बारह ज्योतिर्लिंग की सम्पूर्ण कथा Bhagwan shiv ke 12 jyotirlinga ki katha

Bhagwan shiv ke 12 jyotirlinga ki katha in hindi

हेलो दोस्तों कैसे हैं आप सभी,दोस्तों आज हम 12 jyotirlinga katha in hindi आपके समक्ष प्रस्तुत करने वाले हैं.हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार जहां जहां पर भगवान शिव ने अपने दर्शन दिए वहां पर एक ज्योतिर्लिंग बन गया जिसकी प्राचीन काल से ही लोग पूजा करते हैं.

Bhagwan shiv ke 12 jyotirlinga ki katha in hindi
Bhagwan shiv ke 12 jyotirlinga ki katha in hindi

भगवान शंकर के 12 ज्योतिर्लिंग पूजनीय है जिनके नाम का स्मरण करने एवं दर्शन करने से अनेकों लाभ प्राप्त होते हैं तो चलिए जानते हैं इन 12 ज्योतिर्लिंग की कथा एवं लाभ के बारे में

सोमनाथ Somnath jyotirlinga story in hindi

सोमनाथ की कथा कुछ इस प्रकार है कि राजा दक्ष ने अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा देवता से करवा दिया था लेकिन चंद्रमा देवता की पहली पसंद रोहिणी थी.वह रोहिनी के साथ ज्यादा समय बिताते थे उनका अपनी और पत्नियों की और कोई भी विशेष ध्यान नहीं था जब यह बात राजा दक्ष को पता लगी तो राजा दक्ष ने चंद्रमा को समझाया और उनसे कहा कि तुमको सभी को बराबरी से सही तरह से व्यवहार करना चाहिए यही सही रहेगा.

जब दक्ष ने यह बात कही तो वह सोच रहे थे कि शायद चंद्र देवता उनकी बात मानेंगे लेकिन चंद्र देवता ने उनकी बात पर कोई भी ध्यान नहीं दिया और दक्ष ने एक बार फिर से चंद्र को समझाने की कोशिश की लेकिन वह फिर भी नहीं माने तभी क्रोधित होकर दक्ष ने चंद्र देवता को श्राप दिया कि तुम्हारा शरीर धीरे-धीरे क्षीण हो जाएगा.अब राजा दक्ष के श्राप के बाद चंद्रमा का शरीर धीरे-धीरे नष्ट होने लगा.

दुनिया के सभी जीव जंतुओ को इस वजह से बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा.सभी देवतागण चिंतित होने लगे सभी देवता चंद्र देवता के साथ मिलकर ब्रह्मा जी के पास गए उन्होंने ब्रह्मा जी को पूरी बात बताई.ब्रह्मा जी ने सभी देवताओं के साथ मिलकर चंद्रमा को भगवान शिव की आराधना करने को कहा.

तब चंद्रमा सरस्वती के समुद्र से मिलन स्थल पर जाकर सभी देवताओं के साथ मिलकर 6 महीनों तक महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने लगे जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव वहां पर प्रकट हुए और चंद्रमा से प्रसन्न होकर उन्होंने चंद्रमा को वर दीया कि माह के 15 दिन तुम्हारा शरीर धीरे-धीरे क्षीन होगा जिसे लोग कृष्ण पक्ष के नाम से जानेंगे और माह के 15 दिन तुम्हारा शरीर थोड़ा-थोड़ा बढ़ते हुए 15 दिन पूरे करेगा और इस पक्ष को लोग शुक्ल पक्ष के नाम से जानेंगे.

इस तरह से राजा दक्ष का श्राप भी रह गया और चंद्रमा को अपने कष्ट से मुक्ति भी मिली और इसके बाद सभी देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि आप यहीं पर निवास करें तभी से भगवान शिव सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से वहीं पर निवास करते हैं.

श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग mallikarjuna jyotirlinga story in hindi

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा कुछ इस प्रकार है कि एक समय की बात है भगवान शिव के 2 पुत्र श्री कार्तिकेय और श्री गणेश जी में झगड़ा हो गया की पहले विवाह किसका होगा तभी भगवान शिव और पार्वती जी ने दोनों से कहा कि जो भी इस पूरी धरती की परिक्रमा पहले करके लौटेगा उसी की शादी पहले होगी यह बात सुनकर श्री कार्तिकेय जी पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए चल पड़े लेकिन गणेश जी के पास उनकी सवारी चूहा था और वह शरीर में भी मोटे थे इसलिए वह पृथ्वी की परिक्रमा के लिए नहीं गए

तभी उन्होंने विचार किया कि माता-पिता कि परिक्रमा करने पर जरूर ही पूरी पृथ्वी की परिक्रमा हो जाएगी उन्होंने अपने माता पिता को बीच में बैठाया और उनकी परिक्रमा की और उनके चरण स्पर्श किए.यह सब देखकर भगवान शिव और पार्वती बहुत ही खुश हुए और उन्होंने श्री गणेश जी की शादी कर दी.

