हल्दीघाटी का युद्ध कविता Hindi poem haldighati

Hindi poem haldighati

दोस्तों हल्दीघाटी पर लिखी आज की एक कविता श्याम नारायण पांडेय जी ने लिखी है वैसे तो यह कविता बहुत लंबी-चौड़ी है गीता का प्रथम भाग आप सभी के समक्ष प्रस्तुत करने वाले हैं तो चलिए पढ़ते हैं श्याम नारायण पांडे जी द्वारा लिखित इस कविता को

Hindi poem haldighati
Hindi poem haldighati

image source- https://myudaipurcity.com/haldighati-museum-udaipur/

वन्दोली है यही, यहीं पर

है समाधि सेनापति की

महातीरथ की यही वेदिका

यही उमर रेखा स्मृति की

एक बार आलोकित कर हां

यहीं हुआ था सूर्य अस्त

चला यहीं से तिमिर हो गया

अंधकारमय जग समस्त

आज यही इस सिद्ध पीठ पर

फूल चढ़ाने आया हूं

आज यही पावन समाधि पर

दीप जलाने आया हूं

 

आज इस छतरी के भीतर

सुख-दुख गाने आया हूं

सेनानी को चिर समाधि से

आज जगाने आया हूं

सुनता हूं वह जगा हुआ था

जोहर के बलिदानों से

सुनता हूं वह जगा हुआ था

बहनों के अपमानों से

सुनता हूं स्त्री थी अंगड़ाई

अभी के अत्याचारों से

सुनता हूं वह गरज उठा था

कड़ियों की झंकारों से

 

सजी हुई मेरी सेना

पर सेनापति सोता है

उसे जगाऊंगा विलंब अब

महासमर में होता है

 

आज उसी के चरितामृत में

बैठा कहूंगा दीनों की

आज यही पर रुदन गीत में

गाऊंगा बल हीनो की

 

आज उसी की अमर वीरता

व्यक्त करूंगा गानों में

आज उसी के रणकौशल की

कथा कहूँगा कानों में

 

पाठक तुम भी सुनो कहानी

आंखों में पानी भरकर

होती है आरंभ कथा अब

बोलो मंगलकर शंकर

 

विहँस रही थी प्रकृति हटाकर

मुख से अपना घूंघट पट

बालक रवि को ले गोदी में

धीरे से बदली करवट

 

परियों से उतरी रवि किरणें

घुली-मिली रज कण कण से

खिलने लगे कमल दिनकर के

स्वर्णिम करके चुंबन से

 

मलयानिल की मृदु झोंको से

ऊंची लहरिया सर सर में

रवि की मृदुल सुनहली किरणों

लगी खेलने निर्झर में

 

फूलों की सांसो को लेकर

लहर उठा मारुति बन बन

कुसुम पंखुड़ियों के आंगन में

थिरक थिरक अलि के नर्तन

 

देखी रवि में रुप राशि निज

ओशो के लघु दर्पण में

रजत रश्मियां फैल गई

गिरि अरावली के कण कण में

इसी समय मेवाड़ देश की

कटारिया खनखना उठी

नागिन सी डस देने वाली

तलवारे झनझनाहट उठी

 

धारण कर केशरिया बाना

हाथों में ले ले भाले

वीर महाराणा से ले खिल

उठे बोल भोले भाले

 

विजयादशमी का वासर था

उत्सव के बाजे बाजे

चले वीरा आखेट खेलने

उछल पड़े ताजे ताजे

 

राणा भी आलेख खेलने

शक्ति सिंह के साथ चला

पीछे चारण वंश पुरोहित

भाला उसके हाथ चला

 

भुजा पकड़ने लगी वीर की

अशकुन जतलानेवाली

गिरी तुरंत तलवार हाथ से

पावक बरसाने वाली

 

बतलाना था यही अमंगल

बंधु बंधु का रण होगा

यही भयावह रण ब्राह्मण की

हत्या का कारण होगा

 

अशकुन की परवाह ना की

आज ना रुकने वाला था

अहो हमारी स्वतंत्रता का

झंडा झुकने वाला था

 

घोर विपिन में पहुंच गए

कातरता के बंधन तोड़े

हिंसक जीवो के पीछे

अपने-अपने घोड़े छोड़े

 

भीषण वार हुए जीवो पर

तरह तरह के शोर हुए

मारो ललकारो के रव

जंगल में चारों ओर हुए

 

चीता यह वह बाघ शेर वह

शेर हुआ आखेट करो

छेको छेको हृदय रक्त ले

निज बरछो को भेंट करो

 

लगा निशाना ठीक ह्रदय में

रक्त पगा जाता है वह

चीते को जीते जी पकड़ो

रीछ भगा जाता है वह

 

उडे पखेरू भाग गए म्रग

भय से सशक्त सियार भगे

क्षणभर थमकर भगे मत्त गज

हरिन हार के हार भगे

 

नरम ह्रदय कोमल म्रग छोने

डोक रहे थे इधर उधर

एक प्रलय का रूप खड़ा था

मैंवाड़ी दल गया जिधर

 

किसी कंदरा से निकला हय

झाड़ी में फंस गया कहीं

दौड़ रहा था दौड़ रहा था

दलदल में धंस गया कहीं

 

लचीली तलवार कहीं पर

उलझ उलझ मुड़ जाती थी

ताप गिरी गिरी कठिन शिक्षा पर

चिंगारी उड़ जाती थी

 

हाय के दिन दिन हुंकारों से

भीषण धनु टंकारो से

कोलाहल मच गया भयंकर

मेवाड़ी ललकारो से

 

एक केसरी सोता था वन के

गिरी गह्वर के अंदर

रोओ की दुर्गंध हवा से

फैल रही थी इधर उधर

 

सिरके के केसर हिल उठते

जब हवा झुरकती थी झुर झुर

फैली थी टाँगे अवनी पर

नासा बजती थी घुरघुर

दोस्तों अगर आपको हमारे द्वारा लिखा गया ये आर्टिकल Hindi poem haldighati पसंद आए तो इसे अपने दोस्तों में शेयर जरूर करें और हमारा Facebook पेज लाइक करना ना भूलें और हमें कमेंटस के जरिए बताएं कि आपको हमारा यह आर्टिकल कैसा लगा जिससे नए नए आर्टिकल लिखने के प्रति हमें प्रोत्साहन मिल सके और इसी तरह के नए-नए आर्टिकल को सीधे अपने ईमेल पर पाने के लिए हमें सब्सक्राइब जरूर करें जिससे हमारे द्वारा लिखी कोई भी पोस्ट आप पढना ना भूल पाए।

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *