जीवित्पुत्रिका व्रत कथा व् पूजा विधि jivitputrika vrat katha, puja vidhi in hindi
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जितिया पूजा विधि jitiya puja vidhi in hindi
जीवित्पुत्रिका पूजा एवं जितिया पूजा विधि – जीवित्पुत्रिका पूजा एवं जितिया पूजा सभी माताएं अपने पुत्र की लंबी आयु के लिए करती हैं . इस पूजा से सभी माताओं को अपने पुत्र की लंबी आयु का फल प्राप्त होता है . यह पूजा अश्विन मास की कृष्ण अष्टमी को की जाती है . सभी महिलाएं अपने बच्चो की लंबी आयु के लिए व्रत करती हैं और भगवान से प्रार्थना करती है कि उनके पुत्र के सभी संकट दूर हो जाए और उनकी लंबी आयु हो . यह उत्सव 3 दिनों तक मनाया जाता है .
सप्तमी के दिन यह उत्सव नहाए खाए रस्म के साथ मनाया जाता है . दूसरे दिन अष्टमी पर सभी महिलाएं अपने संतान की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और तीसरे दिन नवमी पर सभी महिलाएं पारण करती हैं . इस तरह से अपने संतान की लंबी आयु के लिए यह व्रत किया जाता है . तीनों दिन महिलाएं सुबह स्नान करके हल्दी , चावल , रोरी जीमूत वाहन पर चढ़ाकर पूजा करती हैं . अष्टमी की शाम को जीमूत वाहन की बहुत बड़ी पूजा की जाती है .
सभी महिलाएं एक जगह पर एकत्रित होकर जीमूत वाहन को घी दूध से स्नान कराती हैं . तरह तरह के फूल उनके चरणों में अर्पित किए जाते हैं . उसके बाद हल्दी , चावल रोरी से उनका तिलक किया जाता है . इसके बाद कथा कही जाती है . सभी कथा को सुनते हैं . इसके बाद भव्य आरती का आयोजन भी किया जाता है . आरती के बाद सभी महिलाएं हाथ जोड़कर जीमूत वाहन से प्रार्थना करती हैं कि वह उनके पुत्र के कष्टों को हरे और उन को दीर्घायु का फल दें .
पूजा करने के बाद भगवान जीमूत वाहन की पूजा करने के बाद सभी महिलाएं दान दक्षिणा देती हैं . कुछ महिलाएं गरीब लोगों में अनाज एवं फल भी बांटती हैं . ऐसा करने से जीमूत वाहन प्रसन्न होते हैं और उनके बच्चे को लंबी आयु का फल प्रदान करते हैं . इस व्रत को महाभारत समय से ही किया जाता है . पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत समय में यह व्रत करने की परंपरा रही थी .
जीवित्पुत्रिका व्रत कथा – पौराणिक कथाओं के अनुसार यह व्रत महाभारत काल से ही किया जाता रहा है . ऐसा कहा जाता है कि महाभारत के समय पांडवों से अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए अश्वत्थामा मौके की तलाश कर रहा था . अश्वत्थामा को एक दिन मौका मिला और उसने द्रोपदी के पांच पुत्रों को पांडव समझ कर मार दिया था . अश्वत्थामा के इस कृत्य के कारण अश्वत्थामा को बंदी बना लिया गया था और उसकी द्रव्य मणि छीन ली गई थी . उसको बंदी कारागार में बंद कर दिया था .
ऐसा करने के बाद भी अश्वत्थामा का क्रोध शांत नहीं हुआ था . उसे और भी क्रोध आने लगा था . जब उत्तरा की कोख में एक बच्चा पल रहा था तब अश्वत्थामा ने उत्तरा की कोख पर ब्रह्मास्त्र से हमला कर दिया था . ब्रह्मास्त्र से हमला होने केे बाद उसको रोका तो नहीं जा सकता लेकिन इस संतान का जन्म भी जरूरी था । इसीलिए भगवान श्री कृष्ण ने अपने समस्त फलों का पुण्य उत्तरा को प्रदान कर दिया था । जिससे उत्तरा की कोख में मरा हुआ बच्चा दोबारा जीवित हो गया था और बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया था ।
यह संतान और कोई नहीं बल्कि राजा परीक्षित ही था । तभी से आश्विन अष्टमी के दिन यह व्रत जीवित्पुत्रिका व्रत के रूप में मनाया जाता है । यह व्रत बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है । सभी महिलाएं इस त्यौहार का उत्सव 3 दिनों तक मनाती हैं ।सभी महिलाएं पहले दिन सप्तमी के दिन घर की साफ सफाई करती हैं एवं यह उत्साह नहाए उत्सव के रूप में मनाती हैं ।
दूसरे दिन सभी महिलाएं अपने बच्चे की लंबी आयु की कामना के लिए निर्जला व्रत रखती हैं । अष्टमी के दिन सभी महिलाएं भगवान से प्रार्थना करती हैं कि वह उनके बच्चे को लंबी आयु दे । नवमी के दिन सभी महिलाएं व्रत का पारण करती हैं । अष्टमी के शाम को सभी महिलाएं संतान की लंबी आयु के लिए पूजा पाठ एवं कथा कहती हैं ।
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