अमरनाथ मंदिर गुफा का इतिहास Amarnath cave temple history in hindi

Amarnath cave temple history in hindi

Amarnath cave temple – दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से अमरनाथ मंदिर गुफा के इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं । तो चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और इस आर्टिकल को पढ़कर अमरनाथ मंदिर गुफा के इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं ।

Amarnath cave temple history in hindi
Amarnath cave temple history in hindi

image source- https://en.wikipedia.org/wiki

अमरनाथ मंदिर गुफा के बारे में – अमरनाथ मंदिर की गुफा से भारतीय लोगों की आस्था जुड़ी हुई है । यह भारत देश के हिंदू धर्म के लोगों का प्रमुख तीर्थ स्थल है । अमरनाथ मंदिर गुफा भारत देश के कश्मीर राज्य  के श्रीनगर शहर के उत्तर पूर्व में स्थित है । अमरनाथ की है पावन गुफा समुद्र तल से 13600 फीट की ऊंचाई पर स्थित है । इस गुफा को शिव जी की गुफा कहीं जाती है । गुफा की लंबाई तकरीबन 19 मीटर की और चौड़ाई 16 मीटर है जो भीतर की गहराई के अनुसार है । बाहर से इस गुफा की ऊंचाई 11 मीटर है ।

अमरनाथ गुफा बहुत ही अद्भुत और चमत्कारी गुफा है । अमरनाथ गुफा भगवान शिव के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है । जहां पर प्रतिवर्ष श्रद्धालु गण जाकर गुफा में भगवान शिव की अद्भुत चमत्कारी शिवलिंग के दर्शन कर अपने जीवन में आनंद प्राप्त करते हैं । इस गुफा के बारे में भारतीय ग्रंथों में यह बताया गया है कि इसी गुफा में भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था । इस गुफा में बर्फ की प्राकृतिक शिवलिंग निर्मित होती है इसी कारण से इस गुफा को स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहा जाता है । भारत देश के कोने कोने से लोग प्रतिवर्ष इस गुफा के दर्शन के लिए अमरनाथ की यात्रा पर जाते हैं ।

आषाढ़ पूर्णिमा से लेकर रक्षाबंधन तक अमरनाथ की यात्रा के लिए लोगों का जमावड़ा अमरनाथ मे दिखाई देता है । भारत देश में स्थित अमरनाथ गुफा का पता सबसे पहले मुसलमान गडरिएंं को पता चला था । मुसलमान गडरिएंं को अमरनाथ गुफा का पता 16वीं शताब्दी में चला था । आज अमरनाथ गुफा मे जितनी भी धनराशि एकत्रित होती है उस धनराशि में से कुछ हिस्सा मुसलमान गडरिएंं के पूर्वज वंशजों को दिया जाता है । अमरनाथ की इस पावन यात्रा को प्रारंभ करने के दो रास्ते हैं । पहला रास्ता पहलगाम से होकर जाता है और दूसरा रास्ता सोनमर्ग बलटाल से होकर जाता है ।

बालटाल से अमरनाथ गुफा की दूरी तकरीबन 14 किलोमीटर है । पहलगाम जम्मू से अमरनाथ गुफा की दूरी 314 किलोमीटर दूरी पर स्थित है । जो यात्री पहलगाम से अमरनाथ यात्रा को प्रारंभ करता है उस यात्री का पहला पड़ाव चंदनबाड़ी पर पड़ता है जो चंदनवारी पहलगाम से तकरीबन 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । जब पहलगाम से होते हुए चंदनवाड़ी में यात्री पहुंचता है तब वह यात्री अपनी पहली रात यहीं पर गुजारता है । इसके बाद यात्री का जत्था दूसरे दिन पिस्सू घाटी की ओर बढ़ता है ।

चंदनबाड़ी के बाद जब अमरनाथ की यात्रा पर जाने वाला यात्री 14 किलोमीटर की चढ़ाई पूरी कर लेता है तब शेषनाग मार्ग पर पिस्सू घाटी के दर्शन होते हैं । शेषनाग की चढ़ाई बहुत ही खतरनाक होती है । अमरनाथ की पूरी यात्रा में यदि सबसे कठिन चढ़ाई है तो वह चढ़ाई पिस्सू घाटी की चढ़ाई है इसलिए पिस्सू घाटी की चढ़ाई को जोखिम भरी चढ़ाई माना जाता है । पिस्सू घाटी समुद्र तल से तकरीबन 11120 फुट की ऊंचाई पर स्थित है । इसके बाद अमरनाथ की यात्रा करने वाला व्यक्ति शेषनाग झील की ओर बढ़ता है । शेषनाग झील पर पहुंचने के बाद यात्री शेषनाग से पंचतरणी की ओर बढ़ता है ।

शेषनाग और पंचतरणी के बीच का फासला 8 मील का है । शेषनाग और पंचतरणी की ऊंचाई अधिक होने के कारण यहां पर बहुत अधिक ठंड पड़ती है और यहां पर ऑक्सीजन की काफी कमी होती है इसीलिए अमरनाथ की यात्रा पर जाने वाला व्यक्ति पूरी तैयारी के साथ जाता है । यदि ऑक्सीजन की कमी के कारण उसको किसी तरह की कोई तकलीफ होती है तो वह उस ऑक्सीजन की कमी को पूरा कर सकें । अमरनाथ मंदिर की गुफा में जो हिम शिवलिंग बनता है वह हिम शिवलिंग चंद्रमा के घटने बढ़ने के साथ-साथ शिवलिंग का आकार भी घटता बढ़ता रहता है ।

अमरनाथ की यात्रा करने वाले यात्री को बड़ी कठिनाइयों को झेलते हुए गुफा तक पहुंचना होता है । जब यात्री अमरनाथ की गुफा पर पहुंचकर भोलेनाथ की अद्भुत चमत्कारी शिवलिंग का दर्शन कर लेता है तब उसकी पूरी थकावट खत्म हो जाती है । अमरनाथ गुफा के बारे में ऐसा कहा जाता है कि वहां पर कबूतरों का एक झुंड भी रहता है । जो श्रद्धालु पूरी श्रद्धा के साथ गुफा के दर्शनों के लिए जाता है उसे उस कबूतर का झुंड दिखाई देता है ।कबूतर का झुंड उसी को दिखाई देता है जो पूरी श्रद्धा के साथ गुफा के दर्शनों के लिए जाता है ।

कबूतरों के झुंड के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यह झुंड वही है जिसने शंकर भगवान से अमृत के रहस्य की कथा सुनी थी । जिस समय भोलेनाथ पार्वती जी को अमरत्व की कथा सुना रहे थे उस समय कबूतरों का यह झुंड भी वहां पर मौजूद था जो कथा सुनने के बाद अमर हो गए थे ।

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