गाय की आत्मकथा पर निबंध Autobiography of cow in hindi
Autobiography of cow in hindi
दोस्तों आज हम आपके लिए लाए हैं गाय की आत्मकथा पर हमारे द्वारा लिखित यह आर्टिकल. दोस्तों आज हम देख रहे हैं कि पहले की अपेक्षा गायों को कम लोग ही पालते हैं, गाय जिसको हम गौ माता कहते हैं उनकी स्थिति एक तरह से हम देखें तो दयनीय हैं. कई लोग गायों को खुला छोड़ देते हैं, उनकी सेवा नहीं करते चलिए पढ़ते हैं गाय की आत्मकथा पर लिखित आर्टिकल को जिससे जरूर ही आपको प्रेरणा मिलेगी
मैं एक गाय हूं. मेरे चार पैर, दो आंखें, दो कान, एक लंबी पूछ एवं चार थन होते हैं. में घास फूस चारा खाना पसंद करती हूं. में पूर्णता शाकाहारी हू. मनुष्य मुझे सब्जियां रोती आदि भी खिलाता है तो मैं प्रेम पूर्वक खा लेती हूं. पहले मेरी प्रजाति की गायों को गांव से लेकर शहरों में अधिक पाला जाता था लेकिन आज के इस आधुनिक युग में पहले से बहुत ही कम लोग मुझे पालते हैं, कई लोग तो मुझे बेसहारा छोड़ देते हैं. लोग मुझे गौमाता कहते हैं, मुझे सम्मान देते हैं लेकिन आधुनिकता के युग में मेरी स्थिति खराब हुई है.
मैं एक गांव में रहती हूं, परिवार वाले मेरी बड़े ही अच्छी तरह से देखभाल करते हैं वह मुझे सुबह शाम घास फूस खिलाते हैं, सुबह सुबह जल्दी मुझे जंगलों की ओर छोड़ देते हैं मैं अपने अन्य साथी गायों के साथ मिलकर जंगल की सैर करने जाती हूं. वहां पर मुझे अच्छा भोजन मिलता है, मेरे एक बच्चा भी है जो कि पिछले महीने ही हुआ है वह मेरा दूध पीता है इसके अलावा मैं मेरी सेवा करने वाले लोगों के लिए भी दूध देती हूं और उनकी मदद करती हू. लोग अन्य जानवरों की अपेक्षा मेरा सामान अधिक करते हैं, मेरी देखरेख करते हैं क्योंकि मैं उन्हें दूध देती हूं.
मेरी जैसी अन्य गायों का भी दूध शहरों में जाता है और हमारे घर वाले हमारे दूध को बेचकर अच्छा पैसा कमाते हैं और अपने घर परिवार को चलाते हैं. परिवार के लोग मेरे बछड़े का बड़े ही अच्छी तरह से ख्याल रखते हैं वह मेरे बछड़े को अपने परिवार का एक सदस्य समझते हैं उसे प्यार करते हैं वह मुझे भी अच्छी तरह से रखते हैं लेकिन मेरे गांव में मैंने अन्य गायों को भी देखा है जो दूध देना बंद कर देती हैं तो परिवार वाले उसे जंगल में बेसहारा उड़ाते हैं. एक दिन हो सकता है कि मे भी दूध देना बंद कर दू तो यह परिवार वाले मुझे भी जंगल में बेसहारा छोड़ दें.
जंगल में तो कुछ खाने को मिल ही जाता है लेकिन कुछ लोग तो इतने निर्दई होते हैं कि वह शहरों में पालते हैं और मुझे उन शहरों की गलियों में ही बेसहारा छोड़ देते हैं मुझे काफी तकलीफ होती है ऐसी गाय कैसे अपना जीवन व्यतीत करती हैं मुझे बिल्कुल भी समझ नहीं आता. एक बार में पास के ही शहर में गई थी तभी मैंने यह देखा कि कुछ गाय ऐसी ही शहरी इलाकों में घूम रही थी, कुछ गाये दूसरों के घरों के द्वारों पर खड़ी ताकती रहती हैं कि कोई उन्हें कुछ खाने के लिए दे दे. बेचारी इन शहरों की गायों की बुरी दशा होती है लेकिन मेरा मालिक मेरी अच्छी तरह से देखभाल करता है क्योंकि मैं उसे दूध देती हूं लेकिन फिर भी एक तरफा लगता है कि कहीं मेरे साथ भी ऐसा ना हो.
मुझे खुशी तब होती है जब दिवाली का त्यौहार आता है दिवाली के त्यौहार पर मेरे गले में अच्छे-अच्छे हार पहनाए जाते हैं और मेरे माथे पर तिलक लगाते हैं, कई लोग मुझे तरह-तरह से सजाते हैं वह देवी की तरह मेरी पूजा करते हैं लेकिन दिवाली के समय लोग जब पटाके चलाते हैं तो मुझे काफी डर भी लगाता है यह पटाके कई तरह की जोर की आवाज निकालते हैं एवं वायु प्रदूषण भी करते हैं. लोगों को पटाके चलाना कम कर देना चाहिए क्योंकि इससे हमें नुकसान के सिवा कुछ भी नहीं है.
मैं सुबह जागती हूं और शाम को अपने घर वापस आ जाती हैं रोजाना मेरी दिनचर्या ऐसी ही है जब मैं शाम को वापस आती हूं तो मेंरा बच्चा तेजी से चिल्लाता है, उसकी आवाज सुनकर मैं भी काफी खुशी महसूस करती हूं कि वह मुझसे कितना लगाव रखता है वास्तव में हर माँ के लिए अपना बच्चा सबसे प्यारा होता है मेरे लिए भी मेरा बछड़ा काफी प्यारा है. मैं आखिर में आप सभी से एक बात दोबारा कहना चाहती हूं कि हम गायों की सेवा कीजिए हमें शहरों की गलियों में बेसहारा मत छोड़िए.
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