बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास Badrinath temple history in hindi
Badrinath temple history in hindi
दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से बद्रीनाथ मंदिर के इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं । चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और बद्रीनाथ मंदिर के इतिहास के बारे में जानते हैं ।
बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास काफी पुराना है । भारत के प्राचीन ग्रंथों में भी बद्रीनाथ मंदिर का जिक्र है । यह मंदिर भारत देश के उत्तराखंड राज्य के बद्रीनाथ शहर में स्थित है । यह विष्णु भगवान का मंदिर है । इस मंदिर के अंदर विष्णु भगवान की एक बड़ी 1 मीटर ऊंची काले पत्थर की मूर्ति स्थित है । यह मंदिर अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है । इस नदी के बाएं तरफ नारायण नामक 2 पर्वत श्रेणियां है उन दो पर्वत श्रेणियों के बीच में बद्रीनाथ मंदिर स्थित है । इस मंदिर की सुंदरता देखने के लायक है ।
यहां पर लाखों करोड़ों श्रद्धालु भगवान बद्रीनाथ के दर्शन करने के लिए आते हैं । इस मंदिर की कुल ऊंचाई 15 मीटर है ।यह मंदिर बहुत ही अद्भुत , चमत्कारी मंदिर है । ऋषिकेश के धाम से इस मंदिर की दूरी 214 किलोमीटर है । इस मंदिर का निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य के द्वारा आठवीं शताब्दी में करवाया गया था । शंकराचार्य की देखरेख में यह मंदिर बनवाया गया था । मंदिर बनवाने के बाद आदि गुरु शंकराचार्य ने इस मंदिर की पूजा के लिए पंडित रखने का फैसला किया था ।
शंकराचार्य ने दक्षिण भारत के केरल राज्य से एक विद्वान पंडित को नियुक्त किया था और इस मंदिर की पूजा की पूरी जिम्मेदारी उसी पंडित को दे दी थी । इस मंदिर को शंकराचार्य जी ने मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया था जो कि आज तक है । पहला भाग गर्भ ग्रह , दूसरा भाग सभामंडप , तीसरा भाग दर्शन मंडप । इस मंदिर में तकरीवन 15 मूर्तियां स्थित है । इन मूर्तियों में एक मूर्ति जो कि विष्णु भगवान की है वह काले पत्थर की मूर्ति बनी हुई है और उस मूर्ति की ऊंचाई 1 मीटर की है ।
इस मंदिर की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है क्योंकि इस मंदिर से काफी श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी हुई है । इस मंदिर के अंदर जो विष्णु भगवान की मूर्ति है । उस मूर्ति के बारे में पौराणिक कथाओं से पता चलता है कि जब भगवान शंकर ने बद्री नारायण की छवि एक काले पत्थर के शालिग्राम के ऊपर अलकनंदा नदी देखी थी तब इस मूर्ति को भगवान शिव ने स्थापित की थी । 16 वी शताब्दी में गढ़वाल के एक राजा ने इस मूर्ति की स्थापना मंदिर में करवाई थी ।
इस मंदिर का नाम बद्रीनाथ मंदिर रखने के पीछे भी एक कथा है जिस कथा से हमें यह मालूम पड़ता है कि इस मंदिर का नाम बद्रीनाथ मंदिर क्यों पड़ा । अब मैं आपको उस कथा के माध्यम से बताने जा रहा हू । एक बार जब विष्णु भगवान का माता लक्ष्मी से झगड़ा हो गया था तब लक्ष्मी जी अपने मायके में चली गई थी । भगवान विष्णु जी ने माता लक्ष्मी जी को मनाने के लिए तपस्या करने का विचार बनाया था और वह ध्यान लगाने के लिए एक शुद्ध स्थान एवं शांतिपूर्ण स्थान ढूंढ रहे थे ।
स्थान ढूंढते ढूंढते भगवान विष्णु ऋषिकेश पहुंचे । जब भगवान विष्णु ऋषिकेश से आगे की ओर बढ़ते जा रहे थे तब वह इस स्थान पर पहुंचे और उन्होंने इस स्थान पर तपस्या करने का निर्णय लिया । भगवान विष्णु जी ने एक बच्चे का रूप धारण किया और जोरो से रोने लगे । जब शंकर भगवान एवं पार्वती जी ने रोने की आवाज सुनी तब शंकर भगवान एवं पार्वती मां बच्चे के पास पहुंची और उससे रोने का कारण पूछा । शंकर भगवान पूछने लगे की तुम्हें किस बात का कष्ट है ।
तब बच्चे ने कहा मुझे यहां पर ध्यान लगाना है , मुझे यह भूमि चाहिए । शंकर भगवान ने विष्णु भगवान को ध्यान लगाने के लिए वह भूमि दे दी थी । विष्णु भगवान उसी स्थान पर एक बेर के पेड़ के ऊपर बैठकर ध्यान लगा रहे थे । इधर जब लक्ष्मी माता का गुस्सा शांत हुआ तब वह अपनी गलती को समझ गई थी और अपनी गलती की क्षमा मांगने के लिए विष्णु भगवान को खोज रही थी । विष्णु भगवान को खोजते खोजते वह उस स्थान पर पहुंची जहां पर विष्णु भगवान बेर के पेड़ पर बैठकर ध्यान लगा रहे थे ।
जब माता लक्ष्मी ने विष्णु भगवान को बेल के पेड़ पर बैठकर ध्यान लगाते हुए देखा तब माता लक्ष्मी जी ने ही विष्णु भगवान को बद्रीनाथ कर बुलाया था । तभी से भगवान विष्णु जी को बद्रीनाथ कहा जाने लगा था और वह स्थान भी बद्रीनाथ के नाम से जाना जाने लगा था । विष्णु भगवान का विशाल मंदिर एवं बद्रीनाथ भगवान के चमत्कारी स्थान को बैकुंठ भी कहा जाता है । बद्रीनाथ मंदिर में नारियल का गोला , मिश्री , वन तुलसी की माला , चने की कच्ची दाल का प्रसाद चढ़ाया जाता है ।
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