बृहस्पतिवार व्रत कथा, पूजा विधि guruvar puja vidhi, vrat katha in hindi

guruvar puja vidhi, vrat katha in hindi

दोस्तों आज हम आपको इस लेख के माध्यम से बृहस्पतिवार व्रत कथा पूजा विधि के बारे में बताने जा रहे हैं । चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और इस लेख को बड़े ध्यान से पढ़ते हैं ।

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बृहस्पति भगवान की पूजा विधि – बृहस्पतिवार के दिन विष्णु भगवान की प्रार्थना करनी चाहिए ।  उनको पीले फूल एवं पीला फल , पीली मिठाई चढ़ाना चाहिए । बृहस्पतिवार के दिन केले की जड़ में मक्का , पीली दाल ,गुड को चढ़ाना चाहिए और विष्णु भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमारे घर में सुख शांति एवं समृद्धि दें । इसके बाद बृहस्पति भगवान की कथा पढ़नी चाहिए एवं दूसरों को सुनाना चाहिए । ऐसा करने से विष्णु भगवान प्रसन्न होते हैं ।

पुत्र , धन-संपत्ति , सुख समृद्धि प्रदान करते हैं । बृहस्पति भगवान की कथा पढ़ने के बाद  बृहस्पति भगवान की पूजा करनी चाहिए । इसके बाद गुड एवं चने की दाल का प्रसाद सभी को बांटना चाहिए , पीले फल का प्रसाद सभी को बांटना चाहिए । ऐसा करने से बृहस्पति भगवान प्रसन्न होते हैं पुत्र धन व् संपत्ति देते हैं ।

guruvar vrat katha in hindi

कथा – प्राचीन समय की बात है कि एक नगर का राजा बहुत प्रतापी एवं दानी था । वह नित्य दिन उठकर भगवान विष्णु की पूजा करता एवं व्रत करता था । वह राजा भूखे मनुष्य को भोजन कराता था एवं कुंवारी कन्याओं का विवाह  कराता था । लेकिन यह सब बातें उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी । वह ना तो किसी व्यक्ति को भोजन कराती थी  और ना ही किसी हो  एक पैसा दान में देती थी  तथा राजा को भी ऐसा करने से मना किया करती थी ।

एक समय की बात है की राजा शिकार खेलने के लिए वन में गए हुए थे । घर पर रानी एवं दासी अकेली थी । उस समय बृहस्पति भगवान एक साधु का रूप धारण करके रानी के द्वार पर भिक्षा मांगने गए । जब ब्राह्मण ने रानी से भिक्षा मांगी तो वह कहने लगी है , हे साधु महाराज ने इस दान पुण्य  से तंग आ गई हूं । अब आप ऐसी कृपा करें कि यह सारा धन नष्ट हो जाए और मैं आराम से रह सकूं । जब साधु महाराज में  ऐसा सुना तो वह आश्चर्य चकित हो गए  और रानी से कहने लगे की हे रानी तुम तो बड़ी विचित्र हो  संतान और धन से क्या कोई दुखी होता है ।

यदि आपके पास धन अधिक है तो भूखे मनुष्य को भोजन करवाओ , पियाऊ लगाओ , ब्राह्मणों को  दान  दो  ,   कुंवारी कन्याओं का विवाह करवाओ , पाठशालाओं का निर्माण करवाओ तथा  धन को शुभ कार्यों में खर्च करो ऐसा करने से  तुम्हारे विपत्र प्रशन होंगे , तुम्हें सुख समृद्धि प्राप्त होगा । ऐसा सुनकर रानी  साधु महाराज से कहने लगी कि हे महाराज  मुझे ऐसे धन की  आवश्यकता नहीं है  जिसको  रखने और उठाने में  मेरा सारा समय  बर्बाद हो जाए ।

मैं इस  दान और पुण्य  से तंग आ गई हूं । अब आप ऐसी कृपा करें  कि यह सारा धन नष्ट हो जाए  और मैं आराम से रह सकूं । साधु महाराज बोले यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो ऐसा ही होगा मैं तुम्हें बताता हूं वैसा ही करना । बृहस्पतिवार के दिन  घर को गोबर से लिखना ,अपने केशों को धोना ,भोजन में मांस मदिरा खाना  एवं  अपने कपड़े धोबी  के यहां  धुलने के लिए  डालना  ऐसा करने से तुम्हारा सारा धन नष्ट हो जाएगा और तुम आराम से रह सकोगी ।

रानी ने  साधु के कहे अनुसार वैसा ही किया  तीन भ्रस्पतिवार ही बीते थे कि  सारा धन नष्ट हो गया ।  अब तो वह भोजन के लिए भी तरसने लगे थे । एक रोज राजा ने रानी से कहा है  रानी तुम यहीं पर रहो  मैं दूसरे देश को जाता हूं क्योंकि यहां पर मुझे  सभी लोग जानते हैं इसलिए कोई छोटा कार्य नहीं कर सकता हूं । ऐसा कहकर राजा प्रदेश चला गया । राजा परदेस जाकर जंगलों से लकड़ी काटकर शहरों में बेचकर अपना जीवन व्यतीत करने लगा था ।

इधर रानी और दासी  दुखी रहने लगे थी ।  एक बार रानी और दासी के साथ दिन का भोजन के बीत गए थे तब  रानी ने दासी से कहा कि पास ही के नगर में मेरी एक  बहन रहती है  तू उसके पास जा और कुछ ले  आ  जिससे कुछ समय के लिए गुजर बसर हो जाएगा । दासी ने रानी की आज्ञा मानकर उसकी बहन के पास गई । उस समय उसकी बहन बृहस्पति भगवान की कथा सुन रही थी । दासी ने  रानी की बहन से कहा कि मुझे  तुम्हारी बहन ने  भेजा है ।

