भारतीय सांस्कृतिक धरोहर पर निबंध sanskritik dharohar par nibandh
sanskritik dharohar par nibandh
आज हमारी सांस्कृतिक धरोहर को नुकसान पहुंच रहा है यह हमारी जिंदगी से लुप्त होते जा रहे है. पुराने समय में हम सांस्कृतिक धरोहर का सम्मान करते थे लेकिन बदलती हुई दुनिया में हम भी बदलते जा रहे हैं और अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं । पहले हमारे देश के हर राज्य के लोग परंपराओं को बड़ी गहराई से अपनाते थे लेकिन अब ना जाने वह परंपरा कहां खोती जा रही हैं । पुराने समय में हमारे भारत के लोग लोक नृत्य , लोकनाट्य , लोक संगीत , लोक कलाएं , और लोक परंपराओं को अपनाते थे और यह सब करने में हम भारतवासियों को खुशी मिलती थी और अपना जीवन खुशियों से बिताते थे ।

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पुराने समय में जब किसी के घर में शादी होती थी तो वहां पर महिलाएं ढोलक , मंजीरा गाकर और नृत्य कला दिखाकर विवाह में चार चांद लगा देती थी । लेकिन बदलती हुई दुनिया में हम भी बदलते जा रहे हैं ढोल , मजीरा की जगह डीजे बजाते हैं जो ध्वनि प्रदूषण को बढ़ाता है । पहले हम लोक नृत्य करते थे तो सभी आपस में ऐसे घुल मिल जाते थे जिसका आनंद हमें कई दिनों तक आता था आज हम सभी को उसी आनंद को हमारी जिंदगी में वापस लाना चाहिए ।
पुराने समय मे जब दिवाली आती थी तब हम कुम्हार के द्वारा बनाए गए दीयों का उपयोग करते थे और मिट्टी के दीयों को हम सभी खरीद कर लाते थे और उन दीयों मैं दीप जलाकर दिवाली का उत्सव मनाते थे लेकिन आज हम मिट्टी के दीयों की जगह पर चाइना के दीयों का उपयोग करने लगे हैं जो दिखने में सुंदर तो हैं लेकिन हमारे कुम्हार के द्वारा बनाए गए दीयों की अपेक्षा ज्यादा सुंदर नहीं लगते हैं । पहले हम जो मिट्टी के दिए खरीदते थे तो कुम्हार के घर की रोजी रोटी चलती थी लेकिन आज हम जो चाइना के दिए खरीदते हैं तो यह पैसा विदेश मैं चला जाता है जिसके कारण हमारे देश को आर्थिक नुकसान होता जा रहा है ।
पहले भारत मैं कई विदेशी आकर भारत के नृत्य को सीखते थे लेकिन आज हम ना जाने कहां खो गए आज भारत में संस्कृति को राष्ट्रीय त्योहारों पर भी दिखाते हैं राष्ट्रीय त्योहारों पर लोक नृत्य , लोकनाट्य , लोक संगीत , लोक कलाएं करके हम उस पर्व को मनाते हैं लेकिन पहले हर दिन कई लोग लोक नृत्य करके अपने जीवन को सुंदर बनाया करते थे ।
पुराने समय की महिलाएं अच्छे अच्छे कपड़े पहनकर, अच्छे-अच्छे गहने पहनकर लोक नृत्य करती थी और उस नृत्य का आनंद उठाने के लिए दूर-दूर से लोग आया करते थे । प्राचीन समय में अपने हाथों पर गोदना और गुदवाना प्रथा बहुत ही प्रचलित थी और भारत के सभी लोग इस प्रथा को मानते थे, अपने हाथों पर फूल और नाम लिखवाते थे आज हम उन परंपराओं को दूर छोड़ आए हैं और आज हम इनकी जगह पर हाथों पर टैटू का उपयोग करने लगे हैं ।
पहले हम मिट्टी के बर्तनों का उपयोग करते थे गर्मियों के समय में हम कुम्हार के द्वारा बनाया गया मटके का उपयोग करते थे उस मटके के माध्यम से हमको ठंडा पानी पीने को मिलता था और उस मटके के ऊपर कुम्हार के द्वारा कई तरह के चित्र बनाए जाते थे जिससे मटका सुंदर दिखाई देता था लेकिन बदलती हुई इस दुनिया में हम प्लास्टिक के बने हुए मटके का उपयोग करने लगे हैं । पहले जब हम मटके का पानी पीते थे तो हमें उस पानी मैं स्वाद आता था लेकिन वह स्वाद आज महसूस नहीं होता है ।
हमारे देश में कई सांस्कृतिक इमारतें हैं जहां पर कई चित्रकारों द्वारा उन इमारतों को सजाया गया है उनके चित्रों को उन इमारतों पर बताया गया है आज वह इमारतें नष्ट होती जा रही हैं । आज हम सभी को उन इमारतों की रक्षा करना है। हमारे देश में कई सांस्कृतिक इमारते हैं जैसे कि ताजमहल , सांची के स्तूप , खजुराहो के स्मारक , हुमायूं का मकबरा , हमारे देश के लाल किले को भी ऐतिहासिक स्मारक घोषित किया गया है ।
हमारे भारत के मानव संग्रहालय मे देश की संस्कृति के चित्रों को दर्शाया गया है लेकिन ये सांस्कृतिक धरोहर धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही हैं । इन इमारतों में कहीं पर दरार पड़ रही है तो कहीं की छत चटकी हुई है सभी इमारतों की रक्षा करना हम भारतीय की जिम्मेदारी है जो लोग इन इमारतों को नुकसान पहुंचा रहे हैं उनको रोकना हमारा सबसे बड़ा दायित्व है क्योंकि हमारे भारत की संस्कृति को बचाए रखना हमारा सबसे बड़ा कर्तव्य है।
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