एक चिड़िया की आत्मकथा chidiya ki atmakatha in hindi
chidiya ki atmakatha in hindi
दोस्तों आज मैं आपको एक चिड़िया की आत्मकथा बताने जा रहा हूं । इस आत्मकथा को आप जरूर पढ़ना क्योंकि इस आत्मकथा में आपको एक पक्षी की पीड़ा दिखाई देगी । जब हम किसी पक्षी को बंदी बनाकर पिजड़े में रखते हैं तब वह किस तरह से पीड़ित होता है और वह आजाद होने के लिए फड़ फड़ाता रहता है । चलिए अब हम पढ़ेंगे एक चिड़िया की आत्मकथा पर लिखे इस काल्पनिक आर्टिकल को।

मैं चिड़िया बोल रही हूं ,जब मेरा जन्म हुआ तब मेरी मां मेरा बहुत ही ख्याल रखती थी वह दूर दूर से दाना चुनकर लाती और मुझे खिलाती थी । मेरी मां मेरा बहुत ही ख्याल रखती थी और मुझे घोसले से बाहर जाने के लिए मना करा करती थी । मेरी मां मुझसे कहती थी कि अभी तुम्हें उड़ना नहीं आता है इसलिए तुम घोसले से बाहर मत निकलना । एक दिन जब उसकी मां खाना लेने के लिए घोसले से बाहर जाने लगी तब चिड़िया से कहा कि तुम बाहर मत जाना जब मैं खाना लेकर आऊंगी तब मैं तुम्हें खाना खिलाऊंगी । उस समय बाहर का मौसम बड़ा ही सुंदर लग रहा था ,ठंडी ठंडी हवा चल रही थी । मेरा मन कर रहा था कि मैं इस हवा के साथ पंख फैलाकर उड़ने लगू लेकिन मुझे मेरी मां की बातें याद आने लगी कि मेरी मां ने मुझे घोसले से बाहर निकलने के लिए मना किया था ।
कुछ देर बाद जब यह मौसम और भी अच्छा होता जा रहा था तब मेरे इंतजार का बांध टूट गया और मैंने घोसले से बाहर जाने का फैसला कर लिया था । मैं घोसले से बाहर निकलकर उड़ने लगी थी उड़ते उड़ते एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर जाकर बैठ गई थी । जब मैं उस पेड़ से उड़ कर जा रही थी तब एक तार में मेरा पैर फंस गया और उस तार में पैर फंसने के कारण मैं नीचे गिर गई थी और मुझे बहुत चोट आई थी । उस समय जिस रास्ते पर में घायल पड़ी हुई थी वहां से एक व्यक्ति निकल रहा था । उसने जब मुझे देखा तो मुझे उठा कर घर ले गया और मेरे जख्मों पर दवाई लगाने लगा । दवाई लगाने के बाद उसने मुझे आराम करने के लिए कपड़े से लपेट दिया था । जब मैं ठीक हो गई थी तब उसने मुझे एक पिंजरे में बंद कर दिया था । वह मुझे दो-चार दिनों तक खाना खिलाता रहा एक दिन वह मुझे पिंजरे में कैद करके बाजार ले गया और बाजार में उसने मुझे एक व्यक्ति को बैच दिया था ।
वह व्यक्ति मुझे खरीदने के बाद घर ले गया और घर के सभी लोग मुझे देखने लगे । मैं उस समय यह सोच रही थी कि मैं इस पिंजड़े से कब आजाद हो पाऊंगी । मुझे उस समय यह बात याद आ रही थी कि यदि मैंने अपनी मां की बात मान ली होती तो आज मैं इस पिंजरे में कैद नहीं होती । पिंजड़े से बाहर निकलने के लिए पंख फड़फड़ाने लगी । जब मैंने उस पिंजरे में कई दिनों तक खाना नहीं खाया तब उस घर के एक व्यक्ति ने मेरी पीड़ा समझ कर मुझे उस पिंजड़े से आजाद कर दिया था । मैं उस पिंजड़े से निकलने के बाद खुली हवा में सांस ले रही थी । मैं उस पिंजरे से उड़ कर घोसले में चली गई थी । उस घोसले में मेरी मां मेरा इंतजार कर रही थी और उसके आंखों से आंसू बह रहे थे । मैंने उस समय यह निश्चय किया कि जब तक मैं पूरी तरह से उड़ना नहीं सीख जाऊंगी तब तक इस पिंजरे से बाहर नहीं निक लूंगी । इसके बाद मेरी मां ने मुझे उड़ना सिखाया और मैं उड़ना सीख गई थी ।
दोस्तों इस आत्मकथा से हमें सीख लेना चाहिए कि हमें कभी भी किसी पक्षी को पिंजड़े में बंद करके नहीं रखना चाहिए । जिस तहत से हम सभी खुली हवा में सांस ले कर जीते हैं उसी तरह से पक्षी को भी खुली हवा में उड़ने का अधिकार होता है । उस पंछी को जब हम पिंजरे में बंद करते हैं तब वह पक्षी बहुत परेशान होता है ।
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Superb