विश्वकर्मा जयंती, पूजा विधि का इतिहास vishwakarma jayanti, puja history in hindi

vishwakarma puja history in hindi

दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से विश्वकर्मा जयंती , पूजा विधि एवं इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं । चलिए अब हम इस लेख को पढ़ते हैं और विश्वकर्मा जयंती के बारे में जानते हैं । विश्वकर्मा जयंती अश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को मनाई जाती है । इसी दिन भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा अर्चना बड़े ही धूमधाम से की जाती है । विश्वकर्मा जयंती के दिन ही विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ था । इसीलिए उनके जन्म दिन के रूप में यह जयंती मनाई जाती है ।

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विश्वकर्मा जी पूरी दुनिया के पहले इंजीनियर माने जाते हैं जिनके द्वारा सतयुग का स्वर्ग लोक , त्रेता युग की लंका , द्वापर की द्वारिका और कलयुग का हस्तिनापुर बनाया गया है ।विश्वकर्मा जी के द्वारा ही सुदामापुरी की रचना तैयार की गई थी और उसको बनाने में विश्वकर्मा जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । अश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को भगवान विश्वकर्मा की पूजा बड़े ही धूमधाम से की जाती है ।  बाजारों में विश्वकर्मा जी की मूर्ति रथ पर विराजमान करके जुलूस एवं पालकी निकाली जाती है ।

इस पालकी में सभी लोग एकत्रित होकर विश्वकर्मा जयंती पर खुशी जाहिर करते हैं और विश्वकर्मा जयंती की खुशी में नाचते हैं, गाना गाते हैं , झूमते हैं , कई प्रतियोगिताएं विश्वकर्मा जयंती के दिन की जाती हैं । विश्वकर्मा जयंती के दिन सभी उद्योगों में विश्वकर्मा जी की पूजा अर्चना की जाती है ।

उद्योगों , फैक्ट्रियों में जो मशीनें होती हैं उनकी साफ सफाई करके उनकी पूजा की जाती है,  उनको सजाया जाता है । विश्वकर्मा जयंती के दिन हवन , पूजन उद्योगों में किया जाता है । जो छोटे-छोटे उद्योगपति एवं बाढ़ई , सिलाई करने वाला अपनी मशीनों को एवं तरह-तरह के औजारों की पूजा विश्वकर्मा जयंती के दिन करता  है । ऐसा कहा जाता है कि पूरी श्रष्टि को बनाने में विश्वकर्मा जी का महत्वपूर्ण योगदान था ।

पूजा विधि – विश्वकर्मा जयंती के दिन विश्वकर्मा भगवान की पूजा , अर्चना एवं हवन किया जाता है । विश्वकर्मा जयंती के दिन सभी हथियारों एवं मशीनों की पूजा-अर्चना की जाती है । विश्वकर्मा जयंती के दिन भगवान विश्वकर्मा जी से सभी प्रार्थना करते हैं कि इस सृष्टि की रचना प्रतिदिन सुंदर होती जाए और सभी अपने उद्योगों एवं धंधों में कामयाब रहे । विश्वकर्मा जयंती के दिन पूजा करने के लिए पुष्प अक्षत लेकर भगवान विश्वकर्मा जी का ध्यान करते हुए मंत्र पढ़ना चाहिए ।

हाथों में रक्षा सूत्र बांधना चाहिए । यह पूजा अपनी पत्नी के साथ मिलकर करना चाहिए । अपने हाथों के साथ अपने पत्नी के हाथों में भी रक्षा सूत्र बांधना चाहिए । पुष्प जलपान में डाल कर उसकी पूजा करनी चाहिए । इसके बाद ह्रदय से भगवान विश्वकर्मा जी का ध्यान करना चाहिए , उनसे प्रार्थना करना चाहिए कि वे यहां पर आए । जहां पर विश्वकर्मा भगवान की मूर्ति को स्थापित करना है उस जगह के आसपास साफ सफाई करनी चाहिए ।

जहां पर विश्वकर्मा भगवान की मूर्ति स्थापित करना है उस जगह को शुद्ध कर लेना चाहिए । उस जगह पर अष्टदल कमल बनाना चाहिए ।  उस स्थान पर जल छिड़ककर वह स्थान पवित्र करें इसके बाद पंच पल्लव , गोल सुपारी , सप्त मृतिका , दक्षिणा कलश में डालकर चावल से भरा हुआ पात्र उस स्थान को समर्पित करना चाहिए । इसके बाद उस स्थान पर विश्वकर्मा भगवान की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए । मूर्ति स्थापित करने के बाद वरुण देव  का आह्वान करना चाहिए और उनसे प्रार्थना करना चाहिए कि वरुण देव इस पूजा में उपस्थित हो ।

इसके बाद जितने भी हथियार हो वह पूजा में रख देना चाहिए । सभी औजारों की साफ सफाई करके घी, दूध से स्नान कराना चाहिए । विश्वकर्मा भगवान को माला पहनाकर हल्दी , चावल , रोरी से तिलक लगाना चाहिए । इसके बाद प्रसाद ने मिठाइयां , फल फ्रूट आदि चढ़ाना चाहिए । इसके बाद भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा बड़े ही धूमधाम से करना चाहिए ।भजन कीर्तन एवं तरह-तरह के कार्यक्रम विश्वकर्मा पूजा के बाद करना चाहिए ।

इस तरह से पूजा करने से भगवान विश्वकर्मा जी प्रसन्न होते हैं और हमारे द्वारा किए गए हर काम में हमको सफलता प्राप्त होती है । पूजा पूरी हो जाने के बाद हमें भगवान विश्वकर्मा जी से हाथ जोड़कर प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमारे द्वारा किए गए सभी काम को सफल करें ।

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