वासुपूज्य जी पर स्पीच Speech on vasupujya bhagwan in hindi

Speech on vasupujya bhagwan in hindi

vasupujya bhagwan – दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से वासुपूज्य जी पर लिखी स्पीच  के बारे में बताने जा रहे हैं । तो चलिए अब हम आगे बढ़तेे हैं और इस आर्टिकल को पढ़कर वासुपूज्य जी  के बारे में जानते हैं ।

Speech on vasupujya bhagwan in hindi
Speech on vasupujya bhagwan in hindi

नमस्कार दोस्तों आज हम सभी यहां पर एक विशेष कार्यक्रम में शामिल किए हैं । मैं सबसे पहले इस कार्यक्रम के आयोजक को धन्यवाद देना चाहता हूं उन्होंने इस कार्यक्रम की पूरी व्यवस्थाएं संभाली । इसके बाद में जैन  समाज के सभी कार्यकर्ताओं को भी धन्यवाद देना चाहता हूं कि उन्होंने इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए जी तोड़ मेहनत की है । इसके साथ साथ में यहां पर उपस्थित सभी  जैन समाज के लोगों को भी धन्यवाद देता हूं कि जो है इस कार्यक्रम में दूर-दूर से उपस्थित हुए हैं । आज हम सभी इस कार्यक्रम में जैन धर्म के 12 वे तीर्थंकर , जैन धर्म के भगवान वासुपूज्य जी के बारे मेंं चर्चा करेंगे ।

इससे पहले मैं यहां पर उपस्थित सभी जैन समाज के लोगों से आग्रह करता हूं कि वह कार्यक्रम की व्यवस्थाओं को बनाए रखने के लिए शांतिपूर्वक अपनी कुर्सी पर विराजमान हो जाए जिससे कि हम इस कार्यक्रम की बेला को आगे बढ़ाए । हमारे इस कार्यक्रम में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होंगेे । इस कार्यक्रम में जैन समाज के युवा और युवतीयो के द्वारा एक विशेष संगीत का आयोजन किया जाएगा । अब मैं आपको जैन समाज के 12 वे तीर्थकर भगवान वासुपूज्य जी के बारे में बताने जा रहा हूं । जैसा कि हम और आप सभी लोग यह जानते हैं कि  भगवान वासुपूज्य जी जैन  धर्म के 12 वे तीर्थकर हैं ।

हमारे पूज्य भगवान वासुपूज्य जी के द्वारा इनके पांचो कल्याणक  चंपापुर मे हुए हैं । अब मे आपको जैन धर्म के भगवान वासुपूज्य जी के जन्म और उनके माता-पिता के बारे में बताने जा रहा हूं । भगवान वासुपूज्य जी का जन्म चंपापुर में हुआ था । इनके पिता का नाम वासुपूज्य था  एवं उनकी माता जी का नाम जया था । यह इक्ष्वाकु वंश के थे । यह वह महान भगवान है जिनके द्वारा समाज कल्याण के लिए  कई कार्य किए गए हैं । मैं आपको बता देना चाहता हूं कि  तीर्थकर वह होता है जो  संसार सागर से पार लगाने वाले तीर्थ की  उत्पत्ति करता है ।

जब व्यक्ति मोह माया को त्याग देता है , अपने अभिमान को त्याग देता है , अपने क्रोध को त्याग देता है तब वह अपनी इच्छा पर विजय प्राप्त कर लेता है और वह तीर्थकर कहलाता है । हमारे भगवान वासुपूज्य जी ने सभी त्याग कर ज्ञान प्राप्त करके जैन समाज को ज्ञान दिया है । हमारे वासुपूज्य जी के यक्ष का नाम षणमुख एवं यक्षिणी का नाम गोरी था । हमारे पूज्य भगवान वासुपूज्य जी के द्वारा फाल्गुन अमावस्या तिथि के दिन जहां उनका जन्म हुआ था यानी चंपापुरी मे उसी चंपापुरी में भगवान वासुपूज्य जी ने दीक्षा प्राप्त की थी ।

दीक्षा प्राप्त करने के बाद भगवान वासुपूज्य जी के द्वारा 1 महीने तक कठिन तप किया गया था । 1 महीने का कठिन तप करने की बाद भगवान वासुपूज्य जी को चंपापुरी में ही एक पाटल वृक्ष के नीचे कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी । ज्ञान प्राप्त करने के बाद भगवान वासुपूज्य जी के द्वारा जैन समाज को कई उपदेश दिए गए थे जिन उपदेशो को प्राप्त करके जैन समाज के लोगों का कल्याण हुआ है । दोस्तों यहां पर उपस्थित समाज बंधुओं को मैं बता देना चाहता हूं कि हमारे परम पूज्य भगवान वासुपूज्य जी के द्वारा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को चंपापुरी में निर्वाण लिया गया था ।

जब भगवान वासुपूज्य जी के द्वारा निर्वाण लिया गया था तब उनके निर्वाण समारोह में दूर-दूर से जैन समाज के लोग उपस्थित हुए थे । पूरे चंपापुरी में जुलूस निकाला गया था । अब हम इस कार्यक्रम की बेला को आगे बढ़ाते हैं । अब मे अपनी वाणी को विराम देता हूं । अब यहां मंच पर कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे । मैं आप लोगों से निवेदन करता हूं कि आप सभी लोग सांस्कृतिक कार्यक्रम को देखकर ही  यहां से प्रस्थान करें धन्यवाद ।

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