बासुकीनाथ मंदिर का इतिहास Basukinath temple history in hindi

Basukinath temple history in hindi

Basukinath temple – दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से बासुकीनाथ मंदिर के इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं । तो चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और इस आर्टिकल को पढ़कर बासुकीनाथ मंदिर के इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं ।

Image source – https://commons.wikimedia.org/wiki

बासुकीनाथ मंदिर के बारे में – बासुकीनाथ मंदिर भारत देश का सबसे प्राचीन और सुंदर मंदिर है जिस मंदिर से हिंदू धर्म के लोगों की आस्था जुड़ी हुई है । बासुकीनाथ का यह मंदिर भगवान शिव के लिए समर्पित है । यहां पर भगवान शिव के भक्त गण आते हैं और मंदिर में भगवान शिव जी के चरणों में माथा टेक कर अपने जीवन में आनंद प्राप्त करते हैं । जो व्यक्ति बासुकीनाथ मंदिर के दर्शनों के लिए जाता है भगवान शिव उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं । भगवान शिव को समर्पित बासुकीनाथ मंदिर झारखंड राज्य में स्थित है ।

यह मंदिर झारखंड के दुमका जिले में स्थित है । बासुकीनाथ मंदिर का यह पावन धाम दुमका के उत्तर पश्चिम में तकरीबन 25 किलोमीटर की दूरी पर यह चमत्कारी सुंदर अद्भुत मंदिर स्थित है जिसकी सुंदरता देखने के लायक है । बासुकीनाथ मंदिर में जो भगवान शिव की शिवलिंग है इस शिवलिंग के बारे में ऐसा कहा जाता है कि बासुकीनाथ मंदिर की शिवलिंग असली नागेश ज्योतिर्लिंग है ।

जो भक्त गण बैजनाथ मंदिर के दर्शनों के लिए जाता है उस भक्तगण की बैजनाथ यात्रा तब तक सफल नहीं होती है जब तक वह भक्तगण बासुकीनाथ मंदिर के दर्शन नहीं कर लेता है इसीलिए जो भक्तगण बैजनाथ मंदिर के दर्शन करने के लिए जाता है वह बासुकीनाथ मंदिर के दर्शन अवश्य करता है । झारखंड के देवघर में विशाल सुंदर चमत्कारी बाबा बैजनाथ का मंदिर स्थित है जिस मंदिर की सुंदरता बहुत अच्छी और अद्भुत दिखाई देती है । मंदिर पर पहुंचने के बाद शिव भक्तों को शांति प्राप्त होती है ।

देवघर में स्थित बाबा बैजनाथ मंदिर के दर्शन करने के बाद सभी भक्तगण बासुकीनाथ मंदिर के दर्शनों के लिए अवश्य जाते हैं । जब बासुकीनाथ मंदिर के दर्शन भक्तगण कर लेते हैं तब उनकी बैजनाथ यात्रा सफल हो जाती है । जब भक्त गढ़ बैजनाथ मंदिर की पूजा अर्चना कर लेते हैं तब भक्तगण बासुकीनाथ मंदिर पर जाकर शिवलिंग की पूजा करके अपनी यात्रा को सफल बनाते हैं । बासुकी नाथ शिवलिंग के बारे में एक कथा भी कही जाती है । अब मैं आपको उस कथा के बारे में बताने जा रहा हूं । कथा के अनुसार दक्षिण निषेध नामक क्षेत्र में रमणीक मनोहारी दारूक वन  स्थित था ।

जहां पर बासुकीनाथ शिवलिंग स्थित है ।रमणीक मनोहारी दारूक वन में प्राचीन समय में राक्षसों का निवास हुआ करता था । इस क्षेत्र में राक्षसों के द्वारा मनोहारी नगर की स्थापना की गई थी । इस वन के बारे में यह कहा जाता है कि इस वन के आसपास के क्षेत्र से जो भी व्यक्ति गुजरता था उस व्यक्ति को राक्षसों के द्वारा कैद कर लिया जाता था । आसपास के क्षेत्र के लोग राक्षसों के इस अत्याचार से बहुत दुखी है । एक बार जब भगवान शिव का प्रिय भक्त सुप्रिए  वहां से गुजर रहा था तब राक्षसों के द्वारा उसको भी बंदी बना लिया गया था ।

