चित्तौड़गढ़ के किले का इतिहास chittorgarh fort history in hindi

chittorgarh fort history in hindi

दोस्तों आज हम आपको इस लेख के माध्यम से चित्तौड़गढ़ के किले के बारे में बताने जा रहे हैं । चलिए अब हम जानेंगे चित्तौड़गढ़ किले के इतिहास को ।चित्तौड़गढ़ का दुर्ग राजस्थान के चित्तौड़ में स्थित है ।चित्तौड़गढ़ का इतिहास काफी पुराना माना जाता है ।प्राचीन समय में चित्तौड़गढ़ मेवाड़ की राजधानी हुआ करती थी । चितौड़गढ़ के किले की सुंदरता और वहां की नक्काशी देखकर हमें यह प्रतीत होता है की यह किला सबसे अधिक सुंदर और राजपूताने घराने की शान थी ।

chittorgarh fort history in hindi
chittorgarh fort history in hindi

भारत सरकार ने चित्तौड़गढ़ के दुर्ग को 21 जून 2013 को यूनेस्को की सूची में शामिल किया गया है । यदि हम बात करें चित्तौड़गढ़ के निर्माण की तो चित्तौड़गढ़ का निर्माण सातवीं शताब्दी में किया गया था । ऐसा कहा जाता है कि सातवीं शताब्दी के राजा मोर्य वंशीय राजा चित्रांगद ने इस किले का निर्माण कराया था । फिर इस किले का नाम अपने ही नाम पर चित्रकूट रखा था । मौर्यबंसी शासकों का उस समय काफी रुतबा था । उन्हीं के द्वारा चित्तौड़गढ़ को मेवाड़ की राजधानी बनाई गई थी ।

उस समय वहां का राजपाट मौर्य वंश के राजाओं के पास था । आज भी हम जब प्राचीन सिक्कों को देखते हैं तब हमें एक तरफ चित्रकूट नाम अंकित दिखाई देता है । यह सिक्के मेवाड़ के प्राचीन सिक्के हैं । आज भी यह सिक्के भारत की धरोहर के रूप में रखे हुए हैं । यह किला बहुत ही अद्भुत और सुंदर है । इसकी दीवारें एवं गेट बहुत ही सुंदर और मजबूत हैं । यहां के आसपास की सुंदरता हरियाली से भरी हुई है । यह किला मेंसा के पठार पर स्थित है । इस किले कि यदि बात करें तो इसका इतिहास बड़ा ही रोचक रहा है ।

यहां पर कई युद्ध और लड़ाई प्राचीन लोगों को देखने को मिली थी ।  ऐसा कहा जाता है की सन 738 के दशक में राजा बप्पा रावल ने मौर्य वंश के अंतिम शासक जिसका नाम मानमोरी था उसको हराकर इस किले पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था । कुछ समय तक बप्पा रावल ने अपना अधिकार यहां पर बनाए रखा था ।इसके बाद मालवा के परमार वंश के राजा मुंज ने इस किले को छीन लिया था और छीनकर अपने राज्य में मिला लिया था । इस किले पर 9 वीं एवं 10 वीं शताब्दी तक परमारो का ही राज्य रहा था ।

इसके बाद सन 1133 में गुजरात के सोलंकी राजा जय सिंह ने अपनी ताकत से एवं शक्ति से यशोवर्मन को हराकर यह किला छीन लिया था ।परमारो को इस राज्य से बाहर निकाल दिया था और इस युद्ध में छत्तीसगढ़ का दुर्ग भी सोलंकीयों के पास आ गया था । सोलंकी के राजा जयसिंह के उत्तराधिकारी कुमारपाल के भतीजे अजय पाल को युद्ध में बुरी तरह से परास्त कर दिया था और मेवाड़ के राजा सामंत सिंह ने 1174 में यह किला गुहिलवंशो से जीत लिया था । इस तरह से सामंत सिंह ने अपना राज्य स्थापित किया ।

इसके बाद सामंत सिंह के विवाह की बात पृथ्वीराज चौहान की बहन से होने लगी और सामंत  सिंह  इस विवाह के लिए तैयार हो गए थे । फिर सामंत  सिंह का विवाह पृथ्वीराज चौहान की छोटी बहन पृथ्वी बाई से हो गया था । इस शादी के बाद जब तराइन का द्वितीय युद्ध हुआ तब उस युद्ध में  भयंकर लड़ाई लड़ी गई थी । बहुत  शक्ति के साथ सामंत  सिंह  उस लड़ाई को लड़ रहे थे । अंत में  तराइन के द्वितीय युद्ध में राजा सामंत सिंह की  मौत हो गई थी  ।

सामंत सिंह की मृत्यु के बाद सन 1113  से 1282  तक  इल्तुतमिश  के द्वारा  यह किला  बुरी तरह से तहस-नहस कर दिया गया था । इसके बाद जेत्र सिंह ने यहां पर फिर अपनी सत्ता स्थापित की और चित्तौड़ से ही इस पर  शासन किया था । इसके बाद 1303 में रावल रत्न सिंह  का युद्ध  अलाउद्दीन खिलजी से हुआ और इस युद्ध को  चित्तौड़ का प्रथम शाका नाम दिया गया था । इस युद्ध में  अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी ।

जिसके कारण यह युद्ध  रावल रत्न सिंह को हारना पड़ा था । इस युद्ध में  अलाउद्दीन खिलजी की जीत हुई थी ।इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने  अपने पुत्र  खिज्र खां को  यह  विरासत एवं किला सौंप दिया था । कुछ समय बाद खिज्र खां  ने राज्य  का राजकाज  कान्हा दीप के बड़े भाई मालदेव को सौंप दिया था ।

दोस्तों हमारे द्वारा लिखा गया यह जबरदस्त आर्टिकल चित्तौड़गढ़ के किले का इतिहास chittorgarh fort history in hindi आपको पसंद आए तो शेयर अवश्य करें धन्यवाद ।

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *