बच्चे मन के सच्चे कविता Bache man ke sache poem

Bache man ke sache poem

साहिर लुधियानवी का जन्म 8 मार्च सन 1921 में लुधियाना में हुआ था यह एक बहुत ही प्रसिद्ध गीतकार एवं शायर थे आज हम इनकी कविता बच्चे मन के सच्चे को पढ़ेंगे तो चलिए पढ़ते हैं आज की इस कविता को।

Bache man ke sache poem
Bache man ke sache poem

बच्चे मन के सच्चे

सारी जग की आंख के तारे

यह वो नन्हे फूल है

जो भगवान को लगते प्यारे

खुद रूठे है खुद मन जाए

फिर हमजोली बन जाए

झगड़ा जिसके साथ करें

अगले ही पल फिर बात करें

इनकी किसी से बैर नहीं

इनके लिए कोई गैर नहीं

इनका भोलापन मिलता है सबको बांह पसारे

बच्चे मन के सच्चे

इंसान जब तक बच्चा है

तब तक समझ का कच्चा है

ज्यो ज्यो उसकी उम्र बढ़े

मन पर झूठ का मेल चढ़े

क्रोध बड़े नफरत घेरे

लालच की आदत घेरे

बचपन इन पापों से हटकर अपनी उमर गुजारे

बच्चे मन के सच्चे

तन कोमल मन सुंदर हैं

बच्चे बड़ों से बेहतर हैं

इनमे छूट और छाट नहीं

झूठी जात और पात नहीं

भाषा की टकरार नहीं

मजहब की दीवार नहीं

उनकी नजरों में एक है मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे

बच्चे मन के सच्चे

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