इधर परिक्रमा कर रहे कार्तिकेय जी को जब यह बात पता लगी तो वह वापस आए और भगवान शिव और पार्वती के चरण स्पर्श करके वहां से चले गए और वह क्रौंच नामक पर्वत पर रहने लगे.तब भगवान शिव और पार्वती जी ने कार्तिकेय जी को मनाने के लिए क्रोच पर्वत पर नारद मुनि को भेजा लेकिन वह नहीं माने तब पार्वती जी के कहने पर भगवान शिव और पार्वती जी दोनों क्रौंच पर्वत पर जा पहुंचे.

जब कार्तिकेय जी को पता चला कि शिव और पार्वती वहां पर आ रहे हैं तब वो वहां से 3 योजन दूर जा पहुंचे और वहां पर रहने लगे और इधर भगवान शिव और पार्वती जी ने क्रोच पर्वत पर ही ज्योतिर्लिंग के रूप में वास किया तभी से यह ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन नाम से जाना जाता है.

श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग mahakaleshwar jyotirlinga story in hindi

श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा कुछ इस प्रकार है अवंतिकापुरी में एक अग्निहोत्री ऋषि रहा करते थे वह शिव शंकर के परम भक्त थे वह हमेशा शिव भक्ति में लीन रहा करते थे उनके चार पुत्र थे जिनका नाम देव प्रिय,प्रिय मेघा,सुक्रत और सुव्रत था वह भी अपने पिता की तरह शिवभक्त थे.एक समय की बात है कि दूषन नामक राक्षस जिसने भगवान शिव की तपस्या कर उनसे वर मांग लिए थे और अपने घमंड में चूर होकर चारों ओर हाहाकार मचाने लगाथा.

उसने मानव पर अत्याचार किया और फिर उसने अवंतिकापुरी में रहने वाले ब्राह्मण और उसके पुत्रों पर हमला कर दिया.ब्राह्मण ने भगवान शिव की आराधना की और भगवान शिव वहां पर प्रगट हुए और उस राक्षस दूषण का संहार कर दिया तभी उस ब्राह्मण ने मानव जाति के कल्याण के लिए भगवान शिव से वहीं पर निवास करने के लिए कहा

तभी से भगवान शिव श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में हमेशा वहा पर निवास करते हैं यह महाकालेश्वर उज्जैन नगरी में स्थित है जिसे पहले अवंतिका नगरी के नाम से जाना जाता था यहा पर दूर-दूर से भक्तगण आते हैं.

ओंकार ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग omkareshwar jyotirlinga story in hindi

एक समय की बात है की विंध्य पर्वत ने ऋतुओं के प्रभाव की वजह से भगवान शिव की घोर तपस्या की और इस तपस्या के परिणाम स्वरुप भगवान शिव प्रकट हुए और विंध्य पर्वत ने भगवान शिव से वही पर निवास करने के लिए कहा. भगवान शिव का ये ज्योतिर्लिंग ओंकार ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से विख्यात हुआ.भगवान शिव ने अपने ज्योतिर्लिंग को दो भागों में विभाजित किया एक ओंकार और दूसरा ममलेश्वर के नाम से जाना जाने लगा लेकिन यह अलग-अलग होकर भी एक ही हैं यह ओंकार ममलेश्वर के नाम से जाना जाता है.

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग kedarnath jyotirlinga story in hindi

केदारनाथ जो कि उत्तरांचल प्रदेश में स्थित है यह एक बहुत ही विख्यात तीर्थ स्थल है यह हिमालय पर्वत श्रंखला में केदार पर्वत पर स्थित है केदारनाथ के बारे में एक कथा प्रसिद्ध है कि भगवान विष्णु के अवतार माने जाने वाले नर और नारायण ने एक बार घौर तपस्या की.इस घोर तपस्या के बाद भगवान शिव वहां पर प्रकट हुए और नर नारायण ने भगवान शिव को बही पर ज्योतिर्लिंग के रूप में वास करने के लिए कहा तभी से भगवान शिव श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में हमेशा वहां पर निवास करते हैं.

