देवनारायण जी की कथा dev narayan ki katha in hindi
dev narayan ki katha in hindi
दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से देवनारायण जी की कथा के बारे में बताने जा रहे हैं . चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और इस आर्टिकल को ध्यान से पढ़ते हैं .
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देवनारायण जी की कथा – देवनारायण जी राजस्थान के लोक देवता है . राजस्थान के गुर्जर समाज के लोगों का यह मानना है कि देवनारायण जी विष्णु भगवान के अवतार हैं . उन्हीं लोगो के द्वारा सुनाई गई देवनारायण जी की लोकगाथा हम आपको सुनाने जा रहे हैं . अजमेर के सबसे बड़े राजा बीसलदेव जी थे और बीसलदेव जी के छोटे भाई का नाम माण्डल जी था और इन्हीं दोनों के जीवन से इस लोक गाथा की शुरुआत हुई थी . देवनारायण जी इन्हीं दोनों भाइयों के बड़े पूर्वज थे .
बीसलदेव जी को घोड़े बहुत ही पसंद थे , वह घोड़े की सवारी किया करते थे . एक बार अजमेर के राजा बीसलदेव जी ने अपने छोटे भाई माण्डल जी को मेवाड़ घोड़े खरीदने के लिए भेजा था . माण्डल जी मेवाड़ की हाट में घोड़े खरीदने के लिए चले गए थेे . माण्डल जी ने पैसों से कई घोड़ेेे खरीद लिए थे . जब माण्डल जी ने यह देखा की यहां के लोग पानी की समस्या जूझ रहे हैं तब माण्डल जी ने अपने पैसों से तालाब का निर्माण करवाया था .
जब माण्डल जी के पास पैसे खत्म हो गए थे तब माण्डल जी ने अपनेेेे बड़े भाई बीसलदेव से और पैसे मंगवाए थे . जब बीसलदेव जी के मन मेंं यह विचार आया कि चलो अब अपने छोटे भाई को देखकर आ जाएं और यह पता चल जाएगा कि माण्डल जी अपने सारे पैसेे कहां पर खर्च कर रहेे हैं . ऐसा विचार करके बीसलदेव जी अपने घोड़े पर सवार होकर , अपने सैनिकों के साथ मेवाड़ की ओर निकल पड़े . यहां पर जब माण्डल जी को पता चला कि उनके बड़े भाई आ रहे हैं तब उन्होंने खरीदे हुए घोड़ों के साथ उसी तालाब में जल समाधि ले ली थी .
जब बीसलदेव जी वहां पर पहुंचे तब उन्होंने देखा कि उनके छोटे भाई ने जल समाधि ले ली है तब उनको बड़ा दुख हुआ . बीसलदेव जी ने अपने छोटे भाई माण्डल जी की याद में उसी तालाब के बीचो बीच में एक विशाल मंदार और एक बहुत बड़ी छतरी बनवाई थी . इस तरह से माण्डल जी ने जल समाधि ली थी . माण्डल जी का एक पुत्र भी था जिसका नाम हरि राम था . हरीराम जी को शिकार करना बहुत ही पसंद था . एक गांव में एक शेर का बहुत ही आतंक था .
वह शेर प्रतिदिन गांव पर हमला करता और गांव के बच्चों को उठाकर ले जाता था . गांव वालों ने तंग आकर यह फैसला लिया कि हम अपने परिवार में से प्रतिदिन एक व्यक्ति को शेर के सामने भेज देंगे जिससे शेर की भूख शांत हो जाएगी . इस तरह से गांव वालों ने निर्णय कर लिया था और गांव के प्रत्येक परिवार में से प्रतिदिन एक व्यक्ति शेर का भोजन बनने के लिए चला जाता था . एक बार हरीराम जी उस गांव से निकल रहे थे और बहुत देरी हो गई थी .
हरिराम जी ने एक कुटिया में जाने का फैसला किया . जब हरी राम जी उस कुटिया के अंदर गए तब उन्हें एक बुढ़िया दिखाई दी . जब हरी राम जी ने बुढ़िया को देखा तब बुढ़िया से कहा कि मुझे एक रात के लिए यहां पर रुकने की आज्ञा दें और बुढ़िया तैयार हो जाती है . जब हरी राम जी उस बुढ़िया को रोते हुए देखते हैं तब उन्हें बड़ा आश्चर्य होता है कि यह बुढ़िया रोटी बना रही है और रो रही है . बुढ़िया ने रोटी बनाकर अपने बेटे को भोजन कराने का फैसला लिया और अपने बेटे को भोजन करा रही थी और साथ में रो भी रही थी .
यह देखकर हरी राम जी ने बुढ़िया से पूछा कि तुम रो क्यों रही हो तब बुढ़िया ने हरिराम जी को पूरी कहानी बतला दी थी . हरिराम जी ने बुढ़िया की कहानी सुनकर बुढ़िया से कहा कि है माई तू चिंता मत कर तेरे बच्चे की जगह पर मैं शेर का भोजन बनूंगा . जब शेर के सामने जाने की बात आई तब हरी राम जी ने आटे का एक प्रतिबिंब बनाया और उस प्रतिबिंब को शेर के सामने रख दिया था . जब शेर ने उस प्रतिबंध पर हमला किया तब हरी राम जी ने अपनी तलवार निकाल कर उस शेर की गर्दन एक बार ने धड़ से अलग कर दी थी और गांव वालों को शेर की दहशत से मुक्त कर दिया था .
