जगन्नाथ पुरी के मंदिर का इतिहास jagannath puri temple history in hindi
jagannath puri temple history in hindi
जगन्नाथपुरी का मंदिर उड़ीसा राज्य के पुरी में स्थित है . यह मंदिर हिंदू धर्म के लोगों के लिए आस्था का केंद्र है . इस मंदिर को देखने और दर्शन करने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं . जब जगन्नाथपुरी में आषाढ़ माह के शुल्क पक्ष में जगन्नाथ पुरी भगवान की यात्रा निकाली जाती है तब देश-विदेश से लोग वहां पर घूमने के लिए आते हैं . पूरे जगन्नाथपुरी को फूलों से सजाया जाता है .
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा की तैयारी 1 महीने पहले से ही की जाती है क्योंकि वहां पर अधिक लोग जगन्नाथ पुरी यात्रा में पहुंचते हैं . जगन्नाथ पुरी मंदिर कलिंग शैली से बनाया गया है . यह मंदिर बहुत ही अद्भुत बनाया गया है , इस मंदिर की सुंदरता देखने लायक है . यह मंदिर भगवान श्री कृष्ण उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा जी का है . तीनों बहन भाई की मूर्ति इस मंदिर में मौजूद है . यह मंदिर वक्ररेखीए आकार का बनाया गया है . कलिंग शैली से बना यह मंदिर बड़ा ही सुंदर दिखाई देता है . इस मंदिर के शिखर पर भगवान विष्णु जी का सुदर्शन चक्र लगाया गया है . यह सुदर्शन चक्र अष्ट धातुओं से बनाया गया है .
इस मंदिर का नाम जगन्नाथ पुरी इसलिए रखा गया है कि जगन्नाथ पुरी का अर्थ है पूरे जगत के भगवान . इस मंदिर का इतिहास काफी पुराना माना जाता है . यह कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण कार्य कलिंग राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने करवाया था . सन 1078 और 1148 में अभिमान भाग एवं जगमोहन के शासनकाल में यह मंदिर बनवाया गया था . इसके बाद जब उड़ीसा राज्य पर अनंग भीम का राज था तब 1197 में इस मंदिर को और भी भव्य बनाया गया था . मंदिर बनने के तुरंत बाद से इस मंदिर की पूजा की जाने लगी थी . इस मंदिर की पूजा बड़े धूमधाम से करते थे . प्रतिदिन इस मंदिर पर भगवान कृष्ण के जयकारे लगाए जाते थे .
अचानक से ही अफगान जनरल कालापहाड़ ने उड़ीसा पर हमला कर दिया था और पूरे राज्य पर कब्जा कर लिया था . जब राज्य पर जनरल काला पहाड़ का कब्जा हो गया था तब मंदिर की मूर्तियों को राज्य की प्रजा के द्वारा छुपा दिया गया था . इसके बाद राजा रामचंद्र देव ने अफगान जनरल काला पहाड़ से युद्ध किया और उसी युद्ध में सफलता हासिल की थी . युद्ध जीतने के बाद उड़ीसा राज्य को स्वतंत्र राज्य बना दिया था और इस मंदिर को भी स्वतंत्र कर दिया था . जब उड़ीसा राज्य स्वतंत्र हुआ तभी से मंदिर में सभी लोग पूजा करने के लिए जाने लगे थे . यह मंदिर प्राचीन समय से ही सुंदर दिखता है . यह भारत के प्रमुख चार तीर्थों में से एक तीर्थ माना जाता है .
यहां पर देश विदेश के लोग दर्शन करने के लिए आते हैं . भगवान जगन्नाथ पुरी के दर्शनों से हिंदू धर्म के लोगों की आस्था जुड़ी हुई है . जब इस मंदिर की रथ यात्रा निकाली जाती है तब यहां का नजारा देखने के लायक होता है . जगन्नाथ पुरी की सुंदरता देखने के लायक है . भगवान कृष्ण , भाई बलराम और बहन सुभद्रा की रथ यात्रा देखने के लायक होती है . पूरे जगन्नाथ पुरी में भगवान कृष्ण के जयकारे लगाए जाते हैं . भगवान जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा की तैयारी 2 महीने पहले से की जाती है . 2 महीने पहले से पूरे शहर को सजाया जाता है , रथ को सजाया जाता है , मंदिर को सजाया जाता है .
