार को जग्ग के लिए बर्तन बनाने के लिए कहा था । उस कुम्हार ने भगवान से कहा कि मैं बर्तन तो बना दूंगा परंतु मुझे मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए सभी साधन चाहिए ।
इसके बाद विष्णु भगवान ने मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए कुम्हार को सुदर्शन चक्र दिया । इसके बाद शंकर भगवान ने मिट्टी के बर्तन को बनाने के लिए अपनी पिंडी दी । शंकर भगवान के द्वारा जो पिंडी दी गई थी वह पिंडी चाक की धुरी बनी थी और विष्णु भगवान ने जो सुदर्शन चक्र दिया था । उस सुदर्शन चक्र ने चाक की भूमिका निभाई थी । इसके बाद मिट्टी के बर्तनों को बन जाने के बाद मिट्टी के बर्तनों को काटने के लिए ब्रह्मा जी के द्वारा जनेऊ का डोरा किया गया था । कुम्हार ने इस डोरे का उपयोग मिट्टी के बर्तन को काटने के लिए किया था ।
इस तरह से ग्वालियर के कुम्हार अपनी उत्पत्ति मानते हैं । इस तरह से कुम्हार ने जग्ग के लिए बर्तन बनाए थे और जग्ग सफल रहा था ।
Essay On Pottery In Hindi –
एक कुम्हार अपनी कला के माध्यम से सांस्कृतिक चित्रकारी करके बर्तन को सुंदर बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देता है । जब एक कुम्हार अपनी चित्रकारी कला से मटके को रंग बिरंगे कलर के माध्यम से रंगता है तब मटके की सुंदरता देखने के लायक होती है । जो भी मटके को देखता है वह मटके को देखकर अपने जीवन में आनंद का अनुभव करता है । मिट्टी के मटके की सुंदरता देखनी है तो कुम्हार के पास जाकर देखो । जब कुम्हार मिट्टी के खिलौने , मटको और बर्तनों को बनाता है तब उस कुम्हार की मेहनत देखने के लायक होती है ।
एक कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाने के बाद अपनी मेहनत से अपनी कला से रंग भरकर बर्तनों को , खिलौनों को सुंदर बनाता है ।कुम्हार मिट्टी के बर्तनों को सजाता है । कुम्हार के द्वारा बनाए गए मिट्टी के बर्तनों का उपयोग हम सभी अपने घर में करते हैं । प्राचीन समय से ही कुम्हारों के द्वारा बनाए गए बर्तन हम अपने घरों में उपयोग करते हैं । कुम्हार के द्वारा बनाए गए सुंदर-सुंदर मिट्टी के दीए बड़े ही प्यारे लगते हैं । कुम्हार के द्वारा बनाए गए मिट्टी के खिलौने बच्चों को बहुत प्यारे लगते हैं । बच्चे जब खिलौने बिकते हुए देखते हैं तब वह खिलौने की सुंदरता को देखकर मोहित हो जाते हैं और मिट्टी के खिलौनों से खेलकर अपने जीवन में आनंद ही आनंद प्राप्त करते हैं ।
प्राचीन समय में हम मिट्टी के तवे पर रोटी सेकने का काम करते थे । जब चूल्हें पर मिट्टी का तवा रखकर रोटियां सेकते थे तब उन रोटियों को खाने का आनंद ही आनंद आता था । कुम्हार ने मिट्टी को रौंद रौंदकर कई तरह के सामान बनाकर हम को दिए हैं । कुम्हार की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी ही कम है । कुम्हार ने मिट्टी को जीवन देने का काम किया है ।कुम्हार ही हैं जो मिट्टी को सुंदरता देकर हमको नए नए बर्तन बना कर देता है । कुम्हार की मेहनत के बाद ही हमको मिट्टी के बर्तन हम सभी को मिलते हैं ।
short essay on potter in hindi –
मिट्टी के बर्तनों का निर्माण करने वाला व्यक्ति शिल्पकार कहलाता है । वह अपनी शिल्प कला से बर्तन , घड़े , मटके , सुराही , मिट्टी के बर्तन , खिलौने आदि बनाने का कार्य करता है । कुम्हार अपनी मेहनत और लगन से मिट्टी के बर्तन बनाता है और उन बर्तनों को बाजारों में बेचकर अपना जीवन यापन करता है । कुम्हारों के आदि पुरुष महर्षि अगस्त्य है । कुछ लोगों का यह मानना है कि महर्षि अगस्त्य के द्वारा ही सबसे पहले चाक घुमाकर बर्तनों का आविष्कार किया गया था ।
भारत के कुछ राज्यों में रहने वाले कुम्हार अपने आप को आदि यंत्र कला का प्रवर्तक भी कहते है । यदि कुम्हार की उपजाति की बात करें तो भारत के अलग-अलग प्रदेशों में अलग अलग उपजातियां निवास करती हैं । भारत के कुम्हार अपनी शिल्प कला की पहचान पूरी दुनिया में विकसित कर चुके हैं । जब भारत में रहने बाले कुम्हार अपनी मेहनत और लगन से चाक घुमाकर अपने हाथों की कला से मिट्टी के बर्तन का निर्माण करता है और उस मिट्टी के बर्तन पर अपनी चित्रकारी से कई तरह के रंग भरता है तब उस बर्तन की सुंदरता देखने के लायक है ।
भारत में रहने वाले कुम्हार की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है । कुम्हार जाति के लोग जब बर्तन बनाना प्रारंभ करते हैं तब वह सबसे पहले शंकर भगवान की पूजा , अर्चना करते हैं क्योंकि शंकर भगवान के द्वारा दी गई पिंडी से ही चाक की धुरी बनी थी । यही कारण था कि मिट्टी के बर्तन को बनाने वाले व्यक्ति को कुम्हार कहां गया था । जो अपनी हस्तकला के लिए पूरी दुनिया में पहचान बना चुका है ।
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