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श्री भीमशंकर ज्योतिर्लिंग bhimashankar jyotirlinga story in hindi

इस ज्योतिर्लिंग कि उत्पत्ति से संबंधित कुछ कथाएं हैं जिनमें से एक कथा है कुंभकर्ण के पुत्र भीमा नाथ की.श्री रामचंद्र जी ने जब कुंभकरण का वध किया था तो कुंभकरण की पत्नी बहुत ही क्रोधित थी उसके मन में श्री राम,लक्ष्मण और श्री हनुमान जी से प्रतिरोध लेने की इच्छा थी इसी वजह से उसने अपने पुत्र भीमा को युद्ध की सभी कलाएं सिखाई.

युद्ध कला में उसे परफेक्ट कर दिया.भीमा ने ब्रह्मा जी की आराधना करके बहुत से बल प्राप्त कर लिए थे जिससे उसे हराना बेहद मुश्किल था लेकिन ब्रह्मा जी ने वर देने के साथ ही कह दिया था कि यदि तुम शिव भक्तों को परेशान करोगे तो तुम अपने आप को खतरे में डाल सकते हो.

वर की प्राप्ति के बाद भीमा ने इंद्र और विष्णु देवताओं को भी पराजित कर दिया वह अपने घमंड में चूर हो गया था अब उसको राम और लक्ष्मण और श्री हनुमान जी से प्रतिसोध लेना था लेकिन उसे पता चला की श्री राम उसके प्रतिशोध लेने से पहले ही मृत्यु लोक से स्वर्ग चले गए हैं अब उनसे प्रतिरोध लेना नामुमकिन है भीमा का घमंड दिनों दिन बढ़ता जा रहा था वह शिव भक्तों को परेशान कर रहा था.

कामरुप देश में कामरूपेशवर नामक राजा था जो कि शिवभक्त था वह हमेशा शिव की पूजा किया करता था एक समय की बात है कि भीमा ने कामरूप देश में आक्रमण कर दिया और कामरूपेशवर को ललकारने लगा तब कामरूपेशवर भगवान शिव की पूजा आराधना में मग्न थे उन्होंने कोई भी ध्यान भीमा की ओर नहीं दिया और शिव शंकर की पूजा में लगे रहे

तभी राक्षस भीमा ने उन पर बार किया और उसी समय भगवान शिव शंकर वहां पर आ गए और उन्होंने भीमा नाथ का वध कर दिया इसके बाद भीमा और देवताओं ने वहां पर शंकर भगवान से निवास करने के लिए कहा तभी से उस स्थान का नाम भीमशंकर ज्योतिर्लिंग पड़ गया.

श्री विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग kashi vishwanath jyotirlinga story in hindi

यह कथा कुछ इस प्रकार है कि अविनाशी ब्रम्ह ने समुन शिव गुरु की रचना की और फिर इस रूप से पुरुष और स्त्री के दो रूपों की रचना हुई यह दोनों रूप अपने जनक को ना पाकर बहुत ही चिंतित थे.भगवान शिव शंकर ने आकाशवाणी के द्वारा इन्हें बताया कि तुम इस सृष्टि की रचना के लिए तप करो जब इन्होंने तप करने के लिए निर्गुण शिव से स्थान बताने को कहा तब निर्गुण शिव ने एक स्थान का निर्माण किया इस नगरी का नाम पंचकोशी था.सृष्टि की रचना की कामना की वजह से पुरुष और नारी दोनों तप करने लगे.

तप करते-करते उनके शरीर से श्वेत जलधाराएं निकलने लगी और इसी से सारा आकाश व्याप्त हो गया जब शिव शंकर ने यह सब देखा तो उन्हें प्रसन्नता हुई और उन्होंने प्रसन्नता से अपना सिर हिला दिया इस कारण उनके कर्ण से एक मणी गिर गई इसलिए इस स्थान को मणिकर्णिका के नाम से भी जाना जाता है.

शिव शंकर की गिरी हुई मणि के भार के कारण वह स्थान तिरोहित होने लगा तो भगवान शिव शंकर ने उस स्थान को अपने त्रिशूल पर धारण कर लिया तभी कुछ समय बाद ब्रह्मा जी ने शिव शंकर की इच्छा से इस सृष्टि की रचना की. भगवान शिव का यह ज्योतिर्लिंग विश्वेश्वर या विश्वनाथ के नाम से यहां पर स्थापित है जो बहुत ही प्रसिद्ध है यह काशी नगरी में स्थित है जिसे लोग बनारस या वाराणसी के नाम से भी जानते हैं.

