भरहुत स्तूप का इतिहास bharhut stupa history in hindi

bharhut stupa history in hindi

दोस्तों आज हम इस लेख  के माध्यम से जानेंगे भरहुत स्तूप के इतिहास को । चलिए अब हम इस लेख को बड़े ध्यान से पढ़ते हैं । भरहुत स्तूप का इतिहास बहुत साल पुराना है । भरहुत स्तूप मध्य प्रदेश राज्य के सतना जिले में स्थित है । यहां की कलाकृति बहुत ही सुंदर है । यह कहा जाता है की प्राचीन समय में बौद्ध धर्म के लोग यहां पर शिक्षा लेने के लिए आते थे । कई सालों तक बौद्ध धर्म के अनुयाई यहां पर रहकर शिक्षा प्राप्त करते थे । भरहुत स्तूप का निर्माण पुष्यमित्र शुंग ने किया था ।

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पुष्यमित्र शुंग शुंग साम्राज्य के शासक थे । यह कहा जाता है की इन्होंने भरहुत स्तूप को बनाने में बहुत मेहनत की थी । यहां की कलाकृति को देखकर यह प्रतीत होता है कि यहां के आसपास  के लोगों का  कलाकृति से कितना लगाब था । भरहुत के स्तूप की कलाकृति बहुत ही सुंदर है । यहां की कलाकृति देखने के लायक है । भरहुत के स्तूप का  इतिहास बौद्ध धर्म से जुड़ा हुआ है । यह स्तूप बौद्ध स्तूप एवं कलाकृतियों के लिए प्रसिद्ध है । यहां पर देश-विदेश से लोग घूमने के लिए  आते हैं । भरहुत का स्तूप में बहुत सारी मूर्तियां  मौजूद हैं ।

इन मूर्तियों की कलाकृति  बहुत ही सुंदर की गई है । भरहुत स्तूप की खोज  1873 को  कनिंघम  ने  की थी । यह स्तूप 68 फुट ब्यास में फैला हुआ है । इस स्तूप के चार मुख्य द्वार बनाए गए हैं । ऐसा कहा जाता है कि यहां की कलाकृति और स्तूप की सुंदरता सांची के स्तूप के समान ही हैं । जिस तरह से सांची के स्तूप  बहुत सुंदर और दर्शनीय हैं उसी तरह से  भरहुत स्तूप  दर्शनीय और सुंदर हैं । भरहुत का स्तूप का निर्माण 150 ईसवी पूर्व में पुष्यमित्र शुंग द्वारा किया गया था । इस  स्तूप के निर्माण  में  यहां के आसपास के  लोगों का भी बहुत योगदान था ।

इन स्तूपो को देख कर हम यह कह सकते हैं कि यहां के आसपास के लोग कलाकृति में रुचि रखते थे । यह स्तूप ईटों के माध्यम से  अंडे के आकार  का बनाया गया है । यह स्तूप बोध धर्म के अनुयायियों के लिए शिक्षा का केंद्र बना था । आज भी इस स्तूप को देखने के लिए देश विदेश के लोग आते हैं । मध्य प्रदेश की सरकार के द्वारा भरहुत  के स्तूप  का  पुनर्निर्माण कराया जा रहा है । इस स्तूप का तोरण द्वार बहुत ही सुंदर है । इस स्तूप के चारों तरफ हरियाली ही हरियाली  दिखाई देती है । यह स्तूप पूरे भारत के साथ साथ  विदेशों में तक  फेमस है ।

1873 में जब कनिंघम ने भरहुत के  स्तूप का पता लगाया तब कनिंघम ने इस स्तूप को और अच्छी सुंदरता देने के लिए इस स्तूप का पुनर्निर्माण कराया था ।आज कई पर्यटक इस स्तूप को देखने के लिए जाते हैं । वहां के आसपास के लोगों का मानना है कि इस स्तूप को देखने के लिए देश-विदेश  के लोग  आते हैं और अपने कैमरे में  यहां के स्तूपो की सुंदरता को कैद करके ले जाते हैं ।

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