संत तुलसीदास के मित्रता पर दोहे Sant tulsidas ke mitrata par dohe

Sant tulsidas ke mitrata par dohe

दोस्तों कैसे हैं आप सभी, दोस्तों तुलसीदास जी एक महाकवि थे उन्होंने कई ग्रंथों की रचना की। रामचरितमानस उनके द्वारा लिखा गया एक महाकाव्य है जिसमें उन्होंने श्री रामचंद्र जी के जीवन चरित्र को दर्शाया है वास्तव में तुलसीदास जी जैसे महाकवि कभी-कभार ही जन्म लेते हैं। आज हम तुलसीदास जी के द्वारा लिखित मित्रता पर कुछ दोहे आपके लिए लाए हैं आप इन्हें जरूर पढ़ें तो चलिए पढ़ते हैं आज के इस आर्टिकल को

Sant tulsidas ke mitrata par dohe
Sant tulsidas ke mitrata par dohe

जिन्ह के अति मती सहज न आई

ते सठ कत हठि करत मिताई

कुपथ निबारी सुपंथ चलावा

गुन प्रगटे अबगुनन्हि दुरावा

अर्थ- जिनके स्वभाव में इस प्रकार की बुद्धि ना हो वह मूर्ख केवल हठ कर के ही किसी से मित्रता करते हैं। जो सच्चा मित्र होता है वह गलत मार्ग पर जाने से रोकता है और अच्छे मार्ग पर चलाता हैं और गुणों को प्रकट करता है और अबगुणों को छुपाता है।

 

आगे कह मृदु बचन बनाई

पाछे अनहित मन कुटिलाई

जाकर चित अहिगत सम भाई

अस कुमित्र परिहरेही भलाई

अर्थ- जो सामने तो मीठा बोलता है और पीछे मन में बुराई करता है जिसका मन टेढ़ा है, ऐसे बुरे मित्रों को त्याग देने में ही भलाई है।

शत्रु मित्र सुख-दुख जग माही, माया कृत परमारथ नाही

इस संसार में शत्रु, मित्र, सुख, दुख यह सभी माया हैं यह सब बिल्कुल नहीं है।

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