स्कूल बैग की आत्मकथा इन हिंदी Autobiography of a school bag in hindi
school bag ki atmakatha in hindi
दोस्तों आज हम आपके लिए लाए हैं एक स्कूल बैग की आत्मकथा पर हमारे द्वारा लिखित एक काल्पनिक आर्टिकल आप इसे जरूर पढ़ें और स्कूल बैग की आत्मकथा सुने तो चलिए आगे पढ़ते हैं हमारे इस आर्टिकल को
मैं एक स्कूल का बैग हूं। मेरा मालिक एक 12 साल का बच्चा है उसका नाम रोहन है। रोहन रोज सुबह मुझ बैग में अपनी किताबें रखकर स्कूल जाता है और मुझे साथ में भी ले जाता है। स्कूल बैग ले जाकर स्कूल जाना उसे बहुत ही भाता है वह मुझमें कई सारी किताबें रखता है जिसमें हिंदी, इंग्लिश, संस्कृत, विज्ञान, गणित आदि किताबें हैं।
मैं काफी अच्छा महसूस करता हूं कि लोगों को ज्ञान देने वाली ये किताबें मुझमें रखी होती हैं यानी मैं किताबों का एक घर हूं लेकिन कभी-कभी जब मैं रोहन को देखता हूं तो मुझे दुख भी होता है क्योंकि रोहन मुझमें कई सारी किताबें रखकर अपने स्कूल जाता है और वापस भी आता है जिससे उसकी पीठ पर काफी वजन हो जाता है।
कभी-कभी वह इस बारे में अपने माता पिता से भी कहता है लेकिन वह उसकी बात नहीं सुनते। इस स्कूल के शिक्षक भी उस रोहन से बहुत सी किताबे अपने बैग में रखकर आने को कहते हैं। वह जब स्कूल से वापस आता है तो मुझे अपने कमरे में एक अलमारी में सजा देता है और जब उसे किताबें पढ़ना होती हैं तो वह मुझमें से किताबें निकाल लेता। मैं रोहन के घर में बहुत ही अच्छा महसूस करता हूं रोहन मेरा बहुत ही ख्याल रखता है, कभी-कभी जब मैं मैला हो जाता हूं तो रोहन की मम्मी मुझे साफ करती हैं।
मुझे वह दिन भी याद है जब मैं पहली बार रोहन के घर में आया था। आज से 5 साल पहले की बात है मैं एक दुकान में अन्य स्कूल बेग के साथ में सजाया गया था तभी कई लड़के अपने माता-पिता के साथ उस दुकान पर सामान खरीदने आए, कईयों ने मुझे पसंद किया, कईयों ने मुझे नापसंद किया आखिर में एक लड़का रोहन अपनी माता जी के साथ उस दुकान पर आया उसने चारों ओर नजर डाली और उसे मैं पसंद आ गया, उसने अपनी मम्मी से कहा कि मुझे एक अच्छा सा स्कूल का बैग दिलवा दो तब उसकी मां ने मुझ बैग को खरीदने के लिए पैसे चुकाए।
अब रोहन मुझे अपने कंधे पर टांगकर घर की ओर जाने लगा रास्ते में मैंने देखा कि कई और बच्चे मेरे जैसे बैग को तांगकर अपने अपने माता-पिता के साथ घर की ओर जा रहे हैं। मुझे बहुत ही अच्छा लगा लेकिन एक दुख भी था कि दुकान में रखे मैं अन्य बेगो से अब बिछड़ जाऊंगा तभी मुझे नए घर में रहने का मौका मिलेगा यह सोचकर मुझे काफी खुशी हुई। मैं बाजार में चारों ओर देखता रहा, चारों ओर कई तरह की दुकानें सजी हुई थी, तरह-तरह के नाश्ते की दुकानें, फल फूल की सब्जियों की दुकान है यह सब मैं रास्ते भर में देखता रहा और फिर अपने नए दोस्त रोहन के साथ उसके घर जा पहुंचा। रोहन ने सबसे पहले अपनी कुछ किताबें मुझमें सजाई।
वह अब मुझे देखकर काफी खुश हो रहा था मेरी खुशी भी उसको देखकर अकस्मात ही नजर आ रही थी फिर कुछ दिनों बाद रोहन स्कूल जाने लगा, वह सुबह सुबह मुझे भी साथ में स्कूल ले जाने लगा, मुझे रोज रोज स्कूल में घूमने को मिलता। मैं अपने दुकान के साथियों से बिछड़ चुका था लेकिन स्कूल में मेरे जैसे अन्य मेरे साथी भी मेरे चारों ओर होते तो मुझे काफी खुशी होती फिर दोपहर होते ही मैं रोहन के साथ अपने घर आ जाता बस यही है मेरी जिंदगी। मैं अपनी जिंदगी में काफी खुश हूं बस यही चाहता हूं कि अभिभावक एवं शिक्षकगण मुझ बैग में किताबों का ज्यादा वजन ना रखें क्योंकि अधिक वजन रखने से बच्चों को बैग उठाने में तकलीफ होती है।
दोस्तों मेरे द्वारा लिखित यह स्कूल के बैग की आत्मकथा पर निबंध Autobiography of a school bag in hindi आपको कैसा लगा हमें जरूर बताएं।