मुझे  थोड़ा सा अनाज दे दो । कई बार दासी ने रानी की बहन से कहा लेकिन  रानी की बहन ने कुछ उत्तर नहीं दिया ।  दासी को बहुत गुस्सा आया और वह वापस लौट आई ।  वापस लौटकर रानी से कहने लगी कि तुम्हारी बहन तो बड़ी अभिमानी है वह छोटे मनुष्य से बात ही नहीं करती है । फिर रानी ने दासी से कहा कि इसमें उसका कोई दोष नहीं है जब बुरे दिन आते हैं तब कोई भी सहारा नहीं देता है । यह सब हमारे  भाग्य का दोष है इसमें उसका कोई  कसूर नहीं है ।

उधर रानी की बहन ने कथा सुनने के बाद  सोचा कि  मेरी बहन की दासी  आई थी परंतु मैं उससे   नहीं बोली  वह बहुत दुखी हुई होगी । ऐसा सोचकर विष्णु भगवान की पूजा समाप्त करके अपनी बहन के घर चली गई । बहन के पास  जाकर वह कहने लगी की हे वह  तुम्हारी दासी आई थी  लेकिन मैं उस समय  बृहस्पति भगवान की  पूजा कर रही थी । जब तक बृहस्पति भगवान की कथा होती है तब तक ना तो उठते हैं ना ही बोलते हैं इसलिए मैं नहीं बोली कहो दासी क्यों आई थी ।

रानी कहने लगी की तुमसे कोई बात छुपी नहीं है । रानी ने  अपनी बहन को सारी कहानी बता दी । रानी की बहन कहने लगी की है बहन  बृहस्पति भगवान  सबकी मनोकामना पूर्ण करते हैं । देखो शायद तुम्हारे घर में अनाज रखा हो । दासी  घर के अंदर गई तब उसे एक घड़ा अनाज का मिल गया । दासी रानी से कहने लगी कि है रानी  जब हमें अनाज नहीं मिलता है तब हम  भूखे रहते हैं । यदि  व्रत की विधि और कथा पूछ ली जाए तो हम भी किया करेंगे ।

रानी ने अपनी बहन से पूछा कि है बहन यह व्रत कैसे करना चाहिए । रानी की बहन ने कहा कि बृहस्पतिवार के दिन  केले की जड़ में विष्णु भगवान की पूजा करें । केले की जड़ में  गुड़ चने की दाल चढ़ाएं , विष्णु भगवान का पूजन करें और प्रार्थना करें , व्रत करें ऐसा करने से विष्णु भगवान प्रसन्न होते हैं  पुत्र , धन देते हैं । रानी और दासी ने निश्चय किया कि हम भी विष्णु भगवान  एवं बृहस्पति भगवान का पूजन , व्रत अवश्य करेंगे । अगले 7 दिन बाद  जब बृहस्पतिवार का दिन आया तब रानी और दासी ने व्रत किया ।

घुड़साल में जाकर गुड़ , चना बिन लाइ और केले की जड़ में जल चढ़ाकर विष्णु भगवान की पूजा की । अब पीला भोजन कहां से आएगा  यह सोचकर दासी बहुत दुखी  होने लगी थी । उन्होंने सच्चे मन से बृहस्पति भगवान का व्रत किया था । इसलिए बृहस्पति भगवान प्रसन्न थे । बृहस्पति भगवान एक  रूप धारण करके दो थाली में पीला भोजन लेकर आए और दासी से कहने लगे कि यह भोजन  तुम्हारे और रानी के लिए है । तुम दोनों भोजन करना  दासी भोजन पाकर बहुत प्रसन्न हुई ।

उसने जब  रानी से कहा कि चलो आओ भोजन कर लो तब रानी दासी से कहने लगी  कि तू क्यों मेरी व्यर्थ में हंसी उड़ाती है । दासी  रानी से कहने लगी कि एक साधु महाराज आए थे और दो थाली में भोजन दे गए हैं और दोनों ने विष्णु भगवान को नमस्कार करके  भोजन किया । ऐसा करने से बृहस्पति भगवान प्रसन्न हो गए और रानी और दासी धनवान हो गए थे लेकिन रानी पहले की तरह आलस्य करने लगी थी । उसे धन रखने में कष्ट होने लगा था ।

तब दासी ने  रानी से कहा कि पहले भी तुम इसी तरह का आलस करती थी ।तुम्हें धन रखने में कष्ट होता था । जब हमें बृहस्पति भगवान की कृपा से धन मिला है तो तुम पहले की तरह  आलस क्यों करती हो । हमें अच्छे काम करना चाहिए  भूखे मनुष्य को भोजन करवाना चाहिए , पाठशाला का निर्माण करवाना चाहिए , कुंवारी कन्याओं का विवाह करवाना चाहिए ऐसा करने से बृहस्पति भगवान प्रसन्न होते हैं । रानी ने दासी के कहे अनुसार वैसा ही करना प्रारंभ कर दिया था ।

ऐसा करने से  रानी  का यश पूरे राज्य में फैल गया था । इस तरह से बृहस्पतिवार की पूजा करने से व कथा पढ़ने से  बृहस्पति भगवान प्रसन्न होते हैं अन्न , पुत्र व् धन देते हैं । कथा सुनने के बाद  सभी को  प्रसाद लेकर  जाना चाहिए । बोलो सभी बृहस्पति भगवान की जय विष्णु भगवान की जय

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