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग trimbakeshwar jyotirlinga story in hindi

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा कुछ इस प्रकार हैं गौतम ऋषि और अहिल्या दोनों ब्रह्मगिरि पर तप किया करते थे एक समय की बात है की वर्षों तक वहां पर वर्षा नहीं हुई जिस वजह से वहां के निवासी दूसरी जगह जाने लगे इसी वजह से गौतम ऋषि ने वरुण देवता की तपस्या की.

गौतम ऋषि के द्वारा कि हुई तपस्या से प्रसन्न होकर वरुण देवता प्रसन्न हुए और उन्होंने वरदान स्वरुप उस क्षेत्र को दिव्य जल से परिपूर्ण कर दिया इसके लिए एक कुंद बनाया गया और उस कुंड में दिव्य जल प्रभाहित किया गया जिससे कभी भी जल की कमी ना हो

इसके कुछ समय बाद ही वहां पर अन्यत्र गए हुए ऋषि वापस वहीं पर रहने के लिए आ गए.लेकिन ऋसियों ने द्वेष भावना के कारण गणेश जी की तपस्या की और किसी तरह से वर मांग कर महर्षि गौतम को नीचा दिखाने की कोशिश की.

तपस्या की वजह से श्री गणेश जी एक दुर्बल गाय का रूप धारण कर लिए थे और ऋषि गौतम के खेत में चले गए जब ऋषि गौतम ने उस गाय को देखा तो उन्होंने उस गाय को वहां से हटाने का प्रयत्न किया लेकिन तभी उस गाय की मृत्यु हो गई और सभी ब्राह्मणों ने गौतम ऋषि पर गौ हत्या का पाप बता दिया और इसके बाद उन ब्राह्मणों के कहने पर गौतम ऋषि ने भगवान शिव की आराधना की.

कुछ समय बाद ही भगवान शिव गौतम ऋषि के समक्ष प्रस्तुत हुए और उन्होंने गौतम ऋषि से कहा कि तुम तो पहले से ही निष्पाप थे तुमने कोई पाप नहीं किया है यह तो इन ऋषियों का षड्यंत्र था तभी वहां बहुत सारे ऋषि और देवता उपस्थित हुए और उन सबके कहने पर भगवान शिव शंकर त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में वहा पर निवास करने लगे.

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग vaidyanath jyotirlinga story in hindi

दोस्तों बैधनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा भी काफी प्रसिद्ध है यह कथा है रावण की.एक समय की बात है कि रावण ने भगवान शिव की आराधना की बहुत समय तक घोर तपस्या करने के बाद भी भगवान शिव प्रकट नहीं हुए तो रावण ने अपनी एक-एक करके भगवान शंकर के सामने सिर काटकर रख दिए और जैसे ही रावण दसवां सिर काटने वाला था तभी भगवान शिव वहां पर प्रकट हो गए और तभी रावण ने भगवान शिव से कहा कि भगवन् मैं आपको अपने साथ ले जाकर अपनी लंका में विराजमान करना चाहता हूं

तब भगवान शंकर ने कहा कि मैं तो तुम्हारे साथ नहीं चल सकता लेकिन तुम मेरे इस ज्योतिर्लिंग को अपने साथ अपने लंका में ले जा सकते हो लेकिन बस याद रखना कि इसको बीच में कहीं मत रखना यह लंका में रखना अगर तुमने मेरे ज्योतिर्लिंग को बीच में रख दिया तो वहीं पर हमेशा के लिए यह स्थापित हो जाएगा फिर वहां से नहीं हटेगा.

शिव शंकर की बात सुनकर रावण भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग को लेकर अपनी लंका की ओर जाने लगा लेकिन रास्ते में उसे लघुशंका करने के लिए मन हुआ.उसने ज्योतिर्लिंग एक राहगीर को दे दिया लेकिन जैसे ही रावण लघुशंका करके आया तो उसने देखा कि भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग जमीन पर रखा हुआ था.

रावण ने उसको उठाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं उठा और रावण को खाली हाथ अपनी लंका पुरी की ओर जाना पड़ा उसके बाद ज्योतिर्लिंग के पास देवी देवता आए और उन्होंने भगवान शंकर की पूजा आराधना की उसी समय पर वहां पर ये ज्योतिर्लिंग स्थापित हो गया जिसका नाम है वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग.यह झारखंड राज्य में स्थित है और इस स्थान को देवधर भी कहा जाता है.

