जोरावर सिंह कहलुरिया का जीवन परिचय Essay on joravar singh in hindi

Essay on joravar singh in hindi

दोस्तों नमस्कार कैसे हैं आप सभी, आज हम आपके लिए लाए हैं एक महान सेनानी जनरल जोरावर सिंह के बारे में। यह एक ऐसे महान सेनानी हैं जिन्होंने अपने पराक्रम के जरिए भारत से बाहर तक तिब्बत और बालटिस्तान तक पताका फहराया थी। इनके पराक्रम को देखकर बहुत से लोग तो इन के करीब आने से भी डरते थे लोग इन्हें भारत का नेपोलियन भी कहते हैं। चलिए जानते हैं इस महान सेनानी जनरल जोरावर सिंह के बारे में।

Essay on joravar singh in hindi
Essay on joravar singh in hindi

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जनरल जोरावर सिंह का जन्म 13 अप्रैल सन 1786 को हिमाचल प्रदेश के जिला हमीरपुर में ग्राम अनसारा में हुआ था। इनके पिता का नाम ठाकुर हरजे सिंह था बचपन से ही इनमें अपने देश के प्रति कुछ करने का जुनून था। जब जोरावर सिंह बढ़े हुए तो ए डोगरा सेना में भर्ती हो गए। उन्होंने दोबारा सेना के साथ में काफी अच्छा कार्य किया इनके पराक्रम को देखकर इन्हें जल्द ही डोगरा सेना का सेनापति बना दिया गया।

इसके बाद इन्होंने अपने भारत देश का विजय पताका कई अन्य जगह भी फैलाया। इनके पराक्रम को देखकर बड़ी से बड़ी सेनाएं थरथर कांपने लगती थी। इन्होंने लद्दाख, बल्तिस्तान, तिब्बत आदि क्षेत्रों को जीत लिया था जिस वजह से चारों और सभी लोग इन की प्रशंसा करने लगे थे। महाराज गुलाब सिंह इनके कार्यों से काफी प्रसन्न थे।

धीरे-धीरे इन्होंने अपनी सेना का नेतृत्व किया और उन्हें सभी तरह के प्रशिक्षण दिए जब इन्होंने स्थान पर हमला किया तब वहां के अहमदशाह ने हार मान कर उनसे संधि कर ली थी। उसके बाद जोरावर ने उसके बेटे को गद्दी पर बैठा दिया जोरावर सिंह ने धीरे-धीरे नेपाल के संगम स्थल टकलाकोट पर भी अपना कब्जा कर लिया।

धीरे धीरे जब चारों ओर एक खबर पहुंची की जोरावर सिंह ने अपने पराक्रम से चारों और ख्याति पाई है तो अंग्रेज भी उनसे कांपने लगे थे। उसके कुछ समय बाद जोरावर सिंह की डोगरा सैनिकों से तिब्बती सेना से मुकाबला हुआ। काफी दिनों तक यह लड़ाई चली लेकिन इस बार धीरे धीरे जोरावर सिंह के सैनिक शहीद होते गए और 12 दिसंबर सन 1841 को जोरावर सिंह की मौत  हो गई। आज भी हम देखे तो उनकी समाधि उस स्थान पर स्थित है वहां के तिब्बतीओ ने उनकी समाधि बनाई थी।

वास्तव में जनरल जोरावर सिंह ने जिस तरह से अपना पराक्रम दिखाया वह काबिले तारीफ है। ऐसा कहा जाता है कि जब उनका देहांत हो गया तब दुश्मन उनकी शब की करीब जाने से भी डर रहा था क्योंकि जोरावर सिंह एक बहुत ही पराक्रमी सेनानी थे जिनके आगे कोई भी नहीं पाता था उन्होंने बड़े बड़े धुरंधरों को धूल चटा दी थी।

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