अयोध्या धाम की मेरी यात्रा Ayodhya dham ki yatra in hindi
Ayodhya dham ki yatra in hindi
दोस्तों नमस्कार कैसे हैं आप सभी, दोस्तों आज के हमारे आर्टिकल में हम पढ़ने वाले हैं अयोध्या धाम की मेरी यात्रा के बारे में
दोस्तों वैसे तो मैं बहुत सारे आर्टिकल लिखता रहता हूं लेकिन अयोध्या धाम की यात्रा का सफर आर्टिकल मेरे दिल से जुड़ा हुआ है। अयोध्या जाने का मेरा सपना काफी समय से था।
लगभग अगस्त 2023 से मैं अयोध्या जाने का सोच रहा था की कब जाया जाए लेकिन डिसाइड नहीं हो पा रहा था। मार्च के महीने में 20 मार्च को मेरे पिताजी ने मुझसे अयोध्या चलने को कहा तो मैं मना नहीं कर पाया।
दरहसल इससे पहले मैंने खुद मेरे पिताजी से कहा था अयोध्या चलने को लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया था। जब उन्होंने 20 मार्च को सामने से मुझसे अयोध्या चलने को कहा तो मैंने हां बोल दिया।
दरअसल हमारा 15 या 20 दिन बाद चलने का विचार था अब मुझे सीट रिजर्व करवाना थी, वैसे तो मैं बिना कंफर्म सीट के कई जाना पसंद नहीं करता लेकिन भगवान श्री राम के दर्शन करने के लिए कुछ ज्यादा ही उत्साहित था इसलिए सीट तो कंफर्म हुई नहीं लेकिन फिर भी वेटिंग का टिकट लेकर अयोध्या चलने के लिए तैयारी करना शुरू कर दिया।
लगभग 10 या 11 तारीख को मुझे पता चला कि हमारी गुना से अयोध्या तक की सीट कंफर्म नही हुई है लेकिन उधर से वापसी की सीट कंफर्म हो चुकी है।
हम अगले दिन यानी 11 तारीख को दोपहर 12:00 बजे घर से निकल गए, मेरे साथ मेरे माता-पिता थे। एक बात बताना भूल गया दरहसल हमें सबसे पहले वाराणसी जाना था उसके बाद हम अयोध्या जाने वाले थे।
11 तारीख को लगभग 12:00 बजे हम ट्रेन में चढ़े तो ट्रेन में लगभग 6 7 घंटे खड़ा होना पड़ा, बैठने की जगह नहीं मिली लेकिन किसी तरह से 8 घंटे खड़े होने के बाद कोशिश करने के बाद हमें सोने की जगह भी मिल गई।
लगभग 22 या 23 घंटे बाद हम वाराणसी पहुंचे वहां पर भगवान शिव शंकर के हमने दर्शन किए और फिर रात के 11:00 बजे वाराणसी से अयोध्या के लिए निकल पड़े।
हम लगभग सुबह 3:30 या 4:00 बजे अयोध्या पहुंचे थे। अयोध्या पहुंचकर सच में मुझे बहुत ही अच्छा अनुभव हुआ, मुझे ऐसा लगा कि शायद में दूसरी दुनिया में ही आ गया हूं या मेरा एक बहुत बड़ा सपना पूरा हो गया हो फिर अयोध्या के रेलवे स्टेशन से हमने सरयू नदी के लिए टैक्सी पकड़ी, वहां पर हमने स्नान आदि किया।
उसके बाद सरयू नदी से टैक्सी पकड़कर हम भगवान श्री राम के अयोध्या के मंदिर के पास पहुंचे और मंदिर के बाहर ही अपना सामान, मोबाइल आदि रखकर हमने देखा की बहुत ज्यादा भीड़ है।
मंदिर 6:30 बजे खुलना था लेकिन हम लगभग पौने घंटा पहले ही लाइन में लग गए, धीरे-धीरे जब 6:30 बजे तब हम सभी आगे की तरफ प्रवेश होने लगे तो मैंने देखा की सबसे पहले एक बड़ा सा गेट लगा हुआ है उसके जरिए हम आगे प्रवेश हुए और धीरे-धीरे आगे प्रवेश करते चले गए।
बाहर के गैट से मंदिर तक पहुंचने का रास्ता काफी लंबा है, इसमें लगभग हमको 10 या 15 मिनट तो लगै ही होंगे दरअसल हमारा मोबाइल और हमारा बाकी का सामान हमने मंदिर के बाहर ही रख दिया था इसलिए मैंने समय तो देखा नहीं लगभग इतना समय लग गया होगा।
अब धीरे-धीरे हम लाइन में लगते हुए भगवान श्री राम के मंदिर के करीब पहुंचे। भगवान श्री राम के मंदिर को करीब से देखकर मैं काफी भावुक हुआ। मंदिर काफी भव्य था, मंदिर काफी सुंदर और बड़ा था।
मैंने महसूस किया कि ऐसा मंदिर मैंने आज तक कहीं नहीं देखा। मंदिर में प्रवेश के साथ में, मैं काफी भावुक था क्योंकि हम सभी सनातनियों का 500 साल बाद अयोध्या में मंदिर बनने का सपना पूरा हो रहा था। मैं जैसे ही मंदिर में अंदर प्रवेश हुआ तो भगवान श्री राम के दर्शन करके मैं गदगद हो गया, सच मानिए में काफी भावुक भी था, ये कैसी खुशी थी मैं समझ ही नहीं पा रहा था।
मैं देख रहा था कि मेरे पिताजी भी काफी भावुक हो गए थे, उनकी आंखों में आंसू थे। भगवान श्री राम के दर्शन करके हम काफी अच्छा महसूस कर रहे थे फिर दर्शन करने के बाद भगवान श्री राम के मंदिर के बाहर निकले, कुछ दूरी पर ही हमें प्रसाद प्राप्त हुआ और फिर हम अयोध्या मंदिर के मेन गेट पर पहुंच गए
फिर वहां से हमने भगवान श्री राम की तस्वीर खरीदी और फिर पास में ही स्थित श्री हनुमानगढ़ी मंदिर के दर्शन किए और हनुमानगढ़ी मंदिर के दर्शन करने के बाद हम वहां से पैदल ही चल पड़े।
रास्ते में हमने नाश्ता किया और फिर पास में ही स्थित एक गार्डन जिसके अंदर भगवान श्री राम का मंदिर भी है वहां पर गए। उस मंदिर में भगवान श्री राम, सीता मैया और श्री लक्ष्मण जी के दर्शन किए और फिर मंदिर के बाहर उस गार्डन में हमने कुछ समय तक विश्राम किया।
फिर कुछ समय बाद ही हम रेलवे स्टेशन पर पहुंच गए। दरहसल अयोध्या मंदिर से रेलवे स्टेशन लगभग 1 किलोमीटर या उससे थोड़ा कम ही दूरी पर स्थित है इसलिए हम वहां से पैदल ही चल पड़े और फिर शाम 6:00 बजे की ट्रेन पड़कर हम वापस अपने गुना शहर में आ गए।
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