दैव दैव आलसी पुकारा पर निबंध Essay on dev dev alsi pukara in hindi
Essay on dev dev alsi pukara in hindi
दोस्तों कैसे हैं आप सभी, दोस्तों आज हम आपके लिए लाए हैं देव देव आलसी पुकारा पर हमारे द्वारा लिखित निबंध तो चलिए पढ़ते हैं आज के इस निबंध को
इस देश दुनिया में काफी सारे ऐसे लोग होते हैं जो अपने जीवन को भाग्य के सहारे समझते हैं वह समझते हैं कि हमें जो भी कुछ मिला है या आगे जो भी कुछ मिलेगा वह भाग्य से ही मिलेगा वह समझते हैं कि हम जितना भी परिश्रम करें जब तक हमारे भाग्य में नहीं होगा तब तक हमें कुछ भी नहीं मिलेगा वह सब कुछ भगवान के अधीन समझते है वह समझते हैं कि अगर मेरी किस्मत में होगा तो भगवान मुझे दे देगा। बहुत सारे लोग ऐसी ऐसी कहावते कहते हैं कि ऊपर वाला जब भी देता देता छप्पर फाड़ के लेकिन यदि हम हाथ पर हाथ रखे बैठे रहें और जीवन में सिर्फ ईश्वर से प्रार्थना करें तो हमें कुछ भी प्राप्त नहीं होगा।
आलसी लोग देव देव पुकारते रहते हैं और कुछ भी पाने के लिए या जीवन में सफल होने के लिए प्रयत्न नहीं करते एक तरह से वह जीवन में परिश्रम करने से डरते हैं कि कहीं मैं असफल हो गया तो और वो सब कुछ भाग्य के अधीन समझकर जीवन में प्रयत्न कर नहीं पाते ऐसे लोग वास्तव में जीवन में कुछ बड़ा नहीं कर पाते ऐसे लोगों के जीवन में बहुत सारी परेशानियां होती हैं वह गरीबी से जूझते हैं और उनका पूरा जीवन दुख में गुजरता है क्योंकि वह सिर्फ भाग्य के अधीन होते हैं वह मेहनत करना नहीं जानते।
परिश्रम से ही सफलता
वास्तव में अगर हमें जीवन में सफल होना है या कुछ बड़ा करना है तो इस तरह की कहावत जो कि आलसी लोगों के लिए कही गई है कि देव देव आलसी पुकारा को दूर करना होगा यानी हमें भाग्य के भरोसे ना बैठकर कर्म करना चाहिए जो भी व्यक्ति सिर्फ भाग्य के भरोसे बैठा रहता है वह जीवन में कुछ भी नहीं कर पाता है। हमे जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए कर्म और परिश्रम तो करना ही होगा।
महात्मा गांधी जी देश को स्वतंत्रता दिलवाना चाहते थे उनकी सोच अच्छी थी अगर वह सिर्फ भगवान को ही पुकारते रहते और इस और कोई भी कदम नहीं उठाते यानी परिश्रम नहीं करते तो क्या हमें आजादी मिलती? बिल्कुल भी नहीं मिलती। थॉमस एडिसन ने लगभग 9999 बार परिश्रम करके बार बार असफल होकर आखिर में बल्ब का आविष्कार किया क्या वह भाग्य के भरोसे बैठकर अगर कुछ भी नहीं करते तो क्या बल्ब का आविष्कार हो सकता था? बल्ब का आविस्कार नहीं हो सकता था।
डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम जो कि गरीब परिवार से थे वह बड़े होकर अपने परिश्रम के दम पर डॉक्टर और वैज्ञानिक बने और साथ में देश के राष्ट्रपति भी बने क्या यह सब उनके भाग्य से ही हुआ है? नहीं यह सब अगर हुआ है तो उनके कर्म, मेहनत से हुआ है। ए पी जे अब्दुल कलाम जी ने शुरू से ही जीवन में काफी परिश्रम किया था और जो व्यक्ति दिल से परिश्रम करता है, हार नहीं मानता. वह जीवन में सफल जरूर होता है।
कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो मानते हैं कि अब कर्म करने से क्या फायदा क्योंकि वही होगा जो मंजूरे खुदा होगा यह आलसी लोगों की बात है अगर वास्तव में हम सफल होना चाहते हैं तो कर्म करने के बाद क्या होगा क्या नहीं होगा यह सब छोड़कर अपने कर्म पर हम ध्यान दें तो जीवन में हम अपनी बुरी परिस्थितियों से या इस गरीबी से दूर हो सकेंगे और जीवन में सफल जरूर हो सकेंगे क्योंकि जो कर्म हम करते हैं उसका फल तो हमें जरूर मिलता ही है।
किसी को जल्दी मिलता है तो किसी को देर से मिलता है यह सब हमारे कार्य करने की क्षमता प्रणाली पर निर्भर करता है। आप कर्म करना मत छोड़िए लगातार प्रयत्न करते रहिए क्योकि भाग्य के भरोसे बैठने वाले जीवन में कुछ भी नहीं पा पाते है हमें इन महान सफल लोगों से सीखना चाहिए और भाग्य के भरोसे ना बैठकर कर्म करने पर विश्वास रखना चाहिए।
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