श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग nageshwar jyotirlinga story in hindi

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा कुछ इस प्रकार है कि सुप्रिय नाम का एक व्यक्ति भगवान शिव शंकर का अनन्य भक्त था वह हमेशा शिव शंकर की पूजा आराधना किया करता था एक समय की बात है कि वह नौका में सवार होकर अपने साथियों के साथ कहीं जा रहा था तभी एक दारूक नाम का एक राक्षस ने उन पर हमला कर दिया और सुप्रिय एवं उसके साथियों को ले जाकर एक जेल में बंद कर दिया.

वह सुप्रिय जेल में भी भगवान शिव की पूजा आराधना करता था जब दारु राक्षस को ये बात पता लगी तो उसने  सुप्रिय की हत्या करने का विचार किया तभी भगवान शिव उस जेल में ही प्रकट हुए और और सुप्रिय को अपना एक अस्त्र पाशुपात दे दिया.अस्त्र के जरिए सुप्रिय ने उस राक्षस का बध कर दिया जिस स्थान पर भगवान शिव शंकर प्रकट हुए थे उस स्थान का नाम भगवान शिव के आदेशानुसार श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग नाम से विख्यात हुआ यह ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश में स्थित है.

श्री सेतुबंध रामेश्वर rameshwaram jyotirlinga story in hindi

श्री राम जब लंका पर चढ़ाई करने के लिए समुद्र पर सेतु बनाने की तैयारी करवा रहे थे तब श्री राम ने सेतु का पानी पिया तभी आकाशवाणी हुई कि मेरी पूजा किए बगैर ही मेरा पानी पी रहे हो तभी श्री रामचंद्र जी ने भगवान शिव के एक ज्योतिर्लिंग को बनाया वहीं पर इनकी पूजा-अर्चना की.

भगवान शिव पूजा अर्चना से प्रसन्न होकर उनके समक्ष प्रस्तुत हुए.भगवान राम ने शिव शंकर जी से वर मांगा कि मैं रावण पर विजय हासिल करु.भगवान शिव शंकर ने यह आशीर्वाद उनको दे दिया और तभी से भगवान शिव शंकर का ये ज्योतिर्लिंग श्री सेतुबंध रामेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से विख्यात हुआ.

श्री घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग grishneshwar jyotirlinga story in hindi

इस ज्योतिर्लिंग की कथा कुछ इस प्रकार है कि देवगिरी पर्वत पर सुधर्मा नाम के एक ब्राह्मण रहा करते थे उनकी एक पत्नी थी जिनका नाम सुदेहा था वह अपनी पत्नी के साथ सुख पूर्वक रहा करते थे लेकिन उनके कोई भी संतान नहीं हो रही थी एक बार सुधर्मा को ज्योतिष विद्या के द्वारा पता लगा कि उनकी कभी भी संतान नहीं होगी उन्होंने अपनी पत्नी से यह बात कही तभी उनकी पत्नी ने कहा कि वह उसकी बहन से शादी कर ले तभी सुदेहा के कहने पर सुधर्मा ब्राह्मण ने दूसरी शादी कर ली उनकी दूसरी पत्नी का नाम धुष्मा था

कुछ समय बाद धुष्मा ने एक बच्चे को जन्म दिया.सुधर्मा और धुष्मा दोनों अपने जीवन में खुश थे.सुधर्मा ब्राह्मण अपनी दूसरी पत्नी धुष्मा को कुछ ज्यादा प्रेम करते थे यह बात धुष्मा की बड़ी बहन को अच्छी नहीं लगती थी अब सुधर्मा का बालक धीरे-धीरे बड़ा होने लगा था.

धुष्मा शिवभक्त थी वह हमेशा शिव की पूजा अर्चना किया करती थी वह सरोवर में भगवान शंकर के शिवलिंग को छोड़ती थी.समय गुजरता गया और सुदेहा का अपनी छोटी बहन के प्रति द्वेष बढ़ता गया और एक दिन उसने उसके पुत्र को ले जाकर सरोवर में फेंक दिया जब यह बात घर पर पता लगी तो सभी लोग रोने लगे लेकिन धुषमा पर कोई भी असर नहीं पड़ा था वह तो शिव शंकर की आराधना करती रहती थी तभी उसको सरोवर से अपना बालक बाहर निकलते हुए दिखा और साथ में भगवान शिव शंकर भी प्रकट हुए.

वह सुदेहा के किए गए कृत्य से बहुत ही क्रोधित थे लेकिन धुष्मा ने उन्हें बताया कि उसकी बड़ी बहन के कारण ही मुझे आपके दर्शन हुए हैं और फिर उसने भगवान शिव शंकर से ज्योतिर्लिंग के रूप में वही पर निवास करने के लिए कहा तभी से श्री धुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग विख्यात हुआ.

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