अपरा एकादशी व्रत पूजा विधि, कथा Apara ekadashi puja vidhi, vrat katha in hindi
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दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से अपरा एकादशी व्रत पूजा विधि , कथा के बारे में बताने जा रहे हैं . चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और इस आर्टिकल को पढ़कर अपरा एकादशी व्रत पूजा विधि , कथा को पढ़ते हैं .
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अपरा एकादशी व्रत पूजा विधि – अपरा एकादशी व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है . जो भी व्यक्ति अपरा एकादशी व्रत करता है वह सुबह दशमी तिथि से ही व्रत के सभी नियमों का पालन करना प्रारंभ कर देता है . दशमी तिथि से ही वह उपवास करता है .इस व्रत का उपवास करने के लिए सिर्फ अल्पाहार भोजन ग्रहण करना चाहिए . इस दिन भगवान श्री कृष्ण भगवान , विष्णु जी एवं बलराम की पूजा करनी चाहिए .
इस दिन जो भी व्रत करता है उसको ब्रह्माचार्य का पालन अवश्य करना चाहिए . जो भी अपरा एकादशी व्रत कर रहा है उसको सुबह उठकर पूरे घर की साफ सफाई करके स्नान करना चाहिए और भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने व्रत का संकल्प लेना चाहिए . जो भी यह व्रत कर रहा है वह यह कोशिश करें कि इस व्रत को निर्जला करें , निर्जला उपवास रखें . यदि वह निर्जला उपवास नहीं रख पा रहा है तो वह एक टाइम का फलाहार करके यह व्रत कर सकता है .
रात्रि में भगवान श्री कृष्ण एवं भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए जागरण करना चाहिए , भजन कीर्तन करना चाहिए . इसके बाद दूसरे दिन यानी द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को घर पर बुलाकर उनके चरण धोकर भोजन कराना चाहिए , उनको दान दक्षिणा देना चाहिए . इसके बाद स्वयं भोजन कर अपने व्रत का पारण करना चाहिए .
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अपरा एकादशी व्रत कथा – एक राज्य में एक प्रतापी राजा रहता था , वह बहुत दानी राजा था . वह अच्छे कर्म किया करता था . वह राजा भूखे मनुष्य को भोजन करवाता था , कुंवारी कन्याओं का विवाह करवाता था , शुभ कर्म किया करता था . उसके मन में किसी भी तरह का कोई भी कपट नहीं था . उस राजा का नाम महीध्वज था . वह अपने राज्य की प्रजा को बहुत खुश रखता था . राज्य के गरीब लोगों की सहायता किया करता था . जितना बड़ा यह प्रतापि दानी राजा था उसका छोटा भाई बज्रध्वज बहुत बड़ा पापी था .
बज्र धवज अपने बड़े भाई महीध्वज से घृणा करता था . वह मौके की तलाश में था कि कब उसे मौका मिल जाए और वह अपने बड़े भाई महीध्वज को मारकर पूरे राज्य का राजा बन जाए . उसे एक बार मौका मिल गया और उसने अपने बड़े भाई महीध्वज को जान से मार दिया . उसे महीध्वज को मारकर जंगल मेंं फिकबा दिया था . समय सेे पहले मृत्यु के कारण महीध्वज एक प्रेत के रूप में अपना जीवन जी रहा था . उधर उसके छोटे भाई बज्र धवज ने पूरे राज्य को अपने कब्जे में ले लिया था और पूरे राज्य का राजा बन गया था .
राज्य का राजा बनने के बाद वह राज्य की प्रजा पर अत्याचार करने लगा था . उसके अत्याचार से राज्य के लोग दुखी थे . इधर उसके बड़े भाई महीध्वज की आत्मा एक पीपल के पेड़ में समा गई थी . महीध्वज की आत्मा वहां से निकलने वाले लोगोंं को परेशान करती थी लेकिन महीध्वज के पुण्य कर्म के कारण उसकी आत्मा को मोक्ष मिलने का समय आ गया था . एक दिन उस रास्तेे से एक ब्राह्मण निकल रहा था . वह ब्राह्मण बहुत शक्तिशाली ब्राह्मण था .
उसने जब देखा कि यहां से निकलने वाले लोगों को एक आत्मा परेशान कर रही है तब उसने अपनी सिद्धि से उस महीध्वज की आत्मा को अपने पास बुलाया और उसकी आत्मा को पवित्र किया . महीध्वज की आत्मा को मोक्ष दिलाने के लिए उस ब्राह्मण ने स्वयं अपरा एकादशी का व्रत किया और उस व्रत का जितना भी पुण्य का फल प्राप्त हुआ था वह पूरा फल उस ब्राह्मण ने महीध्वज को समर्पित कर दिया था . जिससे महीध्वज की प्रेत आत्मा को इस संसार से मोक्ष प्राप्त हुआ था और वह स्वर्ग को गया था .
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