आचार्य तुलसी पर निबंध व् विचार Acharya tulsi essay, quotes in hindi
Acharya tulsi essay, quotes in hindi
दोस्तों आज हम आपके लिए लाए हैं आचार्य तुलसी पर लिखें इस निबंध को । चलिए अब हम पढ़ेंगे आचार्य तुलसी पर लिखें इस निबंध को । आचार्य तुलसी का जन्म 20 अक्टूबर 1914 को राजस्थान के लाडनू में हुआ था । उनके पिता का नाम झूमरलाल खट्टड था एवं उनकी माता जी का नाम बंदना था । आचार्य तुलसी जी के पांच भाई एवं तीन बहने थी । आचार्य तुलसी जी सबसे छोटे थे ।
उनके सबसे बड़े भाई का नाम चंपालाल जी था । इनके बड़े भाई चंपालाल जी पहले ही जैन धर्म के श्वेतांबर मुनी बन चुके थे ।
आचार्य तुलसी जी की उम्र जब 5 साल की थी तब उन्होंने स्कूल जाना प्रारंभ कर दिया था । वह अपने पिता के साथ प्रवचन सुनने जाया करते थे । जब वह प्रवचन सुनते थे तब वह लोगों की भलाई के लिए मुनी बनना चाहते थे । आचार्य तुलसी जी श्वेतांबर तेरापंथ के नबे आचार्य थे । आचार्य तुलसी जीने मानव कल्याण के लिए बहुत काम किए थे ।
आचार्य तुलसी जी को जैन धर्म के साथ साथ हिंदू ,मुस्लिम, सिख, ईसाई धर्मों के लोग भी पसंद करते थे । आचार्य तुलसी जी को मानव कल्याण के लिए काम करने के लिए हमारे भारत के पूर्व राष्ट्रपति वी.वी गिरि ने सन 1971 में युग प्रधान की उपाधि से सम्मानित किया था । आचार्य तुलसी जी अपने उपदेशों में कहते थे कि मैं सबसे पहले एक मानव हूं, इसके बाद मैं एक धार्मिक व्यक्ति हूं ,इसके बाद मैं साधना शील जैन मुनी हूं ,इसके बाद मैं तेरापंथ संप्रदाय का आचार्य हूं ।
आचार्य तुलसी जी ने मानव कल्याण के लिए कई कार्यक्रम किए थे जिसमें प्रेक्षा ध्यान और जीवन विज्ञान आदि मुख्य हैं । आचार्य तुलसी जी ने नैतिक एवं मानवीय मूल्यों को पोषण प्रदान करने के लिए जैन विश्वविद्यालय की स्थापना की थी । इस जैन विश्वविद्यालय की स्थापना के समय वह करीबन 100000 किलोमीटर पैदल चले थे । आचार्य तुलसी जी ने दीक्षा लेने के बाद अणुव्रत आंदोलन को चलाया था ।
आचार्य तुलसी जी ने कई पुस्तकें भी लिखी हैं । आचार्य तुलसी जी एक अच्छे व्यक्ति होने के साथ-साथ साहित्य ,धर्म ,कला ,दर्शन और संस्कृति के प्रतिनिधि ऋषि पुरुष भी थे । आचार्य तुलसी जी के उपदेशों से कई लोगो का जीवन सुधरा है । जब आचार्य तुलसी जी प्रवचन देते थे तब उनके प्रवचन सुनने के लिए काफी भीड़ एकत्रित होती थी । आचार्य तुलसी जीने अपने जीवन में मानव कल्याण के लिए कई काम किए थे ।
यदि हम उनके जीवन में किए गए कामों को देखें तो हमें बड़ा आश्चर्य होगा कि उन्होंने अपने छोटे से इस जीवन में इतने सारे कार्य कैसे किए होंगे । आचार्य तुलसी जी को यह चिंता नहीं थी कि आने वाली 21वीं सदी कैसी होगी बल्कि उन्हें यह चिंता थी कि हमारा आने वाला कल कैसा होगा । आचार्य तुलसी जी अपने प्रवचनों में कहते थे कि जैन धर्म मेरे रग रग में एवं नस नस में बसा हुआ है । आचार्य तुलसी जी ने 23 जून 1997 राजस्थान के गंगा शहर में समाधि ले ली थी ।
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दोस्तों आज हम आपके लिए लाए हैं आचार्य तुलसी जी के अनमोल विचारों को । चलिए अब हम पढ़ेंगे आचार्य तुलसी जी के अनमोल विचारों को ।
धर्म तो मनुष्य को आपस में मिलना सिखाता है जो धर्म आपस में लड़ाए वह वास्तव में धर्म है ही नहीं ।
वृक्ष अपने सिर पर गर्मी रखता है पर अपनी छाया से दूसरों का ताप दूर करता है ।
धार्मिक व्यक्ति दुख को सुख में बदलने की क्षमता रखता है ।
हमें स्वप्न वही देखना चाहिए जो पूरा हो सके ।
दया धर्म का मूल है ।
प्रलोभन और भय का मार्ग बच्चों के लिए उपयोगी हो सकता है परंतु सच्चे धार्मिक व्यक्ति के दृष्टिकोण में कभी भी लाभ हानि वाली संकीर्णता नहीं होती है ।
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