विद्यालय की आत्मकथा पर निबंध Autobiography of school in hindi
Autobiography of school in hindi
दोस्तों आज हम आपके लिए लाए हैं स्कूल की आत्मकथा पर हमारे द्वारा लिखित इस आर्टिकल को। यह आर्टिकल एक काल्पनिक आर्टिकल है। दोस्तों हम सभी स्कूल जाते हैं या जाते थे तब सुबह जल्दी जागकर स्कूल जाते थे वहां पर हमें अपने दोस्त भी मिलते थे। हमारे शिक्षक हमें पाठ पढ़ाते थे, कई तरह का ज्ञान हमें देते थे उसके बाद हम वापस दोपहर में घर आ जाते थे। स्कूल से हमारा नाता बचपन से ही है। कोई भी अपने स्कूल के दिनों को नहीं भूल पाता है क्योंकि यह लंबा सफर होता है तो चलिए पढ़ते हैं स्कूल की आत्मकथा को
मैं एक स्कूल हूं मेरे जैसे कई और स्कूल आजकल हर एक गांव और शहर में देखने को मिलते हैं। शहरों में तो गली गली मोहल्लों में काफी स्कूल होते हैं, बच्चे उन स्कूलों में पढ़ाई करने के लिए जाते हैं। मैं एक शहर का स्कूल हूं शहर के ज्यादातर बच्चे मुझ स्कूल में ही पढ़ाई करने के लिए आते हैं। बच्चों के लिए मैं ज्ञान उपार्जन करने वाला एक ऐसा स्थान होता हूं जो सबसे महत्वपूर्ण होता हूं।
कोई भी व्यक्ति कितना भी बड़ा क्यों ना हो वह मेरे जैसे स्कूल में पढ़ाई जरूर करता है चाहे वह कोई अध्यापक, शिक्षक, डॉक्टर, इंजीनियर, कलेक्टर या कोई भी उच्च अधिकारी ही क्यों ना हो? सभी को मेरे जैसे स्कूल में पढ़ने के लिए आना ही पड़ता है। आजकल मेरे जैसे स्कूलों का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है। सुबह मुझ स्कूल का दरवाजा खोला जाता है और फिर अध्यापक, बच्चे सभी मेरे अंदर आते हैं। मेरे अंदर कई तरह के कमरे बने हुए हैं जिनको छात्र कक्षा कहते हैं कई छात्र इंग्लिश में इन्हें क्लासरूम भी कहते हैं।
मेरे इस क्लास रूम में छात्रों को बैठने के लिए टेबल और कुर्सी लगी हुई है। क्लास रूम में सामने एक ब्लैक बोर्ड लगा हुआ है जिसपर शिक्षक बच्चों को कुछ भी सिखाने के लिए उस पर लिखते हैं। मेरी हर एक क्लास रूम में इसी तरह की टेबल कुर्सी और ब्लैक बोर्ड की व्यवस्था होती है। मैं काफी खुश हूं कि मैं बच्चों के लिए काफी महत्वपूर्ण होता हूं। बच्चे सुबह से दोपहर तक मुझ स्कूल में पढ़ाई करते हैं और दोपहर बाद अपने घर पर चले जाते हैं लेकिन दोपहर से ही कुछ और विद्यार्थी आते हैं और वह शाम तक मेरी क्लास रूम में बैठकर ही पढ़ाई करते हैं और शाम को अपने अपने घर चले जाते हैं।
बच्चे स्कूल में आकर काफी खुशी का अनुभव करते हैं लेकिन कई बच्चों को रोज-रोज मुझ स्कूल में आकर थोड़ा दुख भी होता है क्योंकि कुछ बच्चे स्कूल का होमवर्क रोज-रोज नहीं कर पाते इसलिए शिक्षकों से उन्हें डाट खाना पड़ता है इसलिए वह थोड़े दुखी हो जाते हैं। मुझ स्कूल में अंदर 2 वृक्ष भी लगे हुए हैं जो मुझमें पढ़ने वाले छात्रों के लिए काफी महत्वपूर्ण होते हैं। छात्र जब गर्मियों के मौसम में स्कूल आते हैं तो कई बार लाइट भी चली जाती है तो काफी गर्मी का एहसास छात्रों को होता है इसीलिए शिक्षक कभी-कभी उन दोनों पैडो के नीचे भी अपनी कक्षा लगाते हैं।
सभी छात्र मुझ स्कूल में ही साल भर पढ़ाई करते हैं और फिर आखिर में उनकी परीक्षा होती है। मेरे अंदर कहीं दूर दूर से छात्र भी परीक्षा देने के लिए आते हैं। ज्यादातर विद्यार्थी मुझे एक मंदिर की तरह समझते हैं, मुझे सम्मान देते हैं क्योंकि वह मुझ स्कूल के अंदर ही शिक्षा ग्रहण करते हैं और बड़े-बड़े पदों को प्राप्त करते हैं। मैंने सुना है कई समय पहले जब मेरे जैसे स्कूल नहीं थे तब गुरुकुल हुआ करते थे लेकिन बदलते जमाने के साथ गुरुकुलो का रूप स्कूलों ने ले लिया।
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