भीमा कोरेगांव का इतिहास Bhima koregaon history in hindi
Bhima koregaon history in hindi
दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से भीमा कोरेगांव के इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं । भीमा कोरेगांव युद्ध का इतिहास काफी पुराना है जो कि 200 साल पुराना है । भीमा कोरेगांव युद्ध में महार जाति के दलित लोगों ने ब्रिटिश शासन का साथ दिया था । 1 जनवरी 1818 को भीमा कोरेगांव में अंग्रेजों एवं पेशवा बाजीराव द्वितीय के बीच युद्ध हुआ था ।
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इस युद्ध में ब्रिटिश सेना में महार जाति के लोग थे और पेशवा बाजीराव द्वितीय की सेना में ब्राह्मणवादी एवं ऊंची जाति के लोग थे । इस युद्ध में ब्रिटिश शासन के सैनिकों ने पेशवा बाजीराव द्वितीय के 28000 सैनिकों को हराया था । इस युद्ध में ब्रिटिश सैनिक 500 से अधिक थे । इस युद्ध के बाद दलित समुदाय इस युद्ध को ब्राह्मणवादी सत्ता के खिलाफ जंग मानता हैं । दलित समुदाय का यह मानना था कि यह जीत अंग्रेजों की नहीं हुई थी यह जीत ब्राह्मणवादी सत्ता के लोगों से महार जाति के समुदाय के लोगों की हुई थी ।
इस जीत का जश्न आज भी भारत में भीम कोरेगांव में मनाया जाता है । 1 जनवरी को भीम कोरेगांव में दलित नेता इस जीत का जश्न मनाते हैं । जब 5 नवंबर 1817 को ब्रिटिश सैनिकों से यरवदा और खड़की की हार हुई थी तब पेशवा बाजीराव द्वितीय ने अपना डेरा परपे फाटा के पास में स्थित गांव फुलगांव में डाल रखा था । दिसंबर 1817 को पेशवा बाजीराव द्वितीय को यह सूचना मिली थी कि ब्रिटिश सेना हमला करने के लिए अपनी योजना बना रही है और ब्रिटिश सेना शिरूर से पुणे पर हमला करने के लिए अपने सैनिकों के साथ निकल चुकी है ।
यह सूचना मिलने के बाद पेशवा बाजीराव द्वितीय ने अपने सैनिकों से यह कह दिया था कि हम ब्रिटिश सैनिकों को रोकने के लिए तैयार हैं । हम उनके साथ युद्ध करेंगे । पेशवा बाजीराव द्वितीय के सभी सैनिकों ने ब्रिटिश सैनिकों को रोकने का फैसला किया था । ब्रिटिश सैनिक पूरे हौसले के साथ इस युद्ध को लड़ने के लिए मैदान में उतरे थे । ब्रिटिश सरकार के 800 सैनिक भीमा नदी के किनारे कोरेगांव पहुंचे थे । इन सैनिकों में सबसे ज्यादा सैनिक महार जाति के थे ।
इस तरह से ब्रिटिश सैनिकों ने इस युद्ध को जीतने की योजना तैयार की थी और 1818 को प्रातः काल में ब्रिटिश सैनिकों ने पेशवा सैनिकों पर हमला कर दिया था । पेशवा बाजीराव द्वितीय की 28,000 सेना में अरब सहित कई ऊंची जातियों के सैनिक थे । इस युद्ध में ब्रिटिश सैनिकों में सबसे ज्यादा महार समुदाय के लोग थे । जो अंग्रेजो की तरफ से युद्ध लड़ रहे थे और इस युद्ध में जीत महार जाति के लोगों की हुई थी । ब्रिटिश सैनिकों ने पेशवा बाजीराव द्वितीय की सेना को बुरी तरह से हराया था ।
इस युद्ध को जीतने के बाद ब्रिटिश सरकार ने 1851 को इस युद्ध की जीत का जश्न मनाने के लिए कोरेगांव में एक स्मारक बनवाया था । तभी से प्रतिवर्ष इस दिन दलित समाज के लोग एकत्रित होते हैं और इस जीत का जश्न मनाते हैं । महार समुदाय के लोगों का मानना है कि यह जश्न हम ब्रिटिश सैनिकों की जीत के लिए नहीं मनाते हैं ।उनका कहना है कि यह जश्न हम ऊंची जाति को हराने के लिए मनाते हैं ।
महार जाति के लोगों का कहना था कि हमने ब्रिटिश सैनिकों का साथ इसलिए दिया था क्योंकि पेशवाओं ने नीची जाति के लोगों के साथ अन्याय किया है । वह महार जाति के लोगों से घृणा करते थे और जब भी महार जाति का कोई व्यक्ति उनके यहां से निकलता था तो अपनी झाड़ू पीठ पर बांधकर निकलना पड़ता था और महार जाति के लोगों को धरती पर थूकने तक का अधिकार नहीं था । उनका कहना था कि यदि महार जाति के लोग धरती पर हैं थूकेगे तो यह धरती अपवित्र हो जाएगी ।
महार जाति के बच्चों को स्कूलों में पढ़ने तक का अधिकार नहीं था । इसी बात का बदला लेने के लिए महार जाति के लोगों ने ब्रिटिश सैनिकों का साथ दिया था । इस युद्ध के बाद ब्रिटिश शासन में महार जाति के लोगों के लिए काफी अच्छे काम किए थे । महार जाति के लोगों के बच्चों के लिए स्कूल खोले थे ।
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