आर्थिक मंदी पर निबंध Arthik mandi essay in hindi
Arthik mandi essay in hindi
Arthik mandi – दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से आर्थिक मंदी पर लिखे निबंध के बारे में बताने जा रहे हैं ।चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और आर्थिक मंदी पर लिखे इस निबंध को पढ़कर आर्थिक मंदी की जानकारी प्राप्त करते हैं ।
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आर्थिक मंदी के बारे में – आर्थिक मंदी के कारण ही देश का विकास रुका हुआ होता है । जिस देश की आर्थिक मंदी चलती है वह देश जीडीपी ग्रोथ में फिसल जाता है ।आर्थिक मंदी का सीधा सा अर्थ है कि जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सभी वस्तुओं एवं जितनी भी सेवाएं हैं उन सभी सेवाओं के उत्पादन में निरंतर गिरावट होना एवं सकल घरेलू उत्पादन में तकरीबन 3 महीने की डाउन गिरावट हो जाने के कारण यह आर्थिक मंदी आती है । जब ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है तब इस स्थिति को विश्व आर्थिक मंदी भी कहा जाता है ।
सकल घरेलू उत्पाद की निरंतर गिरावट के कारण कई देशों के विकास का एजेंडा रुका हुआ है । देश के विकास की ग्रोथ तब बढ़ सकती है जब सकल घरेलू उत्पादो को बढ़ाया जाए । जब सकल घरेलू उत्पाद में बढ़ोतरी होगी तब आर्थिक मंदी भी खत्म होगी और सभी खुशी के साथ अपना जीवन व्यतीत करेंगे । विश्व आर्थिक मंदी का बढ़ने का सबसे बढा कारण है बदलते हुए समय के साथ अपने कदम ना बढ़ाना । जैसे कि आज इंटरनेट का जमाना है । जो देश इंटरनेट के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं उस देश की जीडीपी ग्रोथ निरंतर बढ़ रही है और वहां की आर्थिक मंदी में भी कमी देखी गई है ।
अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मंदी को रोकने का एक सबसे बड़ा जरिया है और वह जरिया नई-नई तकनीकों का अविष्कार करके लोगों को उन सभी सुविधाओं का लाभ देना । जब सभी लोग नई तकनीकों का उपयोग करेंगे तब जाकर के बाजार की आर्थिक मंदी खत्म होगी । कहने का तात्पर्य यह है कि निजी जीवन में जो बस्तु या सामान उपयोग में आता है जब उन सभी वस्तुओं और सामान के उपयोग में गिरावट होती है तब आर्थिक विकास को पीछे खींच लेती है । आर्थिक मंदी से छुटकारा पाने के लिए मांग और बचत के जो उपाय हैं उन सभी उपायों में सुधार करने की आवश्यकता हैं ।
यदि हम भारत देश की आर्थिक मंदी की बात करें तो भारतीय अर्थव्यवस्था में काफी मंदी देखी गई है । कुछ सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था की मंदी निरंतर बढ़ती जा रही है ।जब 2016 और 2017 में भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी पर सर्वे हुआ तब भारतीय अर्थव्यवस्था में जीडीपी विकास दर 8.2 प्रतिशत दर्ज किया गया था । जो सबसे कम थी ।इसके बाद जब 2018 और 2019 का सर्वे सामने आया तब पता चला था कि भारत की आर्थिक अर्थव्यवस्था काफी नीचे गिर रही है । जिसमें जीडीपी 5.8 प्रतिशत पर पहुंच गई थी ।
इसके बाद भारत देश की सबसे बड़ी बैंक जो व्यापारिक बैंक भी है जिसके माध्यम से कई व्यापार चल रहे हैं । मैं बात कर रहा हूं एसबीआई बैंक की जिसने अर्थव्यवस्था पर एक सर्वे कराया था और वह सर्वे 2019 और 2020 का है । एसबीआई ने रिसर्च करने के बाद यह खुलासा किया था कि 2019 से 2020 की जो पहली तिमाही है उस पहली तिमाही में जीडीपी 5.6 प्रतिशत तक पहुंचने की आशंका हैं । दोस्तों किसी देश की आर्थिक मंदी निजी उपभोग ही उस देश की आर्थिक विकास की रीड की हड्डी होती है ।
कहने का तात्पर्य यह है कि निजी उपभोग ही विकास दर में बढ़ोतरी कर सकती है । हमारे भारत देश की बात करें तो हमारा भारत देश निजी उपभोग मे थोड़ा सा पिछड़ रहा है । जिससे उसका विकास दर थोड़ा सा कम हो रहा है । भारत देश की विकास की रीड की हड्डी निजी उपभोग है । यदि हम निजी उपभोग के बारे में बात करें तो जीडीपी मे निजी उपभोग का 60% महत्वपूर्ण योगदान है । जिस योगदान से ही भारत में विकास कार्य होते हैं और भारत देश अपना और भारत के सभी नागरिकों का विकास करता है । आर्थिक मंदी के कारण ही बाजार में मंदी आती हैं ।
जब आर्थिक मंदी के कारण बाजार में मंदी आती तब व्यापारीयो का दिबाला निकल जाता हैं । जिसके कारण भारत की अर्थव्यवस्था बिगड़ जाती हैं और भारत की जीडीपी ग्रोथ नीचे गिर जाती है ।
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