गुरुकुल शिक्षा पद्धति पर निबंध Essay on prachin shiksha pranali

Essay on prachin shiksha pranali

हेलो फ्रेंड्स कैसे हैं आप सभी,दोस्तों आज की हमारी पोस्ट Essay on prachin shiksha pranali आप सभी के लिए बहुत ही शिक्षाप्रद साबित होगी और इस पोस्ट में हम जानेंगे कि प्राचीन काल में गुरुकुल में कैसे शिष्यों को पढ़ाया जाता था और पहले से अभी तक हमारे देश में क्या परिवर्तन आये,दोस्तों हमारे समाज में प्राचीनकाल से अभीतक शिक्षा प्रणाली में बहुत अंतर आया है,

Essay on prachin shiksha pranali
Essay on prachin shiksha pranali

पहले के जमाने में मां बाप अपने बच्चों को गुरु आश्रम यानी गुरुकुल में शिक्षा लेने के लिए भेजते थे,शिक्षा का ये काल लगभग 5 साल या 7 साल से शुरु होता था और उसकी युवा उम्र तक यह काल चलता था इसमें वह अपने गुरु के साथ रहता था इस गुरुकुल में गुरुओ के द्वारा शिक्षा दी जाती थी

गुरुकुल में हमारे जीवन से जुड़ी बहुत सी बातें बताई जाती थी उन्हें अच्छे संस्कार दिए जाते थे उन्हें अनुशासन को अपने जीवन में अपनाने की सलाह दी जाती थी जिससे वह जीवन में हमेशा आगे बढ़े.

विद्यार्थी जीवन में अनुशासन बहुत ही जरूरी होता है,गुरुकुल में सभी सुबह उठकर नहाते थे,अपने गुरु को प्रणाम करते थे और फिर योगाभ्यास और पूजा पाठ करने के बाद गुरु से शिक्षा ग्रहण करते थे,गुरुकुल के नियम शिष्यों को एक अच्छा इंसान बनाने के लिए होते थे,सभी शिष्य खाना खाकर दोपहर के टाइम भिक्षा मांगने के लिए जाते थे इसमें गरीब से अमीर सभी शिष्य शामिल होते थे और शाम को अपने गुरु आश्रम को आ जाते थे और श्याम को गुरु से शिक्षा लेकर सो जाते थे.

दोस्तों गुरुकुल के नियम  एक शिष्य को अच्छा इंसान बनाने के लिए काफी होते थे गुरु अपने शिष्य को बड़ों का आदर करना सिखाते थे उनको जीवन में आ रही आने वाली परेशानियों का सामना करना सिखाते थे जिससे वह अपने जीवन में आगे बढ़ता जाए और कभी भी उसको परेशानी से जूझना पड़े तो वह उन परेशानियों का सामना कर सके,गुरुकुल में शिष्यों को सभी तरह की शिक्षा दी जाती थी जैसे कि धनुष बाण चलाना योगाभ्यास करना नई-नई कलाएं और ध्यान करना सिखाना.

गुरुकुल में आने के बाद विद्यार्थी को वही पर रखा जाता था जब तक कि उसकी शिक्षा पूरी ना हो जाए,गुरुकुल में शिष्यों को अपने परिवार की तरह रखा जाता था उनको हर तरह से मजबूत बनाने मैं उनके गुरु सहयोग करते थे

गुरुकुल में अमीर गरीब सभी तरह के शिष्य आ सकते थे और गुरुकुल में आने के बाद किसी से भी लेन-देन की बात नहीं की जाती थी जो शिष्य शिक्षा पूरी लेने के बाद अपनी इच्छा से देना चाहे वह दे सकता था,गुरुकुल में गरीब छात्रों से कुछ भी मांगने का जोर नहीं दिया जाता था वह अपनी इच्छा से कुछ भी देना चाहें तो दे सकते हैं थे

दोस्तों गुरुकुल हमारे भारत देश में काफी पुराने समय से चले आ रहे हैं गुरुकुल के गुरु जैसे की वशिष्ठ मुनि,भरद्वाज वाल्मीकि जैसे महान ऋषि थे जैसे कि वशिष्ठ ऋषि के आश्रम में श्री राम और लक्ष्मण ने शिक्षा ग्रहण की थी जिनके आधार हमारे लिए बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है और हमको उनसे आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है.