भगवान श्री कृष्ण बलराम और बहन सुभद्रा जी के कपड़े तैयार किए जाते हैं . किसी भी तरह की कमी इस यात्रा में नहीं रखी जाती है .
जगन्नाथ जी की व्रत कथा jagannath ji ki vrat katha in hindi
एक बार श्री कृष्ण अपनी पत्नी रुक्मणी के साथ रात्रि में सैया पर सो रहे थे तब रात्रि में श्री कृष्ण राधे राधे नाम जपने लगे थे और अचानक से रुकमणी की नींद खुल गई थी . जब रुक्मणी कृष्ण को राधे राधे नाम जपते हुए सुना तो उसे बड़ा ही आश्चर्य हुआ और उसने सोचा कि हम सभी महारानी कृष्ण जी की इतनी सेवा करते हैं फिर भी यह कन्या को याद कर रहे है . सुबह जब रुक्मणी ने श्री कृष्ण से पूछा कि राधा कौन है तब उन्होंने कुछ भी बताने से मना कर दिया था .
रुक्मणी ने सभी महारानीओं के साथ मिलकर यह निश्चय किया कि इस बारे में रोहिणी को अवश्य मालूम होगा और सभी महारानी रोहिणी जी के पास पहुंची और उनसे पूछने लगी की राधा कौन है और प्रभु का उन से क्या संबंध है . रोहिणी ने महारानीयों को कुछ भी बताने से मना कर दिया था लेकिन रुक्मणी और सभी महारानी बहुत आग्रह करने लगी थी . जब रुक्मणी और महारानी ने यह प्रतिज्ञा ले ली थी कि अब हम सच का पता लगाए बिना यहां से नहीं जाएंगे और रुक्मणी ने बहुत आग्रह रोहणी जी से किया तब रोहिणी जी महारानी को यह राज बताने के लिए तैयार हो गई थी .
रोहिणी ने कहा कि सुभद्रा बहन को गेट पर पहरेदारी के लिए बैठा दो और सुभद्रा गेट पर पहरेदारी के लिए बैठ गई थी . रोहिणी ने सुभद्रा से यह कहा था कि कोई भी हो किसी को भी अंदर आने मत देना चाहे बलराम हो या स्वयं कृष्ण किसी को भी अंदर मत आने देना . रोहिणी जब राज सुनाना प्रारंभ कर ही रही थी कि कृष्ण और बलराम वहां से आते हुए दिखाई दिए तो सुभद्रा ने श्री कृष्ण और बलराम को गेट पर ही रोक लिया था और श्री कृष्ण को सारी बात बता दी थी लेकिन वह रासलीला कृष्ण और बलराम को भी सुनाई दे रही थी .
तीनो भाई बहन जब उस रासलीला का आनंद लेने लगे थे तब अचानक से ही नारद मुनि वहां पर प्रकट हो गए जैसे ही नारद मुनि वहां पर आए वैसे ही तीनों भाई बहन श्री कृष्ण , बलराम और बहन सुभद्रा गायब हो गए और तीनों मूर्ति रूप में आ गए थे तब नारद जी ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की थी की हे प्रभु आप इस मूर्ति रूप में कितने सुंदर दिखाई दे रहे हो . मैं बड़ा ही सौभाग्यशाली हूं कि मैंने आपके दर्शन मूर्ति के रूप में किए हैं .
अब मैं आपसे प्रार्थना करना चाहता हूं कि आप इन मूर्तियों के रूप में धरती पर मनुष्य के कल्याण के लिए स्थापित हो और भगवान श्री कृष्ण ने तथास्तु कह दिया तभी से श्री कृष्ण बलराम और बहन सुभद्रा की मूर्ति वहां पर स्थित है .
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