जब हरी राम जी ने अपनी तलवार खून से लिपटी हुई देखी तब हरिराम जी ने उस तलवार को पुष्कर के घाट में जाकर साफ करने का निर्णय लिया था . हरी राम जी पुष्कर के घाट की ओर निकल पड़े थे . पुष्कर घाट की रास्ते में एक लीला सेवड़ी नाम की एक ब्राह्मणी कन्या रहती थी जिस कन्या ने यह प्रण ले रखा था कि मैं सुबह उठकर स्नान करके सबसे पहले वराह भगवान की पूजा एवं दर्शन करूंगी . जब लीला सेवड़ी पुष्कर घाट पर जा रही थी तब हरी राम जी ने उसके पैरों की आहट से अपनी तलवार को उस लीला सेवड़ी के आगे कर दी और अपना दूसरा हाथ जिसमें शेर की गर्दन थी उस हाथ को अपने ही सिर के आगे कर दिया था .
जब उस लीला सेवड़ी ने शेर का मुंह और शरीर इंसान का देखा तब उस कन्या ने हरी राम जी से कहा कि तुमने यह क्या किया . अब मेरी संतान का शरीर इसी तरह का होगा और हरिराम जी से विवाह करने के लिए आग्रह किया . हरिराम जी ने विवाह के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था . इस तरह से हरी राम जी ने उस ब्राह्मणी कन्या से विवाह कर लिया था . जब हरी राम जी की संतान हुई तब उस बच्चे का मुंह शेर का था एवं शरीर इंसान का था .
ऐसा देखकर हरी राम जी ने उस बच्चे को एक पेड़ के नीचे छुपा दिया था और अपने घर वापस चला गया था . सुबह के समय जब उस गांव के एक व्यक्ति ने बच्चे की रोने की आवाज सुनी तब वह बच्चे के पास गया और बच्चे को उठाकर राजा बीसलदेव जी के पास ले आया था और बीसलदेव जी ने उस बच्चे का भरण पोषण करने का निर्णय लिया था . राजा बीसलदेव जी ने उस बच्चे का नाम बाघ सिंह रखा था और वह बच्चा बाघ सिंह के नाम से जाना जाने लगा था .
उस बच्चे की देख रेख के लिए एक ब्राह्मण भी नियुक्त किया गया था और वह ब्राह्मण उस बाघ सिंह के साथ रहने लगा था . जब सावन का महीना आया तब बाघ सिंह को यह मालूम पड़ा कि पास ही की एक बावड़ी में कुंवारी कन्या सावन के महीने में झूला झूलने के लिए आती हैं . जब बाघ सिंह झूले पर जा कर बैठ गया था तब लड़कियों ने बाघ सिंह को झूले से उतर जाने के लिए कहा था लेकिन बाघ सिंह ने लड़कियों के सामने एक शर्त रख दी थी . यदि किसी लड़की को झूला झूलना है तो उसको सबसे पहले मेरे साथ फेरे लेने होंगे .
कुछ लड़कियों ने मना कर दिया और अपने घर चली गई लेकिन कुछ लड़कियों ने सोचा कि फेरे लेने से क्या यह व्यक्ति हमारा पति हो जाएगा . ऐसा सोचकर उन लड़कियों ने बाघ सिंह के साथ फेरे ले लिए थे और वह झूला झूल कर अपने घर चली गई थी . जब उन लड़कियों की शादी की उम्र हुई तब उनके माता-पिता ने उन लड़कियों के लग्न निकलवाना शुरू किए लेकिन उन लड़कियों के लग्न ही नहीं मिल रहे थे . सभी लड़कियों के मां बाप बड़े परेशान थे और सभी लड़कियों के मां-बाप राजा बीसलदेव जी के पास पहुंचे .
बीसलदेव जी ने एक तरकीब लगाई और सभी कन्याओं के बीच में कुछ अन्य कन्याओं को बैठा दिया . जब वह कन्याएं एक दूसरे के कान में यह कह रही थी कि हमने तुमसे कहा था कि बाघ सिंह के साथ फेरे मत लेना . इसी कारण से तुम्हारे लग्न नहीं मिल रहे हैं . यह तरकीब लगाकर बीसलदेव जी ने इस समस्या का समाधान निकाला और बाघ सिंह को बुलाकर उसे डांट फटकार लगाई थी .
बाघ सिंह ने राजा बीसलदेव से कहा कि मैं सभी कन्याओं के साथ बाथ भरता हूं और बाघ सिंह ने बाथ भरा . उसके बाथ में सभी लड़कियों में से 13 लड़कियां समा गई थी . बाघ सिंह ने 12 लड़कियों से विवाह कर लिया था . उनमें से एक लड़की का विवाह ब्राह्मण के साथ करवा दिया था .
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