श्रीराम ने अपने गुरु का नाम हमेशा हमेशा के लिए अमर कर दिया क्योंकि उनके द्वारा दी हुई शिक्षा श्री राम की धनुष विद्या,हर तरह की विद्या,उनके आदर्श उनको सबसे आगे पहुंचाती है इसी तरह वाल्मीकि जी भी अपने समय के एक महान महान ऋषि थे जिन्होंने लव-कुश जैसे महान योद्धा को अपने आश्रम में शिक्षा दी उन्होंने अपने गुरु की दी हुई शिक्षा से दुनिया में अपने गुरु के आश्रम की महिमा को पूरे जग में फैलाया.

गुरुकुल हमारे देश के लिए बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण होते थे आजकल के जमाने में बहुत सारे ऐसे लोग होते हैं जो अपने बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलवा देते हैं उनका बच्चा स्कूल के बाद कहां पर जाता है या आता है कोई ज्यादा खबर नहीं दी जाती और श्याम को बच्चा अपने घर पर आ जाता है और अपने होमवर्क को करता है

लेकिन गुरुकुल में सभी शिष्य अपने गुरु आश्रम चले जाते थे और पूरी शिक्षा ग्रहण करने के बाद कई सालों के बाद ही अपने घर की ओर आते थे जिससे उनका पूरा ध्यान अपनी पढाई की ओर होता था और वह जिंदगी में बहुत आगे बढ़ते थे और कुछ भी चीज समझने में उनको आसानी होती थी क्योंकि उनके पास सिर्फ पढ़ाई की जिम्मेदारी होती थी.

गुरुकुल में गुरु अपने शिष्यों को पूरी शिक्षा प्रदान करने के बाद उनके मां-बाप से या उनसे गुरु दक्षिणा में कुछ भी मांग सकते हैं थे और गुरु के द्वारा दक्षिणा में मांगी हुई वास्तु देते थे,प्राचीन काल में ऐसे कई उदाहरण हमको देखने को मिले हैं जैसे कि अर्जुन को द्रोणाचार्य जी ने शिक्षा दी और द्रोणाचार्य ने अर्जुन को दुनिया का सबसे सफल धनुर्धर बनाने का वचन दिया लेकिन एकलव्य भी एक सफल धनुर्धर बनना चाहता था

एकलव्य ने द्रोणाचार्य से शिक्षा ग्रहण करने की बात कही लेकिन द्रोणाचार्य ने उसको मना कर दिया तो एकलव्य छुप-छुप के द्रोणाचार्य की धनुष विद्या सीखते थे. जब द्रोणाचार्य को पता चला तो उन्होंने एकलव्य से मुलाकात कर उससे गुरु दक्षिणा के बदले उसका अंगूठा मांग लिया तो एकलव्य ने बिल्कुल भी नहीं सोचा की मैं इस अंगूठे के बिना एक सफल धनुर्धर नहीं बन पाऊंगा,उसने बस अपने गुरु को दक्षिणा में अपना अंगूठा दे दिया.

इससे साबित होता है कि प्राचीन काल में गुरुकुल में हमारे गुरु को बहुत ज्यादा महत्व दिया जाता था और उनके द्वारा मांगी हुई गुरु दक्षिना शिष्य हर हालात में देता था क्योंकि हमारे देश में शुरू से ही गुरु को महान माना जाता है और गुरुकुल में गुरु से लेकर हर रिश्ते का सम्मान और आदर करना सिखाया जाता था

जिससे वह अपने जीवन में ज्ञानवान और संस्कार युक्त होता था इसलिए हम कह सकते हैं,हमारे भारत देश में गुरुकुल एक इंसान को संस्कारयुक्त और ज्ञानवान बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे.

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