जब शिव भक्त सुप्रिए ने लोगों पर अत्याचार होते हुए देखा तब सुप्रिए ने भगवान शिव की कठोर उपासना की थी । भगवान शिव सुप्रिए की उपासना से प्रसन्न हुए और सुप्रिए को माता पार्वती के साथ शिव जी ने दर्शन दिए थे । सुप्रिए ने भगवान शिव को उस राक्षस के द्वारा किए गए अत्याचार को बताया था । भगवान शिव ने सुप्रिए को राक्षसों का नाश करने के लिए पशुपाशस्त्र दिया था । जिस शस्त्र से सुप्रिए ने राक्षसों का वध किया था । इसके बाद  सुप्रिए ने उस स्थान पर भोलेनाथ की कठोर आराधना की जिस आराधना से खुश होकर भोलेनाथ ने सुप्रिए को दर्शन दिए थे ।

सुप्रिए ने भोलेनाथ से यह कहा कि यदि आप मेरी उपासना से प्रसन्न हो तो मैं आपसे निवेदन करता हूं कि आप माता पार्वती के साथ इस स्थान पर विराजमान हो । यह सुनकर भोलेनाथ ने सुप्रिए को यह कहा कि तेरी मनोकामना अवश्य पूरी होगी और भोलेनाथ ने सुप्रिए को एक शिवलिंग भेंट में दी जिस शिवलिंग की स्थापना करके सुप्रिए ने मंदिर बनाया था । इसके बाद कई भक्तगण वहां पर दर्शनों के लिए आते थे । धीरे-धीरे समय बीतता गया और दारूक वन में लोग कंदमूल की तलाश में आने लगे थे ।

जब लोग दारुक वन में कंद मूल की तलाश में आ रहे थे तब कंदमूल की तलाश में बासु नाम का एक सदाचारी व्यक्ति भी आया था । जब उसने लोगों का खून कंदमूल की तलाश में बहते हुए देखा तब वह बहुत दुखी हो गया था और वहां से अपने घर के लिए वापस जाने लगा था । अचानक से ही एक आकाशवाणी हुई । उस आकाशवाणी में बासु नाम के व्यक्ति  को यह बात सुनाई दी कि वह वापस ना जाए वह शिवलिंग की पूजा करें जिससे कि संसार का कल्याण होगा ।  यह सुनकर बासु  बहुत प्रसन्न हुआ और उसने वहां पर स्थित शिवलिंग की पूजा अर्चना करना प्रारंभ कर दिया था ।

भोलेनाथ ने उसकी पूजा से प्रसन्न होकर उस को वरदान दिया कि इस शिवलिंग की पूजा तुम्हारे नाम से होगी और इस शिवलिंग का नाम बासुकी नाथ शिवलिंग होगा तभी से इस मंदिर का नाम बासुकीनाथ मंदिर रखा गया और शिवलिंग का नाम बासुकीनाथ शिवलिंग रखा गया था ।

दोस्तों हमारे द्वारा लिखा गया यह बेहतरीन लेख बासुकीनाथ मंदिर का इतिहास Basukinath temple history in hindi यदि आपको पसंद आए तो आप  सबसे पहले सब्सक्राइब करें इसके बाद अपने दोस्तों एवं रिश्तेदारों में शेयर करना ना भूले । दोस्तों यदि आपको इस लेख में कुछ कमी नजर आए तो आप हमें उस कमी के बारे में अवश्य बताएं जिससे कि हम उस कमी को पूरा कर सकें धन्यवाद ।

One Comment

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *